2030 तक भारत बन जायेगा दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन मार्केट, विशेषज्ञों ने किया दावा
भारत के कार्बन बाजार से उद्योगों को इस बात का स्पष्ट नीतिगत संकेत मिल सकता है कि वह अपने निवेश को कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों की तरफ मोड़ दें। इस काम में एमिशंस रिपोर्टिंग और भारतीय उद्योग को तैयार करने के लिए लक्षित क्षमता निर्माण पर भी समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए....
India will become the world's largest carbon market by 2030 : एक नए अध्ययन से पता चला है कि देश में कार्बन एमिशन कम करने की गतिविधियों पर होने वाले खर्चे में 28 फीसद की कमी आयी है। इतना ही नहीं, विशेषज्ञों का मानना है साल 2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन बाज़ार बन जाएगा।
दरअसल साल 2020-21 में लागू किए गए इस कार्बन मार्केट सिमुलेशन अध्ययन में 21 बड़े भारतीय कारोबारों, जो भारत के औद्योगिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले कुल एमिशन के लगभग 10% हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं, को शामिल किया गया। साथ ही साथ कार्बन बाजार के सभी तत्वों, जैसे बेसलाइन और लक्ष्य का निर्धारण, मापन, रिपोर्टिंग और प्रमाणन को शामिल किया गया। इस अध्ययन की रिपोर्ट के निष्कर्षों हाल ही में मुंबई में आयोजित बिजनेस 20 (बी20) -थिंक20 (टी20) कार्यक्रम में साझा किया गया।
बी20 और टी20 दरअसल जी20 के आधिकारिक कार्य समूह हैं। वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट इंडिया की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन में कार्बन बाजारों को लेकर 15 साल के अंतरराष्ट्रीय अनुभव को समाहित किया गया है। इसके अलावा एमबीएम इकाइयों के साथ 10 साल के घरेलू अनुभव को भी शामिल किया गया है। साथ ही भारतीय उद्योग की जरूरतों, उसके सामने खड़ी चुनौतियों और परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए बड़े भारतीय कारोबारियों के साथ सलाह-मशवरे तथा कार्बन बाजार के अपनी तरह के पहले सिमुलेशन को भी इसके दायरे में लिया गया है।
विश्व बैंक के अनुसार कार्बन बाजार अब दुनिया के कुल उत्सर्जन के 16% हिस्से को आच्छादित करते हैं। भारत के औद्योगिक क्षेत्र को कवर करने वाला यह एक ऐसा कार्बन बाजार है, जो भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा मौजूदा स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं के औसत महत्वाकांक्षा स्तर के साथ संरेखित लक्ष्य को भी निर्धारित करता है। साथ ही वर्तमान नीति परिदृश्य की तुलना में 2030 में सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 5.6 प्रतिशत तक और कम करने की क्षमता रखता है, जो 2022 और 2030 के बीच 1.3 बिलियन मेट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड ईक्विवेलेंट की संचयी कमी के बराबर है। सीओपी 26 की बैठक के दौरान भारत ने वर्ष 2030 तक जीडीपी में प्रति इकाई 45% की दर से उत्सर्जन तीव्रता में कटौती करने और वर्ष 2017 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने की महत्वाकांक्षा का ऐलान किया था।
भारत ने यह भी घोषणा की थी कि उसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन मैट्रिक टन की कटौती करने का है। इस अध्ययन की अगुवाई करने वाले डब्ल्यूआरआई इंडिया के वरिष्ठ प्रबंधक अश्विनी हिंगने ने कहा “कार्बन बाजार के रूप में, भारत के पास एक जरिया है, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करते हुए उद्योग क्षेत्र से डीप डीकार्बोनाइजेशन को प्रोत्साहित करने के लिए सही नीति और मूल्य संकेत प्रदान कर सकता है। हमारे अध्ययन से यह पता चलता है कि एक सुव्यवस्थित कार्बन मार्केट उत्सर्जन में कमी लाने की लागतों में कटौती करने की क्षमता रखने के साथ-साथ एमएसएमई क्षेत्र के डेकार्बोनाइजेशन के लिए जरूरी वित्तपोषण भी उपलब्ध करा सकता है।”
ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी के महानिदेशक अजय बाकरे ने कहा कि ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी भारत के कार्बन व्यापार कार्य योजना को संचालित करेगा। उन्होंने कहा “जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएं परिपक्व होती जाएंगी वैसे-वैसे अगर हमें प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने के आक्रामक प्रयास करने हैं तो इसके लिए कार्बन मार्केट सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होंगे। भारत में कार्बन बाजार की बहुत ठोस कार्य योजना बनाने के लिए भारत के ऊर्जा संरक्षण अधिनियम में कुछ बहुत प्रभावशाली संशोधन किए गए हैं। साथ ही साथ विभिन्न हितधारकों के साथ सलाह-मशवरा का दौर भी शुरू किया गया। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भारतीय बाजार अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो। हम प्रमाणनकर्ताओं के एक समूह के साथ-साथ एक ठोस इलेक्ट्रॉनिक मंच भी तैयार कर रहे हैं, ताकि परियोजनाओं को पंजीकृत किया जा सके और ऋणों का प्रबंधन हो सके। साथ ही इससे उद्योगों के बीच बेहतर आत्मविश्वास भी पैदा होगा। वर्ष 2030 तक भारत का कार्बन बाजार दुनिया का अग्रणी कार्बन बाजार होगा। यह इस बात को सुनिश्चित करेगा कि यह बाजार बी कार्बोनाइजेशन के प्रयासों को आगे बढ़ाने में उद्योगों की मदद करें वही प्रौद्योगिकियों की लागतों में भी कमी आए।
पिछले साल दिसंबर में भारत की संसद में ऊर्जा संरक्षण संशोधन अधिनियम 2022 को पारित किया था। इस विधेयक के माध्यम से ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन का मकसद सरकार को भारत में कार्बन बाजार स्थापित करने में सक्षम बनानाऔर एक कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को संभव बनाना था।
केपीआईटी टेक्नोलॉजीज के अध्यक्ष और सह संस्थापक रवि पंडित ने कहा “उद्योगों के सामने डीकार्बनाइजेशन के प्रयासों की अगुवाई करने का यह बेहतरीन अवसर है। कार्बन ट्रेडिंग उत्सर्जन में कमी लाने का एक दक्षतापूर्ण और प्रभावी रास्ता है। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने की लागत लगभग 28% घट गई है डिजाइन प्रबंधन और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना बहुत महत्वपूर्ण है।
डब्ल्यूआरआई इंडिया में क्लाइमेट प्रोग्राम की निदेशक उल्का केलकर ने कहा, “भारत के कार्बन बाजार से उद्योगों को इस बात का स्पष्ट नीतिगत संकेत मिल सकता है कि वह अपने निवेश को कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों की तरफ मोड़ दें। इस काम में एमिशंस रिपोर्टिंग और भारतीय उद्योग को तैयार करने के लिए लक्षित क्षमता निर्माण पर भी समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए।”
इंडोनेशिया कार्बन ट्रेड एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ रिजा सुआर्गा नेदेशों द्वारा अपने कार्बन बाजारों का ऐलान किए जाने के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता की जरूरत पर जोर देते हुए कहा “इंडोनेशिया इस साल के मध्य तक कार्बन एक्सचेंज जारी करने की योजना बना रहा है। इंडोनेशिया की यह भी योजना है कि वह क्रॉस सेक्टरल कार्बन ट्रेडिंग भी करे आगे बढ़ते हुए, एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के महात्मा गांधी के दर्शन के साथ तालमेल बिठाते हुए, प्रक्रियाओं और मानकों को सुसंगत बनाना और अनुच्छेद 6 को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।