बेहतर आमदनी के लिए स्ट्रॉबेरीज की खेती को अपना रहे गन्ना किसान

शिशुपाल ने कहा, "पिछले साल मेरे एक रिश्तेदार ने आजमाइशी तौर पर एक बीघा जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती करनी शुरू की। उसकी फसलें अच्छी रहीं और मुनाफा भी दोगुना हुआ।

Update: 2021-03-23 02:30 GMT

अमरोहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मन की बात' में झांसी की रहने वालीं गुरलीन चावला के बारे में सुनकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक से अधिक किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर स्ट्रॉबेरी की खेती को अपना रहे हैं। ये किसान गन्ने की खेती को त्याग दे रहे हैं क्योंकि चीनी मिलों के द्वारा अकसर इन्हें भुगतान करने में देरी होती है।

प्रह्लाद कुमार और शिशुपाल अमरोहा-मेरठ बॉर्डर पर रहने वाले गन्ना किसान हैं। ये पीढ़ियों से गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं, लेकिन इस साल दोनों ने अब स्ट्रॉबेरी की खेती को अपनाने का मन बना लिया है।

शिशुपाल ने कहा, "पिछले साल मेरे एक रिश्तेदार ने आजमाइशी तौर पर एक बीघा जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती करनी शुरू की। उसकी फसलें अच्छी रहीं और मुनाफा भी दोगुना हुआ। उन्होंने हमें भी इसका बीज दिया और अब हम भी स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने वाले हैं।"

इस क्षेत्र में किसानों के लिए सबसे मुश्किल बात यह है कि इन्हें स्ट्रॉबेरी का पौधा नहीं मिल पाता है। कुछ किसानों ने हिमाचल प्रदेश से दो रुपये की कीमत पर इन पौधों की खरीददारी की है।

शिशुपाल आगे कहते हैं, "स्ट्रॉबेरी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कुछ युवा इसके पौधों को मंगाने का बिजनेस शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं और महाबलेश्वर और हिमाचल प्रदेश से लाकर इन्हें यहां बेच रहे हैं। कुछ पहले से ही बड़े शहरों में स्ट्रॉबेरी की बिक्री की व्यवस्था करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। मतलब ये कि किसान, विक्रेता और फल खरीदार सभी के लिए आय है।"

गन्ना किसानों के लिए एक और अच्छी बात यह है कि वे गóो की खेती के साथ-साथ स्ट्रॉबेरी भी उगा सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की बुआई दिसंबर में होती है और मार्च में फल आने लगते हैं। मार्च के बाद गóो की बुआई की जा सकती है।

इसके अलावा, स्ट्रॉबेरीज से पैसा तभी के तभी मिल जाता है जबकि गन्ना किसानों को चीनी मिलों द्वारा भुगतान किए जाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।

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