Air Pollution in Delhi : प्रदूषण को रोकने के लिए नाकाम होती है सरकार की पटाखों पर बैन लगाने की कोशिश, जहरीली हवा में सांस लेना हुआ मुश्किल

Air Pollution in Delhi : अक्टूबर आते ही देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर हो जाती है, किसानों द्वारा पराली जलाने से उठने वाला धुआं, वाहनों से निकलने वाले धुएं के साथ मिलकर प्रदूषण को और गंभीर बना देता है...

Update: 2022-10-25 13:42 GMT

Air Pollution in Delhi : प्रदूषण को रोकने के लिए नाकाम होती है सरकार की पटाखों पर बैन लगाने की कोशिश, जहरीली हवा में सांस लेना हुआ मुश्किल

Air Pollution in Delhi : अक्टूबर आते ही देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर हो जाती है। किसानों द्वारा पराली जलाने से उठने वाला धुआं, वाहनों से निकलने वाले धुएं के साथ मिलकर प्रदूषण को और गंभीर बना देता है। इसी दौरान दिवाली, छट और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों पर छोड़े जाने वाले पटाखे प्रदूषण को और जानलेवा बना देते हैं। इसे रोकने के लिए हर साल पटाखों पर बैन लगाया जाता है।

सरकार की प्रदूषण रोकने की कोशिशें होती है नाकाम

सरकार, कोर्ट और स्वयंसेवी संस्थानों के द्वारा इसके प्रति लोगों को जागरूक भी किया जाता है लेकिन यह कोशिशें हर साल नाकाम हो जाती हैं और हर साल लोगों को गंभीर प्रदर्शन का सामना करना पड़ता है। यह कोशिशें हर साल नाकाम क्यों हो जाती हैं। लोग अपनी ही जान के दुश्मन क्यों बने हुए हैं।

प्रदूषण से हर साल दुनिया में 90 लाख लोगों की मौत

जानकारी के लिए आपको बता दें कि प्रदूषण के कारण हर साल दुनिया में लगभग 90 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इसमें से लगभग एक चौथाई (24 लाख या कुल का 27 फीसदी) मौतें केवल भारत में ही हो जाती हैं। केवल वायु प्रदूषण के कारण ही 2016 में पूरी दुनिया में 42 लाख लोगों की मौत हुई थी। भारत जैसे देश के लिए यह शर्मनाक है कि हमारा एक भी शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप स्वच्छ वायु लोगों को उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है।

दूसरे लोगों को होती हैं स्वास्थ्य बीमारियां

देश को भी इसका भारी मूल्य चुकाना पड़ सकता है। प्रदूषण के कारण लोगों की कार्य क्षमता में कमी आती है। लोगों के बीमार पड़ने से दफ्तरों फैक्ट्रियों में कार्य दिवसों का नुकसान होता है और उत्पादन प्रभावित होता है। इससे उनका आर्थिक नुकसान होता है। प्रदूषण से होने वाले फेफड़ों के कैंसर सहित अन्य रोगों के इलाज में भी भारी धन खर्च करना पड़ता है।

पटाखों पर बैन लगाने की कोशिशें क्यों होती हैं नाकाम

अमर उजाला की खबर के अनुसार सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) में प्रोग्राम मैनेजर के रूप में कार्यरत शांभवी शुक्ला ने बताया कि केंद्र-राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकायों के पास अपने निर्णयों को लागू कराने के लिए कोई प्रभावी एजेंसी नहीं है। ज्यादातर बोर्ड अपनी क्षमता से आधे लोगों के बल पर चल रहे हैं। इससे ये अपने आदेशों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं करवा पाते जिससे ये उपाय सफल नहीं होते।

आम लोगों में पर्यावरण के प्रति पर्याप्त जागरूकता नहीं

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि आम लोगों में पर्यावरण के प्रति पर्याप्त जागरूकता नहीं है। प्रदूषण के कारण गंभीर रूप से बीमार पड़े लोग भी इससे उनके ऊपर पड़ रहे असर को लेकर जागरूक नहीं होते। सामान्य लोग प्रदूषण के कारण उनकी कार्य क्षमता पर पड़ने वाले असर, इससे उन्हें होने वाले आर्थिक और मानसिक नुकसान को लेकर सचेत नहीं हैं। प्रदूषण के असर से अनजान ऐसे लोग प्रदूषण करने से भी संकोच नहीं करते लिहाजा प्रदूषण को रोकने के सभी उपाय निष्फल हो जाते हैं।

पराली और राजनीति के कारण बढ़ रहा प्रदूषण

दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा हिस्सा किसानों के द्वारा हर साल खेतों में पराली का जलाना है। इसे रोकने के लिए किसानों को मुआवजा देने, पराली को खेतों में ही गलाकर नष्ट करने के लिए रसायनों के छिड़काव और पराली को बिजली उत्पादक संयंत्रों में खपाने को लेकर कई सुझाव दिए जा चुके हैं लेकिन इसी वर्ष पंजाब में किसानों के द्वारा खेतों में पराली जलाने की हजारों घटनाएं रोज घट रही हैं, लेकिन इस पर कोई प्रभावी रोक नहीं लग पा रही है। 

प्रदूषण के कारण होने वाले गंभीर नुकसान के बाद भी विभिन्न राजनीतिक दल राजनीतिक कारणों से इसके खिलाफ तर्क देते हैं, इससे भी लोग इन उपायों को अपनाने के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। यदि जीवन के लिए गंभीर इन विषयों को राजनीति से ऊपर रखा जा सके, और पश्चिमी देशों की तरह स्वास्थ्य को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया जा सके तो इसके बेहतर परिणाम निकल सकते हैं।

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