पृथ्वी पर जीवन बचाने के लिए गंभीरता से करनी होगी जैव विविधता बचाने की पहल
अध्ययन के अनुसार पूरी दुनिया में 77 प्रतिशत भूमि और महासागरों का 87 प्रतिशत हिस्सा मानव के सघन गतिविधियों का क्षेत्र है, इसलिए वन्यजीवन और जैव-विविधता बुरी तरीके से प्रभावित हो रहे हैं....
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
जब भी वैश्विक स्तर पर पर्यावरण की बात की जाती है तब चर्चा जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से शुरू होकर इसी पर ख़त्म हो जाती है। पर, वैज्ञानिकों के अनुसार जैव-विविधता का विनाश भी लगभग उतनी ही गंभीर समस्या है और पृथ्वी पर जीवन बचाने के लिए जल्दी ही गंभीरता से जैव-विविधता बचाने की पहल करनी पड़ेगी। इन दिनों जैव-विविधता को सुरक्षित रखने के कुछ अभिनव प्रयास किये जा रहे हैं।
बेलीज़, जिसे पहले ब्रिटिश होंडुरास के नाम से जाना जाता था, मेक्सिको और ग्वाटेमाला के बीच बसा एक दक्षिण अमेरिकी देश है। ये सभी देश अपने प्राकृतिक वर्षा वनों के लिए प्रसिद्ध हैं। बेलीज़ के पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित अनेक गैर-सरकारी संगठनों, शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने 950 वर्ग किलोमीटर के जंगल क्षेत्र को खरीद लिया है, जिससे उसे प्राकृतिक तौर पर बचाए रखा जाए और जंगलों की कटाई और कृषि के विस्तार से इसे बचाया जा सके। इसमें जैव-विविधता से समबन्धित विस्तृत अध्ययन की योजना भी है। इस क्षेत्र को बेलीज़ माया फारेस्ट का नाम दिया गया है। मेक्सिको, बेलीज़ और ग्वाटेमाला माया सभ्यता का केंद्र रहे हैं, इसीलिए इन देशों में लगातार फैले वर्षा वनों को सलवा माया के नाम से जाना जाता है, जिसका विस्तार सम्मिलित तौर पर 150000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है। बेलीज़ का 9 प्रतिशत हिस्सा इन वनों से ढका है।
बेलीज़ में पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में दूसरे देशों की तुलना में अधिक ध्यान दिया जाता है। यहाँ का लगभग 40 प्रतिशत भू-भाग संरक्षित क्षेत्र है और वर्ष 2018 में एक आयल ड्रिलिंग परियोजना को पर्यावरण के संभावित विनाश के चलते बंद कर दिया गया था। पर, वर्ष 2011 के बाद से यहाँ भी जंगलों की कटाई का काम शुरू किया गया था, हालांकी इसका दायरा और पैमाना छोटा था। बेलीज़ का कुल क्षेत्रफल 22970 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या 419000 है। बेलीज़ की राजधानी बेलमोपैन है।
बेलीज़ की खासियत यह है की यहाँ वनों के भीतर बसे वनवासियों का पूरा सम्मान किया जाता है, और उनके अधिकारों को स्वीकार किया जाता है। जंगलों को पट्टे पर देने के समय ध्यान रखा जाता है कि उनके इलाकों में कोई प्रभाव नहीं पड़े, उनके आवागमन का रास्ता बाधित नहीं हो उन्हें विस्थापित नहीं होना पड़े। बेलीज़ सरकार का मानना है कि वनवासियों के सहयोग के बिना जंगलों को बचाया नहीं जा सकता।
जैव-विविधता को सुरक्षित रखने के साथ ही प्रजातियों के विलुप्तिकरण को रोकने का मसला भी जुड़ा है। साल-दर-साल इन्टरनॅशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (आईयुसीएन) की रेड लिस्ट में विलुप्तिकरण की तरफ बढ़ती प्रजातियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस रेड लिस्ट की तो खूब चर्चा की जाती है, पर आईयूसीएन की ही दूसरी लिस्ट, ग्रीन लिस्ट के बारे में शायद ही कोई जानता हो। इस ग्रीन लिस्ट में वो संरक्षित क्षेत्र शामिल किया जाते हैं, जहां जैव-विविधता के संरक्षण का कार्य उत्कृष्ट तरीके से किया जा रहा है।
