साफ ऊर्जा अपनाने से सालाना 19.5 बिलियन डॉलर बचाने के साथ 78 मिलियन टन कोयले के इस्तेमाल को टाल सकता है भारत

भारत में वर्ष 2030 तक 420 गीगावॉट सौर एवं पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता जोड़ने का लक्ष्य तय किया है। इससे कोयले से बनी बिजली का उत्पादन टालने से 58 बिलियन डॉलर से ज्यादा की बचत होगी और वर्ष 2030 तक कुल बचत 368 बिलियन डॉलर हो जाएगी...

Update: 2023-01-24 10:00 GMT

कोयला खदान में काम करती महिलायें (file photo)

Environment news : भारत ने वर्ष 2025 तक 76 गीगावॉट यूटिलिटी स्केल सौर और पवन बिजली उत्पादन क्षमता विकसित करने की योजना बनाई है। इससे भारत 19.5 बिलियन डॉलर (1588 बिलियन रुपए) बचा सकता है। ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के ताजा अध्ययन में यह बात सामने आई है।

ग्लोबल सोलर पावर ट्रैकर और ग्लोबल विंड पावर ट्रैकर के आंकड़ों के हिसाब से भारत को संभावित रिन्यूबल ऊर्जा क्षमता के मामले में शीर्ष 7 देशों में रखा गया है। अगर यह उम्मीद है साकार हुई तो भारत हर साल लगभग 78 मिलियन टन कोयले के इस्तेमाल को टाल सकता है। भारत की सालाना बचत और भी ज्यादा हो सकती है, बशर्ते कोयले को हटाकर स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जाना देश की आकांक्षाओं से मेल खाता हो।

भारत में वर्ष 2030 तक 420 गीगावॉट सौर एवं पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता जोड़ने का लक्ष्य तय किया है। इससे कोयले से बनी बिजली का उत्पादन टालने से 58 बिलियन डॉलर से ज्यादा की बचत होगी और वर्ष 2030 तक कुल बचत 368 बिलियन डॉलर हो जाएगी।

अगर भारत अपने सभी पूर्व निर्धारित सौर एवं पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पटरी पर लाता है तो मोटे तौर पर इसकी लागत 51 बिलियन डॉलर होगी। मगर ऐसा करने से होने वाली 19.5 बिलियन डॉलर की सालाना बचत से भारत इस लागत को महज ढाई साल में वसूल कर सकता है।

भारत वैश्विक स्तर पर संभावित संपूर्ण यूटिलिटी स्केल सोलर पावर में 5% की हिस्सेदारी रखता है। इस मामले में वह चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से ही पीछे है। इसके अलावा पवन ऊर्जा की संभावित क्षमता के मामले में वह दुनिया में 17वीं पायदान पर है।

इस रिपोर्ट पर बोलते हुए ग्लोबल विंड पावर ट्रैकर के परियोजना प्रबंधक श्रद्धेय प्रसाद ने कहा "धन बचाएं, प्रदूषण में कमी लाएं, भारत का कोयला छोड़कर साफ ऊर्जा को अपनाना जीत का एहसास दिलाता है। यह वर्ष 2070 तक भारत को नेट जीरो उत्सर्जन वाला देश बनाने के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक संभावना पूर्ण कदम है। कोयले को तिलांजलि देकर भारत अधिक धनी और ज्यादा साफ सुथरा बनेगा।"

"सौर तथा वायु ऊर्जा की लागतों में लगातार गिरावट आ रही है और जीवाश्म ईंधन की कीमतों पर गौर करें तो रिन्यूबल ऊर्जा नए बिजली ढांचे के निर्माण के लिए एक बेहतर विकल्प पेश करती है।"

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पर्यावरणविद डॉ सीमा जावेद कहती हैं, "भारत की नेशनल एनर्जी पॉलिसी (एनईपी) में भी 2030 तक स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि करने और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की कोयला क्षमता में गिरावट परिलक्षित है। वर्ष 2018 में जारी पिछली विद्युत योजना में वर्ष 2027 तक 150 गीगावाट की स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया था। नयी विद्युत योजना के मसविदे में इसमें 36 मेगावाट की बढ़ोतरी करते हुए वर्ष 2027 के लक्ष्‍य को 186 गीगावाट कर दिया गया है। ऐसे में अगर भारत अपने सभी पूर्व निर्धारित सौर एवं पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पटरी पर लाता है तो मोटे तौर पर ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के ताजा अध्ययन के हिसाब से इसकी लागत को महज ढाई साल में वसूल कर सकता है, जो सौर तथा पावन ऊर्जा की लागत में आ रही गिरावट के मद्देनज़र कोई बड़ी बात नहीं है।"

दुनिया की सर्वाधिक संभावना पूर्ण रिन्यूबल ऊर्जा वाले शीर्ष 10 देश इस प्रकार हैं :

—चीन (387,258 मेगावाट)

—ऑस्ट्रेलिया (220,957 मेगावाट)

—ब्राजील (217,185 मेगावाट)

—अमेरिका (204,585 मेगावाट)

—वियतनाम (93,585 मेगावाट)

—मिस्र (81,616 मेगावाट)

—भारत (76,373 मेगावाट)

—दक्षिण कोरिया (76,153 मेगावाट)

—ताइवान (67,296 मेगावाट)

—जापान (55,147 मेगावाट)

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