खतरे में कश्मीर में केसर की खेती, पहले आतंकवाद तो अब जलवायु परिवर्तन से बढ़ी केसर किसानों की मुश्किलें
केसर के प्रमुख उत्पादक ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीर लम्बे समय से आतंकवाद और गृहयुद्ध की चपेट में हैं। आतंकवाद के बाद अब जलवायु परिवर्तन इसके उत्पादन को प्रभावित कर रहा है...
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
केसर को दुनिया के सबसे महंगे मसाले का खिताब प्राप्त है और कश्मीर का केसर सबसे अच्छा माना जाता है। इसका रंग गाढ़ा होता है, खुशबू होती है, मीठा होता है और अपेक्षाकृत मोटे रेशे का होता है। पर, पहले आतंकवाद और फिर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण कश्मीर में इसकी पैदावार वुरी तरह प्रभावित हो रही है और अनेक केसर उत्पादल अब सेव के बाग़ लगाने में अधिक फायदा देख रहे हैं।
कश्मीर में श्रीनगर के दक्षिण में पोम्पोर और किश्तवार का क्षेत्र केसर की खेती के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है, पर यह क्षेत्र परम्परागत तौर पर आतंकवाद की चपेट में भी लम्बे समय तक रहा है। अब यहाँ का मौसम साल-दर-साल पहले से शुष्क होता जा रहा है जिसके कारण केसर का उत्पादन पिछले दो दशकों के दौरान पहले से आधा रह गया है।
इस क्षेत्र में पिछले लगभग 2500 वर्षों से केसर की खेती की जा रही है। केसर की खेती के लिए अनुकूल जलवायु की बहुत जरूरत है। सामान्य से अधिक या असमय बारिश, सामान्य से अधिक शुष्क मौसम या फिर सामान्य से अधिक तापमान इसके उत्पादन को प्रभावित करता है। पर, जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु में लगातार बदलाव देखा जा रहा है, और इसी कारण इसका उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
अनुमान है कि एक किलोग्राम केसर प्राप्त करने के लिए लगभग 1,60,000 फूलों की जरूरत होती है और फूलों को तोड़ने का मौसम पतझड़ के समय दो सप्ताह तक ही सीमित रहता है। केसर के एक हेक्टेयर की खेती से लगभग 1.4 किलोग्राम केसर प्राप्त होता है। केसर की खेती करने वाले किसान अब्दुल अहमद मीर का कहना है कि इसका उत्पादन तेजी से गिर रहा है, पहले उनके खेत में 80 मजदूरों को एक सप्ताह तक जितना काम करना पड़ता था, अब उतना ही काम उनके घर के 6 सदस्य एक दिन में ही कर डालते हैं।
स्थानीय स्तर पर केसर का सबसे अधिक उपयोग कहवा में किया जाता है, जबकि देश में इसका उपयोग खाद्य पदार्थों में और सौन्दर्य प्रसाधनों में किया जाता है। देश में केसर की कुल खपत लगभग 100 टन प्रतिवर्ष है, पर इसका उत्पादन लगभग 10 टन तक ही हो पाटा है।
पूरी दुनिया में जितने केसर की खपत होती है, उसमें से 90 प्रतिशत से अधिक केसर की आपूर्ति ईरान द्वारा की जाती है। अफ़ग़ानिस्तान भी केसर के निर्यात के लिए जाना जाता है। वर्ष 2018 में कश्मीर में 2825 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर की खेती की गई थी।
वर्ष 2019 में कश्मीर में सूखे का दौर लम्बे समय तक चला था, इस वर्ष केसर के उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 68 प्रतिशत से भी अधिक कमी आंकी गई थी। नेशनल सैफरन मिशन के तहत लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तमिलनाडु के पहाड़ी क्षेत्रों में केसर के पैदावार के प्रयास किये जा रहे हैं, पर कश्मीर के केसर की गुणवत्ता के नजदीक भी पहुँच पाना लगभग असंभव है।
यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि केसर के प्रमुख उत्पादक ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीर लम्बे समय से आतंकवाद और गृहयुद्ध की चपेट में हैं। आतंकवाद के बाद अब जलवायु परिवर्तन इसके उत्पादन को प्रभावित कर रहा है।