इस वर्ष के अंत में चीन में आयोजित किये जाने वाले जैव-विविधता से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में संभव है, ऐसा प्रस्ताव पारित किया जाए जिसके तहत हरेक देश अपने भू-भाग का न्यूनतम 30 प्रतिशत क्षेत्र जैव-विविधता संरक्षण के लिए संरक्षित करेगा। यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और कोस्टा रिका जैसे देश वर्तमान में भी ऐसा कर रहे हैं। पूरी दुनिया में संरक्षित क्षेत्रों की संख्या 250000 से भी अधिक है, पर इनमें से अधिकतर क्षेत्रों की हालत अच्छी नहीं है। आईयूसीएन की ग्रीनलिस्ट में दुनिया के 16 देशों के महज 59 संरक्षित क्षेत्र ही शामिल हैं। इसमें से सबसे अधिक 22 क्षेत्र अकेले फ्रांस में हैं।
कुछ देश ऐसे भी हैं, जो अपने यहाँ की स्थानिक प्रजातियों को प्राकृतिक धरोहर मान कर उस पर गर्व करते हैं। तुर्कमेनिस्तान में बड़े कुत्ते की एक नस्ल, अबाबी स्थानिक प्रजाति है, पर इसकी मांग दुनियाभर में है। इसी तरह घोड़े की एक नस्ल, अखल टेके भी स्थानिक है। वर्ष 2007 से लगातार राष्ट्रपति रहे, कुर्बानगुली बेर्द्य्मुखामेदोव को इन स्थानिक प्रजातियों पर बहुत गर्व है और वे चाहते हैं की हरेक नागरिक इन्हें राष्ट्रीय गौरव का दर्जा दे। इसके लिए उन्होंने अबाबी और अखल टेके के नाम से एक राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित किया है, इस दिन इन नस्लों से सम्बंधित अनेक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं और जीतने वाले को भारी-भरकम पुरस्कार दिए जाते हैं। राष्ट्रपति, एक लेखक भी हैं और इनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। इनमें से 272 पृष्ठों की एक पुस्तक अबाबी नस्ल पर भी है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वीन्सलैंड और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार पूरी दुनिया में 77 प्रतिशत भूमि और महासागरों का 87 प्रतिशत हिस्सा मानव के सघन गतिविधियों का क्षेत्र है, इसलिए वन्यजीवन और जैव-विविधता बुरी तरीके से प्रभावित हो रहे हैं। वर्ष 1993 से अबतक, यानि पिछले 25 वर्षों के दौरान, वन्यजीवों के मानव के प्रभाव से मुक्त वन्यजीवों के प्राकृतिक क्षेत्र में से 33 लाख वर्ग किलोमीटर पर मनुष्य की गतिविधियाँ आरम्भ हो गयीं और इस क्षेत्र की जैव-विविधता प्रभावित होने लगी। इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर की सूचि में कुल 93577 प्रजातियाँ हैं, इनमे से 26197 पर विलुप्तीकरण का खतरा है और 872 विलुप्त हो चुकी हैं।
इस अध्ययन के अनुसार, पूरी दुनिया में मानव की सघन गतिविधियों से अछूते जितने क्षेत्र हैं, उनमें से 70 प्रतिशत से अधिक केवल पांच देशों में स्थित हैं। ये देश हैं – ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्राज़ील, रूस और कनाडा। पर, दुखद तथ्य यह है कि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्राज़ील की वर्तमान सरकारों के एजेंडा में पर्यावरण संरक्षण कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए संभव है इन क्षेत्रों को भी उद्योगों, कृषि या खनन के लिए दे दिया जाए। यदि ऐसा होता है तब, पूरी धरती पर कोई भी क्षेत्र जैव-विविधता के लिए नहीं बचेगा।