5 साल माथापच्ची के बाद भी रह गई कमी, अब फ्रेश डाटा संरक्षण बिल ला सकती है मोदी सरकार, ये है बड़ी वजह

संसद की संयुक्त संसदीय समिति की ओर से संसद में पेश डाटा संरक्षण बिल स्टार्ट-अप्स और टेक फर्मों के लिए अनुकूल नहीं है। इसलिए मोदी सरकार फ्रेश बिल लाने की तैयारी में है।

Update: 2022-02-18 11:42 GMT

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डाटा प्रेटेक्शन बिल पर आर मिहिंदुकुलसुरिया की रिपोर्ट 

नई दिल्ली। निजता यानि प्राइवेसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। यही वजह है कि व्यक्तिगत और गैर व्यक्तिगत डाटा संरक्षण ( Personal and non-personal data protection ) को लेकर लंबे अरसे से देश में बहस जारी है। करीब पांच साल तक डाटा संरक्षण विधेयक पर काम करने और संयुक्त संसदीय समिति की सभी सिफारिशों के साथ इसे एक विधेयक के रूप में मोदी सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में इसे पेश किया था। अब इस बारे में ताजा सूचना यह है कि इस मसौदे को वापस लेकर मोदी सरकार एक फ्रेस बिल के रूप में आगामी सत्र में संसद में पेश करने की योजना बना रही है।

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार एक नया डाटा संरक्षण विधेयक लाने की योजना में है। सरकार का मानना है कि संसद में पेश नया डेटा संरक्षण विधेयक स्टार्ट-अप और प्रौद्योगिकी कंपनियों की जरूरतों के हिसाब से उपयोगी नहीं है। बताया जा रहा है कि नया मसौदा विधेयक संयुक्त संसदीय समिति की ओर से संसद में पेश किया गया है। इसलिए केंद्र सरकार उसमें मौलिक बदलाव नहीं कर सकती है। सरकार के पास आंशिक बदलाव के विकल्प हैं। यानि सरकार जेपीसी के प्रारूपों को पूरी तरह नहीं बदल सकती है। इसलिए सरकार ने एक बेहतर विकल्प के रूप में एक नया विधेयक लाने के संकेत दिए हैं। एक ऐसा डाटा संक्षण वविधेयक जो स्टार्ट—अप्स और प्रौद्योगिकी कंपनियों की जरूरतों का भी ध्यान रख सके।

सरकार नहीं चाहती जनहितैषी डाटा संरक्षण बिल

रिपोर्ट में अधिकारियों ने बताया है कि भारत के स्टार्ट-अप और प्रौद्योगिकी तंत्र में गति बनाए रखने की जरूरत है। पिछले वर्ष अकेले 42 यूनिकॉर्न ने एक अरब डॉलर या उससे अधिक मूल्य के स्टार्ट-अप बनाए। इस लिहाज से देखें तो वर्तमान डेटा संरक्षण विधेयक इंडस्ट्री फ्रेंडली कम और नौकरशाही व्यवस्था के लिहाज से ज्यादा अनुकूल है। यानि यह उद्योगों को अपंग करने वाला मसौदा है। तय है कि सरकार जो फ्रेश बिल लाएगी वो टेक कंपनियों के अनुकूल होगी।

Bill को कृष्णा समिति ने क्यों बताया "ऑरवेलियन"

दरअसल, अगस्त 2017 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा को डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था। श्रीकृष्ण समिति ने 2018 में अपनी सिफारिशें सरकार को दे दी थी। इसके बाद आईटी मंत्रालय ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को संसद में पेश किया। इसमें ऐसे बदलाव भी शामिल थे जो श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों से काफी अलग थे। यही वजह है कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने खुद आईटी मंत्रालय के विधेयक को "ऑरवेलियन" करार दिया था। इस विधेयक पर विचार क ेलिए 2020 में, विधेयक का अध्ययन करने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों के साथ एक संयुक्त संसदीय समिति नियुक्त की गई। इसने दिसंबर 2021 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं।

JPC ने दिया था टेक कंपनियों की जिम्मेदारी तय करने पर जोर

संयुक्त संसदीय समिति अपनी सिफारिश में व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत दोनों डेटा को विधेयक में शामिल करने पर जोर दिया। साथ ही सरकार से अपेक्षा की कि वो भारतीयों से जुड़े संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा को बाहर भेजने से पहले सरकार की मंजूरी लेने जैसे प्रावधानों का विधेयक का हिस्सा बनाए। सरकार से इस बात की व्यवस्था करने को भी कहा कि डेटा उल्लंधन के बारे में बताने के लिए 72 घंटे की समय सीमा अनिवार्य शर्तों में शामिल करे। साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करने को कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूजर्स द्वारा पोस्ट की गई सामग्री की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपियों की होगी।

