पुरी बना देश का पहला शहर, जहां 24 घंटे उपलब्ध है नलों से सीधा पीने लायक पानी

पिछले 3 वर्षों के दौरान अनेक अध्ययन बताते है कि दुनियाभर के बाजारों में बिकने वाले बोतल-बंद पानी में प्लास्टिक के बहुत छोटे टुकडे भारी मात्रा में रहते हैं, जो पानी के साथ ही सीधा हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं....

Update: 2021-08-06 11:31 GMT

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वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। पानी हमारे लिए जरूरी तो है, पर हम इसकी लगातार उपेक्षा करते हैं और बाजार इसी उपेक्षा को हमें महंगे दामों में बेचता है। पानी से सम्बंधित खबरें भी शायद ही कोई पढ़ता हो। जुलाई के अंत में एक छोटी खबर आई थी, जिसके अनुसार पूरी देश का पहला ऐसा शहर बन गया है, जहां घरों में नलों से आने वाला पानी सीधा पीया जा सकता है और यह पानी 24सों घंटे उपलब्ध है।

यानि जल आपूर्ति लगातार बनी रहेगी। इस समाचार को पढ़ने के बाद पहला प्रश्न दिमाग में आता है, इस समाचार में नया क्या है, ऐसा तो हरेक शहर और कसबे में होता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु – सभी जगह तो नालों से पानी आता है और हरेक जगह का प्रशासन यही दावा करता है कि नालों से आने वाला पानी सीधा पीया जा सकता है।

पुरी की इस योजना में अनेक विशेषताएं हैं। अपने देश का कोई भी शहर हरेक क्षेत्र में 24 घंटे जल की आपूर्ति नहीं करता, जैसा पुरी में किया जा रहा है। पुरी के इस योजना की दूसरी विशेषता यह भी है कि सारा पानी एक ही स्त्रोत, भार्गवी नदी, से लिया जाता है| दूसरे शहरों में पाने के कई स्त्रोत – नदी, नहर, भूजल – इत्यादि होते हैं और सबके पानी की गुणवत्ता एक दूसरे से बिलकुल अलग होती है। दूसरे बड़े शहरों में पानी को साफ़ करने के कई संयंत्र होते हैं, और सभी से अलग-अलग गुणवत्ता का पानी बाहर आता है।

पुरी में पानी साफ़ करने के लिए केवल एक संयंत्र स्थापित किया गया है, और इसकी क्षमता अगले 50 वर्षों तक जनसंख्या में बढ़ोत्तरी को ध्यान में रखकर निर्धारित की गयी है। पानी साफ़ करने का यह संयंत्र पूरी तरह से स्वचालित है और पानी के गुणवता में किसी प्रकार की भी खराबी होने पर यह संयंत्र उस पानी की आपूर्ति नहीं करता बल्कि उसे पुनः साफ़ करता है।

वैसे तो यह सब विशेषताएं सामान्य सी लगती हैं, पर हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर इनका गहरा प्रभाव पड़ने वाला है। पुरी की यह योजना ओडिशा सरकार की योजना, सुजल, का हिस्सा है और इसे वर्ष 2023 तक राज्य के 15 प्रमुख शहरों तक पहुचाने का लक्ष्य है। इस योजना के लिए सरकार ने प्रचार का भी व्यापक खाका तैयार किया है, क्योंकि बाजारों में उपलब्ध बोतल-बंद पानी और पानी साफ़ करने का दावा करने वाले आरओ जैसे संयंत्रों का अरबों रुपये का बाजार साफ़ पानी पर नहीं बल्कि विज्ञापनों पर ही निर्भर है। इस योजना में केवल घरों को ही नहीं बल्कि सभी सार्वजनिक स्थलों, पर्यटन स्थलों और सड़क के किनारे भी शामिल किये जाने चाहिए, जिससे किसी को बोतल-बंद पानी खरीदने की जरूरत ही न पड़े।

हाल में ही बार्सिलोना स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ ग्लोबल हेल्थ द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार बोतल-बंद पानी पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र, दोनों के लिए बहुत घातक है। बोतल-बंद पानी के उपभोग से नल से आने वाले पानी की तुलना में प्राकृतिक संसाधनों पर 3500 गुना अधिक प्रभाव पड़ता है, जबकि पारिस्थितिकी तंत्र पर यह प्रभाव 1400 गुना अधिक पड़ता है।

बार्सिलोना के इस अध्ययन को प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल, नेचर के नए अंक में प्रकाशित किया गया है। बोतल-बंद पानी का असर तापमान बृद्धि पर भी पड़ता है, क्योंकि इसे साथ प्लास्टिक उत्पादन और बोतलों का परिवहन भी शामिल है। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में प्रतिवर्ष जितने बोतलों का उपयोग पानी के बाजार में किया जाता है उसके उत्पादन में 270 करोड़ लीटर पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग होता है।

पिछले 3 वर्षों के दौरान अनेक अध्ययन बताते है कि दुनियाभर के बाजारों में बिकने वाले बोतल-बंद पानी में प्लास्टिक के बहुत छोटे टुकडे भारी मात्रा में रहते हैं, जो पानी के साथ ही सीधा हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं। बोतल-बंद पानी से जुड़े प्लास्टिक कचरे की समस्या पर तो बहुत कुछ लिखा गया है और हरेक सार्वजनिक स्थानों पर इधर-उधर फेंकी हुई बोतले स्वयं इस समस्या को उजागर करती हैं।

पुरी की इस योजना का लाभ भूजल को भी पहुंचेगा। हमारा देश उन चुनिन्दा देशों में शुमार है, जहां भूजल सबसे तेजी से नीचे जा रहा है। पुरी में भूजल का नहीं बल्कि नदी के पानी का उपयोग किया जा रहा है। इस शहर में अब तक एक बड़ी आबादी के लिए पानी का एकमात्र स्त्रोत निजी ट्यूबवेल या हैण्डपंप थे, जो भूजल का दोहन करते थे।

अब हरेक घर में पानी की पाइप पहुँचाने के बाद और उससे लगातार सीधा पीने लायक पाने आने के कारण भूजल का दोहन कम से कम घरेलू उपयोग के लिए रुक जाएगा। भूजल के पानी के स्त्रोत सीधे पानी का दोहन तो करते ही हैं, इसके साथ इसे पीने लायक बनाने के लिए या तो इन्हें उबालना पड़ता है या फिर पानी साफ़ करने का दावा करने वाले उपकरणों को खरीदना पड़ता है।

जाहिर है, साफ़ पानी की पाइप द्वारा 24सों घंटे हरेक घर में आपूर्ति हमारी नजर में कोई भारी समाचार नहीं हो, पर इसके स्वास्थ्य संबंधी और पर्यावरणीय प्रभाव व्यापक है। ओडिशा सरकार को कुछ समय बाद यह अध्ययन जरूर करना चाहिए, कि उसके इस कदम से पुरी की जनता के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा और बोतल-बंद पानी की बिक्री कितनी कम हुई।

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