दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले शहरों में सिर्फ वायु प्रदूषण से 1 साल में हुईं 1 लाख 60 हजार लोगों की असामयिक मौत

दुनियाभर में वायु प्रदूषण के कारण 5 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, और अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे यदि बच भी जाते हैं तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है....

Update: 2021-02-22 12:44 GMT

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कैसे भयानक है वायु प्रदूषण से मौत और आर्थिक नुकसान का आंकड़ा बता रहे हैं पर्यावरण विशेषज्ञ महेंद्र पाण्डेय

जनज्वार। ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले 5 शहरों में वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2020 के दौरान 1,60,000 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो गयी। इसका कारण हवा में भारी मात्रा में मौजूद पीएम 2.5 के कण हैं जो सीधा फेफड़े तक पहुँच जाते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक ऐसी मौत, 54000 मौत, दिल्ली में दर्ज की गयी और वायु प्रदूषण के जानकार लोगों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि दिल्ली हमेशा ही वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर से घिरी रहती है। इसके बाद जापान की राजधानी टोक्यो का स्थान है, जहां 40000 असामयिक मौतें दर्ज की गईं हैं।

टोक्यो की हालत पर जरूर आश्चर्य होता है, क्योंकि वहां पिछले वर्ष ओलम्पिक खेलों का आयोजन किया जाना था, और पिछले पांच वर्षों से जापान में प्रदूषण का स्तर कम करने की सरकारी पहल चल रही है। इसके बाद चीन के शंघाई, ब्राज़ील के साओ पाउलो और फिर मेक्सिको के मेक्सिको सिटी का स्थान है।

 ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि ये आंकड़े वर्ष 2020 के हैं, जब पूरी दुनिया कोविड 19 की चपेट में थी और लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियाँ बंद थी। पिछले वर्ष दुनिया के हरेक क्षेत्र में लम्बे समय तक वायु प्रदूषण का स्तर लगभग नगण्य था। इस दौरान प्रदूषण-रहित समाज पर बड़े-बड़े लेख लिखे गए।

पिछले वर्ष ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने संयुक्त तौर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके अनुसार जीवाश्म ईंधनों के जलाने पर 2018 के आकलन के अनुसार दुनियाभर में होने बाले वायु प्रदूषण के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन 8 अरब डॉलर का झटका लगता है।

यानी प्रतिवर्ष 2.9 ख़रब डॉलर, जो पूरी दुनिया के अर्थव्यवस्था का 3.3 प्रतिशत है। सबसे अधिक नुकसान चीन को 900 अरब डॉलर, फिर अमेरिका को 610 अरब डॉलर और भारत को 150 अरब डॉलर का नुक्सान उठाना पड़ता है। इसके बाद जर्मनी को 140 अरब डॉलर, जापान को 130 अरब डॉलर, रूस को 68 अरब डॉलर और ग्रेट ब्रिटेन को 66 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में 45 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिसमें से 18 लाख लोग चीन के और 10 लाख लोग भारत के होते हैं। इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बताया था कि दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण 42 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है।

एक दूसरे अध्ययन के अनुसार दिल्ली में रहने वाला हरेक व्यक्ति जो वायु प्रदूषण की मार झेलता है, वह 10 सिगरेट के धुवें के बराबर है। केवल पीएम 2.5 के प्रदूषण के कारण दुनिया को 2 ख़रब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है, जबकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण 350 अरब डॉलर का और ओजोन के कारण 380 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों में से 29 का कारण वायु प्रदूषण से जुड़े प्रभाव हैं।

हाल में ही प्रकाशित स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2020 नामक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में वायु प्रदूषण के कारण 5 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, और अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे यदि बच भी जाते हैं तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है।

वायु प्रदूषण का घातक असर गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी पड़ता है, इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं, और ये दोनों की शिशुओं में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। ऐसी अधिकतर मौतें विकासशील देशों में होती है। रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण के असर का विस्तार से अध्ययन किया गया है, पर शिशुओं पर इसके प्रभाव के बारे में अपेक्षाकृत कम पता है। इस रिपोर्ट को हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट नामक संस्था ने प्रकाशित किया है।

वायु प्रदूषण से नवजातों की कुल मृत्यु में से दो-तिहाई का कारण घरों के अन्दर का प्रदूषण है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत समेत तमाम विकासशील देशों में घरों के अन्दर के प्रदूषण स्तर का कोई अध्ययन नहीं किया जाता, और न ही इसके बारे में कोई दिशा-निर्देश हैं। घरों के अन्दर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बंद घरों के अन्दर की रसोई है, जिसपर लकड़ी, उपले इत्यादि जैव-इंधनों से खाना पकाया जाता है।

स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में कुल 67 लाख व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई है, और वायु प्रदूषण दुनिया में मौत के बड़े कारणों में चौथे स्थान पर है। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सबसे अधिक मौतें अफ्रीका में और एशिया में होती हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया की वैज्ञानिक बेट रिट्ज के अनुसार घरों के अन्दर वायु प्रदूषण की सबसे अधिक समस्या भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है। इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।

हम हमेशा बात करते हैं कि आने वाली पीढी के लिए कैसी दुनिया छोड़कर जायेंगे, पर यदि वायु प्रदूषण का यही हाल रहा तो सत्य तो यही है कि हम आनेवाली पीढियां ही नहीं छोडकर जायेंगे। जो जिन्दा रहेंगे उनके भी फेफड़े और मस्तिष्क सामान्य काम नहीं कर रहे होंगे।

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