मोदी-नीतीश सरकार की कोसी मेची नदी जोड़ परियोजना पर उठने लगे सवाल, न कोसी की बाढ़ कम होगी-न जरूरत पर सिंचाई मिलेगी
कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना 13 नदियों को साइफन के माध्यम से पार करेगी। इससे नया बाढ़ जलजमाव की आशंका उत्पन्न होगी। डीपीआर में उल्लेखित खरीफ में धान के उपज के क्षेत्रफल के आंकड़े भी सही प्रतीत नही होते...
पटना। कोसी नव निर्माण मंच और नदी घाटी मंच द्वारा पटना के माध्यमिक शिक्षक संघ भवन में कोसी मेची नदी जोड़ परियोजना, दावे और सवाल विषय पर परिचर्चा आयोजित हुई।
परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि इस परियोजना के फायदे गिनाए जा रहे हैं, वे नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी पर उपलब्ध डीपीआर के आंकड़ों से ही खारिज हो जा रहे हैं। इसमें उल्लेख है कि यह एक सिंचाई परियोजना है, न कि बाढ़ नियंत्रण की परियोजना है। जब पूरी परियोजना कार्यरूप में आयेगी तो कोसी से 5247 क्यूसेक पानी डायवर्ट होगा, जबकि इसी साल 7 जुलाई को 3 लाख 96 हजार क्यूसेक से अधिक पानी था और कोसी बैराज एवं तटबंध की डिजाइन 9 लाख क्यूसेक पानी का बना है। इसलिए बड़ा सवाल उठाता है कि इतने पानी से कैसे कोसी की बाढ़ कम होगी?
उसी प्रकार यह परियोजना 2.15 लाख हेक्टेयर खरीफ फसलों की सिंचाई देगी और रवि की फसल के समय जब नेपाल में हाई डैम बनेगा उस समय सिंचाई देगी। खरीफ फसल मानसून में होती है और उसी रिपोर्ट में उल्लेखित है कि इस समय सीमांचल में औसत वर्षा 55 दिन (1640 mm) होती है। जब उस क्षेत्र में बाढ़ और वर्षा हो रही होगी तो इस सिंचाई की कितनी जरूरत होगी। पूर्व में कोसी पूर्वी नहर के सिंचाई के दावे भी पूरा नहीं हो पाए, इसलिए सिंचाई पर भी प्रश्नचिन्ह है।
कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना 13 नदियों को साइफन के माध्यम से पार करेगी। इससे नया बाढ़ जलजमाव की आशंका उत्पन्न होगी। डीपीआर में उल्लेखित खरीफ में धान के उपज के क्षेत्रफल के आंकड़े भी सही प्रतीत नही होते।
वैकल्पिक उपायों पर हो विचार
परियोजना के अलावा यदि वैकल्पिक उपायों की पड़ताल हुई होती तो कोसी की छाड़न धाराओं को पुनर्जीवित कर इससे कई गुना बाढ़ का पानी डायवर्ट किया जा सकता है। इससे इस क्षेत्र में समृद्धि भी बढ़ेगी। उसी प्रकार महानंदा बेसिन की छोटी नदियों के पानी को (छिलका)चेक डैम, लिफ्ट इरिगेशन से सिंचाई मिल सकती है।
कार्यक्रम की शुरुआत सुनील सरला के कोसी गीत से हुई, परियोजना पर विस्तार से अध्ययन रिपोर्ट शोधार्थी राहुल यादुका ने रखा, पर्यावरणीय और समाजिक प्रभावों के मूल्यांकन की खामियों को प्रो विद्यार्थी विकास ने बताया, पत्रकार पुष्यमित्र, अमरनाथ झा ने वहां की नदियों की स्थिति और परियोजना के बारे में रखा।
अररिया के मो रिजवान, सुपौल से इंद्र नारायण सिंह, चंद्र मोहन यादव, गौकरण सुतिहार, सहरसा से दिल्ली वि वि के शोधार्थी रमेश कुमार व किसान नेता जवाहर निराला, जौहर, मधेपुरा से संगठन के अध्यक्ष संदीप यादव व रमन सिंह, पटना किसान संगठन के नंद किशोर सिंह, लेखक पुष्पराज, प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता कपिलेश्वर राम, सौरभ, रूपेश, मीरा, पीयूसीएल के प्रदेश महासचिव सरफराज एडवोकेट मणिलाल इत्यादि लोगों ने बातें रखी।
कांग्रेस प्रवक्ता आनंद माधव ने अपने दल के सांसदों, विधायकों को इसके बारे में बताने का भरोसा दिया। भाकपा माले के नेता कुमार परवेज, एसयूसीआई की तरफ से इंद्रदेव राय ने बात रखी। कार्यक्रम का संचालन महेंद्र यादव ने किया, कार्यक्रम में सीपीएम केंद्रीय कमिटी के सदस्य अरुण मिश्रा, पटना विश्व विद्यालय के अतिथि प्राध्यापक प्रभाकर, रिंकी कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ता धमेंद्र कुमार, जहीब अजमल, प्रमिला कुमारी, सरस्वती कुमारी इत्यादि लोग मौजूद थे।
कोसी मेची नदी जोड़ परियोजना के यदि कोई अद्यतन दस्तावेज है, जिससे कोसी की बाढ़ और सीमांचल में जरूरी पड़ने पर सिंचाई दी जा सकती है और महानंदा बेसिन की नदियों में बाढ़ नही बढ़ेगी, उसे जनता के सामने सरकार लाए। संगठन जल्द ही इस आशय का खुला पत्र जारी कर सरकार से इन सवालों का उत्तर की मांग करेगा और कोसी महानंदा बेसिन में अध्ययन के अलावे नदी संवाद आयोजित करेगा।