हर साल तापमान बढ़ने और घटने से 50 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत : शोध में खुलासा
भारत समेत दुनिया के 43 देशों में 750 स्थानों से प्राप्त जलवायु के आंकड़ों का और मृत्यु दर का विश्लेषण किया गया है, हरेक वर्ष अत्यधिक सर्दी या अत्यधिक गर्मी के कारण दुनिया में 50 लाख से अधिक व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, यह संख्या दुनिया में कुल मृत्यु का 9.4 प्रतिशत है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
तापमान वृद्धि पर पिछले 20 वर्षों से किये जा रहे अध्ययन के अनुसार पृथ्वी का तापमान वर्ष 1990 के बाद से हरेक दशक में औसतन 0.26 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन को जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने किया है, और इसमें भारत समेत दुनिया के 43 देशों में 750 स्थानों से प्राप्त जलवायु के आंकड़ों का और मृत्यु दर का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि हरेक वर्ष अत्यधिक सर्दी या अत्यधिक गर्मी के कारण दुनिया में 50 लाख से अधिक व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, यह संख्या दुनिया में कुल मृत्यु का 9.4 प्रतिशत है।
अध्ययन के अनुसार अत्यधिक गर्मी या अत्यधिक सर्दी के कारण दुनिया में प्रति लाख मौतों में 74 मौतें अतिरिक्त होती हैं। पिछले कुछ वर्षों से अत्यधित सर्दी से होने वाली मौतों में कमी आ रही है, जबकि अत्यधिक गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अत्यधिक सर्दी से मौतें अफ्रीका में सहारा के आसपास के देशों में होती हैं, जबकि अत्यधिक गर्मी से मौतों के सन्दर्भ में पूर्वी यूरोप के देश सबसे आगे हैं। यूरोप में तापमान की चरम घटनाओं के दौरान होने वाली मौतों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक सर्दी- दोनों स्थितियों में ह्रदय गति अचानक रुक जाना, दिल का दौरा पड़ना और पक्षाघात की घटनाएँ अचानक बढ़ जाती हैं।
यूरोप और अमेरिका के अनेक क्षेत्रों में वर्ष 2014 के बाद से लगातार सूखा पड़ रहा है, भूमि में पानी की मात्र कम हो रही है और तापमान लगातार बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति पिछले 2000 वर्षों में कभी नहीं देखी गयी थी। उत्तरी अमेरिका में इस वर्ष के जून का महीना, इतिहास के किसी भी दौर से गर्म था, अनेक क्षेत्रों में सर्वाधिक तापमान का जो ऐतिहासिक रिकॉर्ड था, उससे 5 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक तापमान मापा गया।
उपग्रह द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछले 12 वर्षों से उत्तरी अमेरिका में अत्यधिक गर्मी वाले दिनों में साल-दर-साल बढ़ोत्तरी हो रही है और तापमान भी बढ़ रहा है। उत्तरी अमेरिका में जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि का सर्वाधिक प्रभाव स्पष्ट हो रहा है – वर्ष 1991 की तुलना में वर्ष 2020 तक औसत तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो चुकी है और पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ चुका है। इस वर्ष जून के अंत में लॉसवेगास का तापमान 45.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था, जो सामान्य तापमान से 10 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है। अमेरिका में इस वर्ष जून में 5 करोड़ से अधिक आबादी सामान्य से अधिक गर्मी की मार झेलती रही।
हाल में ही अमेरिका में इलसा चक्रवात ने भी कहर बरपाया है और न्यूयार्क समेत अनेक शहर बाढ़ में डूबने लगे। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता भी लगातार बढ़ रही है और इसके रिकॉर्ड भी लगातार ध्वस्त होते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के कारण 2.25 मीटर से ऊंची बाढ़ अब हरेक 5 वर्ष के दौरान आने लगी है, जबकि वर्ष 1970 तक ऐसी बाढ़ 25 वर्षों के अंतराल पर आती थी।
जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण उत्तरी अमेरिका में जंगलों और झाड़ियों में आग लगने का समय भी 75 दिनों से अधिक हो गया है। वर्ष 2020 में अमेरिका में कुल 130 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के जंगलों में 3847 आग लगाने की घटनाएँ देखी गईं थीं। इस वर्ष अब तक लगभग 300 वर्ग किलोमीटर के जंगलों में आग लगाने की 4599 घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं।
केवल उत्तरी अमेरिका ही नहीं, बल्कि यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भी इस वर्ष का जून तापमान के सन्दर्भ में भयानक रहा है। न्यूज़ीलैण्ड में जून में सर्दियां पड़तीं हैं, पर इस वर्ष के जून का तापमान इतिहास के किसी भी दौर की अपेक्षा सर्वाधिक गर्म रहा। अंटार्टिका तो हमेशा बर्फ से ढका रहता है, पर इस वर्ष जून में वहां तापमान 18.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था। उत्तरी ध्रुव के पास बसे देशों में भी यही स्थिति थी। फ़िनलैंड के केवो कस्बे में तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था, जो वर्ष 1914 के बाद का सर्वाधिक गर्म जून था। स्वीडन में इस वर्ष का जून इतिहास में तीसरा सर्वाधिक गर्म महीना था। नोर्वे में तापमान 34 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था। मास्को, हेलसिंकी और यहाँ तक कि साइबेरिया में भी इस वर्ष के जून में तापमान से सम्बंधित सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए।
नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण केवल तापमान ही नहीं बढेगा, बल्कि बारिश की अवधि और तीव्रता भी बढ़ेगी, चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ेगी, बाढ़ के दायरे में नए क्षेत्र आयेंगे और तेज बारिश के कारण पहाड़ों पर चट्टानों के टूटने और खिसकने की घटनाएँ बढेंगी। महासागरों की सतह का तापमान बढ़ रहा है, इससे वाष्पीकरण की दर बढ़ रही है, बादल अधिक बन रहे हैं और वायुमंडल के बढ़ते तापमान के कारण बादलों के पानी धारण करने की क्षमता बढ़ रही है।
तापमान वृद्धि के कारण अनेक रोगों का दायरा भी बढ़ रहा है। लैसेट प्लेनेटरी हेल्थ जौरना में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार इस समय दुनिया में हरेक वर्ष 4.5 अरब लोग मलेरिया और डेंगू की चपेट में आते हैं, पर यदि धरती का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो फिर वर्ष 2080 तक यह संख्या 8 अरब तक पहुँच जायेगी।
इस अध्ययन को लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने किया है। इस शोधपत्र के अनुसार अगले 50 वर्षों में मलेरिया से पीड़ित होने के समय में एक महीने की बढ़ोत्तरी हो जायेगी। डेंगू के मामले में यह बढ़ोत्तरी 4 महीने की होगी।