जोशीमठ की तबाही बिजली परियोजना की देन, पहाड़ में टनल बनाना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा : एक्सपर्ट ने किया दावा
Joshimath Sinking : आज जो कुछ जोशीमठ में घटित हो रहा है, उसका सीधा संबंध अतीत में एनटीपीसी के कामों से है। उन्होंने कहा कि 2009 में तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना में टीबीएम के फंसने के साथ ही पानी का रिसाव हुआ था। उस पानी के दबाव के चलते नई दरारें चट्टानों में बनी और पुरानी दरारें और चौड़ी हो गयी। इसी के कारण टनल के अंदर से पानी का बाहर भी रिसाव हुआ। यह चट्टानें बहुत ही कमजोर और संवेदनशील हैं...
Joshimath Sinking : अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने की मूर्खता का एक्सटेंशन किया जाए तो वह खुद ही कुल्हाड़ी के पास जाकर कुल्हाड़ी पर पैर रख देना होता है। उत्तराखंड के चमोली जिले का कस्बा जोशीमठ जो आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है, के मामले में भी इसी मूर्खता का प्रदर्शन किया गया था। भारत के प्रख्यात पर्यावरणविद डॉ. रवि चोपड़ा ने बृहस्पतिवार 12 जनवरी को जोशीमठ में आयोजित एक पत्रकार वार्ता के दौरान पूर्व में हुए शोध का हवाला देते हुए बताया कि जोशीमठ आपदा प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि ऐसी मानवजनित आपदा है कि यदि उत्तराखंड सरकार चाहती तो इससे बचा जा सकता था।
इस पत्रकार वार्ता में चोपड़ा ने एनटीपीसी और एल एंड टी के आंकड़ों के आधार पर लिखे गए एक शोध पत्र के हवाले से कहा कि आज जो कुछ जोशीमठ में घटित हो रहा है, उसका सीधा संबंध अतीत में एनटीपीसी के कामों से है। उन्होंने कहा कि 2009 में तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना में टीबीएम के फंसने के साथ ही पानी का रिसाव हुआ था। उस पानी के दबाव के चलते नई दरारें चट्टानों में बनी और पुरानी दरारें और चौड़ी हो गयी। इसी के कारण टनल के अंदर से पानी का बाहर भी रिसाव हुआ। यह चट्टानें बहुत ही कमजोर और संवेदनशील हैं।
उन्होंने शोध पत्र के हवाले से कहा कि उस वक्त कंपनी को उपचार के उपाय सुझाए गए थे, लेकिन उन सुझावों पर कार्यवाही नहीं हुई। डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि इस सब को पढ़ कर वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि टनलिंग (सुरंग बनाने की प्रक्रिया) की वजह से यहां के भू जल के तंत्र पर प्रभाव पड़ा है। टनल में पानी का जितना रिसाव हुआ, उससे कई गुना अधिक पानी 07 फरवरी 2021 को सुरंग में घुसा जिससे इन चट्टानों में नई दरारें बनी और पुरानी दरारें चौड़ी हो गयी, जिसका प्रभाव अत्याधिक व्यापक होगा।
चोपड़ा ने बहुत साफ शब्दों में कहा कि इस बात को कहने के पर्याप्त आधार हैं कि हम आज जो झेल रहे हैं वह एनटीपीसी की सुरंग निर्माण प्रक्रिया का परिणाम है। नियंत्रित विस्फोट करने का एनटीपीसी का दावा खोखला है क्योंकि साइट पर विस्फोट करते समय कोई वैज्ञानिक नहीं बल्कि ठेकेदार रहता है, जो अपना काम खत्म करने की जल्दी में होता है।
इस पत्रकार वार्ता में जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने सिलसिलेवार तरीके से बताया कि पिछले 14 महीने से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति निरंतर सरकार को जोशीमठ पर मंडराते खतरे के प्रति आगाह कर रही थी। इसके लिए प्रशासन के जरिये सरकार को ज्ञापन भी भिजवाए। स्वयं पहल करके भू वैज्ञानिकों से सर्वे करवाया। सरकार की विशेषज्ञ कमेटी के सर्वे में भी सहयोग किया। आपदा प्रबंधन सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक से बात की, लेकिन किसी ने स्थितियों के बिगड़ने तक मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
उन्होंने कहा कि तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना के लिए हुए सर्वे से पहले ही वह जिस बात की आशंका प्रकट कर रहे थे और इस मामले में 2003 में वे भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिख चुके थे। आज वही आशंकाएँ सच सिद्ध हुई हैं। उन्होंने कहा कि 2009 में सुरंग से रिसाव के बाद जोशीमठ के पानी के लिए 16 करोड़ रुपए की व्यवस्था के अलावा घरों का बीमा करना भी एनटीपीसी ने करने का लिखित समझौता किया था, जो इस बात की खुली स्वीकारोक्ति थी कि एनटीपीसी की परियोजना से जोशीमठ को नुकसान पहुंच सकता है।