सरकार क्यों लाना चाहती है फ्रेश बिल

जेपीसी की इन सिफारिशों की भारत और विदेशी हितधारकों ने सख्त आलोचना की थी। आलोचनाओं में कहा गया है कि ऐसा होने का मतलब है कि विधेयक के तहत गैर-व्यक्तिगत डेटा को नियंत्रित करने का प्रयास शामिल है। सरकार की यह चिंता मूल रूप से केवल व्यक्तिगत डेटा से जुड़ा है। अगर ऐसा हुआ तो यूजर्स जो पोस्ट करेंगे उसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

इसके अलावा फेसबुक ने फरवरी की शुरुआत में यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के साथ अपनी वार्षिक फाइलिंग में भारत में डेटा स्टोरेज और ट्रांसफर से संबंधित नियामक बाधाओं के बारे में चिंता जताई है। Google की मूल कंपनी Alphabet ने भी किसी देश का नाम लिए बिना इसी तरह की चिंता व्यक्त की थी। 2019 में फेसबुक इंडिया के पॉलिसी एग्जीक्यूटिव ने कहा था कि गैर-व्यक्तिगत और व्यक्तिगत डेटा की निगरानी के लिए अलग नियामकों की आवश्यकता होगी। ऐसा करना सही नहीं होगा। यह केवल व्यक्तिगत डेटा पर लागू होता है।

IMAI ने भी जताई थी चिंता

इसके अलावा संयुक्त संसदीय समिति ( JPC ) की सिफारिशों के प्रकाशित होने के तुरंत बाद इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IMAI ) ने दि प्रिंट को ईमेल कर 17 दिसंबर के एक बयान में अपनी चिंताओं से अवगत कराया था। सरसरी तौर पर बयान में कहा गया कि बड़े पैमाने पर परामर्श के बाद संसद में पेश डाटा संरक्षण बिल में बड़े स्तर पर परिवर्तन किए गए हैं। इन परिवर्तनों में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक से डेटा संरक्षण विधेयक का शीर्षक भी शामिल है। इसके अलावा कुछ परिस्थिति में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को कुछ परिस्थितियों और डेटा लोकलाइजेशन की स्थिति में प्रकाशक मान लेने का प्रावधान बिल की मूल संरचना के मौलिक प्रावधानों के विपरीत है।

क्यों लंबे समय से लंबित है विधेयक

द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक यह विधेयक 2017 में न्यायाधीश केएस पुट्टास्वामी बनाम केंद्र सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के नतीजे के तौर पर आया है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में निजता को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी है। अपने फैसले में अदालत ने केंद्र सरकार को एक मजबूत डाटा संरक्षण कानून लाने का निर्देश दिया था। इसके बाद न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा के मार्गदर्शन में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था, जिसने जुलाई 2018 में निजी डाटा संरक्षण बिल 2018 का प्रस्ताव रखा था। समिति के तैयार मसौदे को संसद में पेश किए जाने से पहले केंद्र ने इसे सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए रखा। उसके बाद इसे जेपीसी के पास भेज दिया गया था। तब से अब तक इसकी तारीख को पांच बार बढ़ाया गया, जिसे आखिरी बार इस साल जुलाई में बढ़ाया गया था। अब इसे संसद में तो पेश कर दिया गया है, लेकिन जिसे सरकार इसलिए बदलना चाहती है, ताकि बिल को स्टार्टअप्स और टेक कंपनियों के हित में ढाला जा सके।

क्या कहता है निजी डाटा संरक्षण विधेयक-2019

डाटा संरक्षण विधेयक का मूल मसौदा दिसंबर 2019 में प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक का मकसद किसी व्यक्ति के निजी डाटा की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। खासकर निजी डाटा का इस्तेमाल और इसके प्रवाह को सुरक्षा प्रदान करना है। ताकि व्यक्ति और उसके निजी डाटा को इस्तेमाल करने वाली कंपनी के बीच भरोसा का रिश्ता कायम हो सके।

यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में द प्रिंट में प्र​काशित।

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