प्राकृतिक आपदाओं के मुकाबले और राहत कार्यों में महिला नेतृत्व सबसे ज्यादा कारगर, नेतृत्वकारी भूमिका सौंपनी चाहिए महिलाओं को

जलवायु परिवर्तन की चर्चाओं में हमेशा हे पुरुषों का दबदबा रहा है, जबकि हरेक अध्ययन बताते हैं कि इसका प्रभाव पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर अधिक पड़ता है और महिलायें इसका हल सहजता से निकाल सकती हैं....

Update: 2024-01-28 13:17 GMT

महेंद्र पांडेय की टिप्पणी

Global problems cannot be solved with male-centric approach, solution lies in gender equality. जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि एक प्रमुख वैश्विक समस्या है और इसे नियंत्रित करने या रोकने के नाम पर हरेक साल संयुक्त राष्ट्र द्वारा कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COP) नामक महाधिवेशन आयोजित किया जाता है। हरेक वर्ष यह आयोजन अलग-अलग देशो में किया जाता है। वर्ष 2023 में इसके 28वें अधिवेशन का आयोजन यूनाइटेड अरब एमिरात (UAE) में किया गया था और दिसम्बर 2024 में COP29 का आयोजन अज़रबैजान में किया जाना है।

हाल में ही आज़रबैजन के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव ने COP29 के आयोजन के लिए एक कमेटी का गठन किया, जिसमें 28 सदस्य थे और सभी सदस्य पुरुष थे। इस घोषणा के बाद दुनियाभर के महिला और मानवाधिकार संगठनों ने इस घोषणा की कड़ी निंदा की। शी चेंजेज क्लाइमेट (She Changes Climate) नामक वैश्विक अभियान ने सबसे तीखे शब्दों में इसकी निंदा की थी, इसकी अध्यक्ष ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से सभी प्रभावित हो रहे हैं, केवल आधी आबादी नहीं। वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतरराष्ट्रीय समझौता, पेरिस समझौता, के समय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की अध्यक्ष रही, क्रिस्टीना फिगुएरेस, ने कहा कि केवल पुरुषों से सजी इस कमेटी का गठन किसी भी तरीके से मानी नहीं है।

विरोध की प्रबल होती आवाजों के बाद राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव ने कमेटी का पुनर्गठन किया और अब इसमें 29 पुरुषों के साथ 12 महिलायें भी शामिल हैं। इस नई घोषणा के बाद शी चेंजेज क्लाइमेट की सह-संस्थापक एलिसे बकल ने कहा कि नई कमेटी लैंगिक समानता से बहुत दूर है, पर फिर भी पहले की कमेटी से बेहतर है। जलवायु परिवर्तन की चर्चाओं में हमेशा हे पुरुषों का दबदबा रहा है, जबकि हरेक अध्ययन बताते हैं कि इसका प्रभाव पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर अधिक पड़ता है और महिलायें इसका हल सहजता से निकाल सकती हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूकैसल की वैज्ञानिक वेंडी फूटे ने अपने अध्ययन में बताया है कि तमाम प्राकृतिक आपदाओं का मुकाबला करने और इसके बाद राहत कार्यों में महिला नेतृत्व सबसे अधिक कारगर होता है और पूरी दुनिया में ऐसे कार्यों का नेतृत्व महिलाओं को सौप देना चाहिए। यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण है क्योंकि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण चरम प्राकृतिक आपदाएं पहले से अधिक तीव्र और जल्दी-जल्दी आ रही हैं।

एप्लाइड इकनोमिक पर्सपेक्टिव एंड पालिसी नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जिन क्षेत्रों में महिला किसानों की संख्या अधिक होती है, उस क्षेत्र का विकास दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होता है और समुदाय का जीवनस्तर सुधरता है। इस अध्ययन को पेनसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक क्लौडिया स्मिथ के नेतृत्व में किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार ऐसे क्षेत्रों में कृषि से परे दूसरे क्षेत्रों में भी रोजगार के अधिक अवसर पैदा होते हैं, सामान्य आयु बढ़ती है और गरीबी कम होती है। महिलायें पुरुषों की अपेक्षा दूसरे कारणों से कृषि के क्षेत्र में आती हैं और फिर सामाजिक जरूरतों और पर्यावरण संरक्षण का पूरा ध्यान रखती हैं। हालांकि महिलाओं के स्वामित्व में खेतों का आकार सामान्य से कम रहता है और इससे आमदनी भी कम होती है, पर महिला किसानों की संख्या बढ़ने का असर पूरे समाज पर स्पष्ट होता है।

महिलायें समस्याओं का सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक समाधान खोजती हैं, और इसका लाभ पूरे समाज तक पहुंचता है। पर, दुखद यह है कि महिलाओं को हमेशा हाशिये पर धकेला जाता है और उनके नेतृत्व करने की क्षमता को नकारा जाता है। शायद यही कारण है कि हम आजतक किसी भी वैश्विक समस्या – तापमान वृद्धि, गरीबी, भुखमरी, युद्ध, असमानता – का कोई हल नहीं ढूंढ पाए हैं।

सन्दर्भ:

1. theguardian.com/environment/2024/jan/19/women-cop29-climate-summit-backlash

2. Wendy Foote et al, Women leadership and a community saving itself learning from disasters, health and well-being impacts of the Northern Rivers flood 2022, University of Newcastle (2023). DOI.org/10.25817/Oekg-2e83

3. Claudia Schmidt et al, Women farmers and community well-being under modeling uncertainty, Applied Economic Perspectives and Policy (2024). DOI.org/10.1002/aepp.13406

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