जुलाई की बाढ़ और जंगलों की आग, लगातार बढ़ रहे आपदा के दायरे पीछे क्या है वजह?
वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2030 तक बाढ़ का क्षेत्र दुनिया में प्रभावी तौर पर बढ़ जाएगा क्योंकि साल-दर-साल बहुत सारे क्षेत्रों में वर्षा की तीव्रता बढ़ती जा रही है....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। इस समय भारत समेत दुनिया के लगभग आधे हिस्से की आबादी बाढ़ की विभीषिका झेल रही है और दुनिया के शेष हिस्से गर्मी से तप रहे हैं, जंगल जल रहे हैं और जंगलों से उठता धुवां उत्तरी ध्रुव तक पहुँच रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सबका कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि है। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल, नेचर, में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनिया में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र का दायरा लगातार बढ़ रहा है, और आश्चर्य यह है कि बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में जनसंख्या बृद्धि की दर दुनिया के औसत जनसंख्या वृद्धि की दर से अधिक है।
वर्ष 2000 से 2018 के बीच दुनिया के विभिन्न देशों में आई 913 बड़ी बाढो के उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने बताया है कि दुनिया में लगभग 30 करोड़ लोग बाढ़ की चपेट में सीधे आते हैं। बाढ़ की सम्भावना वाले क्षेत्रों में जनसंख्या बृद्धि की दर 34.1 प्रतिशत है, जबकि दुनिया की औसत जनसंख्या बृद्धि दर 18.6 प्रतिशत ही है। जाहिर है आने वाले वर्षों के दौरान और बड़ी आबादी बाढ़ से जूझ रही होगी।
वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2030 तक बाढ़ का क्षेत्र दुनिया में प्रभावी तौर पर बढ़ जाएगा क्योंकि साल-दर-साल बहुत सारे क्षेत्रों में वर्षा की तीव्रता बढ़ती जा रही है। बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में भारत समेत कुल 57 देश है। ये देश सभी महाद्वीपों पर हैं। दुनिया में प्राकृतिक आपदा पर किया जाने वाला कुल खर्च में से महज 13 प्रतिशत बाढ़ से बचाव के लिए किया जा रहा है।
बाढ़ की विभीषिका के बीच यूरोपियन यूनियन के कोपरनिकस ऐटमोस्फेयर मोनिटरिंग सर्विस द्वारा हाल में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार जंगलों में ऐसी भीषण आग इससे पहले कभी भी जुलाई के महीने में नहीं देखी गयी। उपग्रह के चित्रों में माध्यम से दुनियाभर में जंगलों में गर्मी के कारण लगी आग का आकलन वर्ष 2003 से लगातार किया जा रहा है। इस समय अमेरिका के साथ दक्षिणी यूरोप के ग्रीस, इटली और टर्की के जंगल भी लगातार आग की चपेट में हैं। जंगलों से निकला धुवां उत्तरी ध्रुव तक पहुँच चुका है। अब इसी चपेट में आबादी वाले क्षेत्र, बिजली संयंत्र और ऐतिहासिक इमारतें और अवशेष भी आ रहे हैं।
ग्रीस के एथेंस में वहां के पानी के स्त्रोत लेक मैराथन तक जंगलों की आग पहुँच चुकी है और अब जल आपूर्ति के बाधित होने का खतरा भी बढ़ गया है। इस वर्ष जंगलों में आग की घटनाएं उत्तरी अमेरिका, यूरोप, साइबेरिया और अफ्रीका तक में देखी जा रही हैं। इसका कारण अत्यधिक गर्मी और सूखे जैसे हालात को बताया जा रहा है। वैज्ञानिक अनेक वर्षों से तापमान बृद्धि के कारण ऐसी आपदाओं में बढ़ने की चेतावनी देते आ रहे हैं। जंगलों में भीषण आग के सिलसिले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, और वायुमंडल में कार्बोन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार बढ़ता जा रहा है।
इस वर्ष जुलाई महीने में दुनियाभर में जंगलों की आग से वायुमंडल में 343 मेगाटन कार्बोन का उत्सर्जन हो चुका है। यह किसी भी वर्ष के किसी भी महीने के उत्सर्जन से 20 प्रतिशत अधिक है। इससे पहले का रिकॉर्ड वर्ष 2014 के जुलाई में स्थापित हुआ था।
टर्की और ग्रीस में जंगलों की आग से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद माँगी जा रही है। टर्की में आग की घटनाएं पिछले वर्ष की तुलना में 4 गुना बढ़ गईं हैं और 128000 हेक्टेयर के जंगल इसकी चपेट में हैं। इटली में भी आग लगाने की घटनाओं में 4 गुना, सायप्रस में 8 गुना और ग्रीस में दोगुना बृद्धि दर्ज की गयी है। आग लगाने की घटनाओं में बृद्धि स्पेन, फ्रांस और अल्बानिया में भी दर्ज की गयी है।
दुनिया की सरकारें भले ही जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उदासीन हों, पर जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि अपना प्रभाव लगातार दिखा रहे है और दुनिया को सचेत भी कर रहा है। देखना यह है कि दुनिया कब तक इस समस्या को टालती रहेगी।