5 ट्रिलियन इकोनॉमी का दावा करती है मोदी सरकार, मगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था की बराबरी करने में भारत को लग जायेंगे 300 साल !
जिस तरह व्यापारी अपने सामान्य उत्पाद को भी रंगीन विज्ञापनों द्वारा विशेष बना देता है और मुनाफा कमाता है, ठीक उसी तरह मोदी सरकार अपनी नाकामियों के रंगीन सपने बेचती है, और बदले में मुनाफे की तरह जनता के वोट खरीदती है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
India will take 300 years to reach at the level of par capita GDP of United States of America. हमारे प्रधानमंत्री जी सत्ता की हरेक कमजोरी का लगातार रंगीन प्रचार करते हैं। उनके भाषणों में जिन विषयो पर लगातार देश को विश्वगुरु बताया जाता है, समझ जाइए की उन विषयों में देश खस्ताहाल है। पर्यावरण के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री जी हमारी 5000 वर्ष पुरानी परंपरा की दुहाई देते हैं और पर्यावरण संरक्षण को जीवन का अभिन्न अंग बताते हैं, दूसरी तरफ हरेक पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स में हम और पीछे पहुँच जाते हैं। वैसे भी देश के पर्यावरण संरक्षण की परंपरा आजकल हिमालय सहित पूरे देश में भूस्खलन, बाढ़, जंगलों का कटना, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और कचरे के पहाड़ में नजर आती है। प्रधानमंत्री जी ने हाल में ही कृषि और पोषण की परंपरा का जिक्र किया था, यह बात दूसरी है कि दुनिया के सबसे अधिक भूखे और कुपोषित लोग अमृत काल का जश्न मना रहे हैं और किसान खस्ताहाल हैं।
दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था, पांचवीं से तीसरे स्थान पर बढ़ती अर्थव्यवस्था और 5 ख़रब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था का जिक्र कुछ इस तरह किया जाता है, मानो अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में हम दुनिया के शिखर पर बैठे हों। कुछ अतिउत्साही मंत्री और बीजेपी कार्यकर्ता को एक ख़रब में आने वाले शून्यों की संख्या भी जनता को बता चुके हैं।
प्रधानमंत्री मोदी अर्थव्यवस्था से सम्बंधित एक और दावा लगातार करते रहे हैं – वैश्विक मंदी का असर भारत में नहीं होता। यह उसी तरह का दावा है जैसे कोविड19 के दौर में प्रचारित किया गया था कि भारतीयों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता दुनिया से बिलकुल अलग है। आजकल तो वैसे हरेक मेनस्ट्रीम टीवी चैनल सरकारी ही है, पर खांटी सरकारी, दूरदर्शन, भी बताता है कि अमेरिका की मंदी के असर से भारत का शेयर बाजार लुढ़कता जा रहा है।
मोदी जी और बड़बोली वित्त मंत्री के अर्थव्यवस्था पर तमाम लोक-लुभावन दावों के बीच विश्व बैंक ने ऐलान किया है कि यदि अर्थव्यवस्था का यही हाल रहा तो भारत को अमेरिका के अर्थव्यवस्था की बराबरी करने में अगले 300 वर्ष लगेंगे। विश्व बैंक ने वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 में कहा है, अमेरिका के वर्तमान प्रति व्यक्ति आय के एक-चौथाई तक पहुँचने में चीन को अगले 10 वर्ष, इंडोनेशिया को 70 वर्ष और भारत को 75 वर्ष लगेंगे।
इस रिपोर्ट के अनुसार साउथ कोरिया ने 25 वर्षों के भीतर ही मध्यम अर्थव्यवस्था से बड़ी अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर लिया, पर इस सफलता को दुहराने में आज के विकासशील देश अगले 50 वर्षों में भी असफल रहेंगें। इस समय मध्यम आय वर्ग में दुनिया के 108 देश हैं, जिनमें चीन, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर देश मध्यम आय वर्ग के जाल में ही फंस कर रह जायेंगे।
वर्ष 1990 के बाद से अब तक केवल 34 देश ही मध्यम आय वर्ग का जाल तोड़ कर उच्च आय वर्ग में पहुँच सके हैं – इनमें से अधिकतर देशों को यूरोपीय संघ की सदस्यता के बाद आर्थिक ताकत मिली या फिर पेट्रोलियम के नए खजाने के कारण समृद्धि मिली। इस दौर में मध्यम आय वर्ग से उच्च आय वर्ग तक पहुँचना पहले से अधिक कठिन है क्योंकि वैश्विक व्यापार के तरीके बदलते जा रहे हैं। अधिकतर देशों को समृद्धि का रास्ता विदेशी निवेश में नजर आता है, पिछली शताब्दी में आगे बढ़ने का यही परम्परागत और प्रभावी तरीका था। पर, अब विदेशी टेक्नोलॉजी के साथ ही स्वदेशी टेक्नोलॉजी का महत्व बढ़ता जा रहा है, और इस अपनाना आवश्यक है, पर अधिकतर देश विदेशी निवेश पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। भारत में भी यही मानसिकता है।
भारत समेत कुल 108 विकासशील देशों में दुनिया की कुल आबादी में से 6 अरब या 75 प्रतिशत लोग बसते हैं। इन देशों का वैश्विक जीडीपी में योगदान 40 प्रतिशत है और जीडीपी 1136 से 13845 डॉलर के बीच है। इस पूरी आबादी में से लगभग दो-तिहाई आबादी बेहद गरीब हैं। इसके साथ ही अधिकतर देश बुजुर्ग होती आबादी, कर्ज, व्यापार के तरीकों और पर्यावरण विनाश जैसी समस्याओं से घिरे हैं। इन्हीं समस्याओं के कारण मध्यम आय वर्ग से उच्च आय वर्ग तक पहुँचना पहले से अधिक कठिन होता जा रहा है।
प्रधानमंत्री जी और वित्त मंत्री दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का जितना भी ढिंढोरा पीट लें पर अन्तरनेशनल मोनिटरी फण्ड के अनुसार जिन 196 देशों के प्रति व्यक्ति जीडीपी का आकलन आईएम्ऍफ़ करता है, उसमें भारत का स्थान 141वां है। अमेरिका में प्रतिव्यक्ति जीडीपी 85370 डॉलर है, चीन में 13140 डॉलर है, जबकि भारत में यह 2730 डॉलर ही है। भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी वैश्विक औसत का भी महज 6.48 प्रतिशत है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रति-व्यक्ति जीडीपी के सन्दर्भ में भारत 37वें स्थान पर है।
जिस तरह व्यापारी अपने सामान्य उत्पाद को भी रंगीन विज्ञापनों द्वारा विशेष बना देता है और मुनाफा कमाता है, ठीक उसी तरह मोदी सरकार अपनी नाकामियों के रंगीन सपने बेचती है, और बदले में मुनाफे की तरह जनता के वोट खरीदती है।आश्चर्य यह है की सत्ता द्वारा जनता पर थोपी गयी समस्याओं और नाकामियों के दलदल में भी कमल खिल रहा है।
संदर्भ:
1. https://www.worldbank.org/en/news/press-release/2024/07/22/-middle-income-trap-hinders-progress-in-108-developing-countries
2. https://www.imf.org/en/Publications/WEO/Issues/2024/04/16/world-economic-outlook-april-2024