Birbhum Violence : 11 साल में पहली बार बैकफुट पर ममता, जानिए कैसे करेंगी नुकसान की भरपाई

बीरभूम नरसंहार ( Birbhum Violence ) में ममता बनर्जी त्वरित कार्रवाई कर विपक्ष के हाथ से यह मुद्दा छीन लेना चाहती हैं। खास बात यह है कि गुरुवार को ममता जब मौके पर पहुंचीं तो अपने साथ मुआवजे़ का चेक भी ले आई थीं। सामान्यतौर पर ऐसा नहीं होता।

Update: 2022-03-25 09:52 GMT

बीरभूम हिंसा के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटीं ममता बनर्जी

कोलकाता। पिछले 11 वर्षों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( Mamata Banerjee ) अपने गृह राज्य में इस तरह कभी घिरती नहीं दिखाई दीं, जिस तरह से बीरभूम में उन्हें भाजपा ( BJP ), कांग्रेस ( Congress ) और वामपंथी पार्टियों ( Left Parties ) ने सियासी घेरेबंदी की है। सवाल यह है कि पश्चिम बंगाल ( West Bengal ) में दशकों तक चले कम्युनिसट शासन को जिस सामूहिक नरसंहार का विरोध कर ममता ने सत्ता से बेदखल किया, क्या उसी हथियार से ममता बनर्जी खुद मात खा जाएंगी।

इसका मतलब ये नहीं है कि ममता के राज में हिंसक घटनाएं नहीं हुईं, लेकिन इस तरह से सामूहिक हिंसा की घटनाएं नहीं हुईं। भले ये घटना विरोधियों के खिलाफ नहीं है, लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इसे ममता के खिलाफ लपक लिया है। भाजपा की तरह कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां भी बीरभूम नरसंहार को लेकर सड़कों पर उतर आई हैं।

हाईकोर्ट के आदेश पर जांच सीबीआई के हवाले

दूसरी तरफ कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीरभूम मामले पर स्वत: संज्ञान लेने के बाद शुक्रवार को इस घटना की सीबीआई से जांच के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई की टीम बीरभूम पहुंच भी गई हैं।

पिछले कुछ महीनों से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की तरह राष्ट्रीय राजनीति में भी खुद को मजबूत करने के लिए सक्रिय थीं। लेकिन अपनी ही पार्टियों के दो गुटों के बीच रंजिश ने जिस तरह से बीरभूम नरसंहार की घटनाएं हुईं, उसने बंगाल को ही नहीं पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। टीएमसी के 11 वर्षों के शासनकाल के दौरान बीरभूम जिले में सामूहिक हत्या की पहली घटना है। इस घटना ने विपक्ष को उनके खिलाफ एक मजबूत हथियार दे दिया है।

सीपीआईएम के खिलाफ सामूहिक हत्याओं को ममता ने बनाया था हथियार

ऐसा नहीं है कि पंश्चिम बंगाल में सामूहिक हत्याओं की कोई घटना नहीं हुई है। लेफ्ट फ्रंट सरकार के कार्यकाल में खासकर 2000 के बाद ऐसी जो घटनाएं हुई जो सीपीआईएम के कथित अत्याचारों के खिलाफ मुद्दा बना कर ही ममता ने सत्ता में पहुंचने की राह बनाई थी। ऐसे में शायद वह अपने हथियारों से मात नहीं खाना चाहतीं। राजनीति में रुचि रखने वाले लोग जानते हैं कि ममता बनर्जी ने सीपीएम शासन के खिलाफ नानूर कांड, पश्चिम मेदिनीपुर के छोटा आंगड़िया और नंदीग्राम की सामूहिक हत्याओं को जोर शोर से उठाया था। नंदीग्राम का मसला तो इतना विवादित हुआ कि टाटा ने नैनो कपंनी प्रोजेक्ट को गुजरात में शिफ्ट कर दिया। उक्त घटना की वजह से पश्चिम बंगाल से निवेशकों ने मुंह मोड़ लिया। 11 साल बाद भी निशेकों का रूझान फिर से बहाल नहीं हो पाया है। जबकि एक साल पहले चुनाव जीतने के ममता बनर्जी इस दिशा में काफी प्रयास करती हुई दिखाई दी हैं।

तो विपक्ष के हाथ से ये मुद्दा छीन लेना चाहती हैं ममता

बीरभूम नरसंहार ( Birbhum Violence ) में ममता बनर्जी त्वरित कार्रवाई कर विपक्ष के हाथ से यह मुद्दा छीन लेना चाहती हैं। खास बात यह है कि गुरुवार को ममता जब मौके पर पहुंचीं तो अपने साथ मुआवजे़ का चेक भी ले आई थीं। सामान्यतया ऐसे मामलों में मुआवजे़ के एलान के कई दिन बाद पीड़ितों को पैसे मिलते हैं। पांच-पांच लाख के चेक के साथ ही जले हुए घरों की मरम्मत के लिए भी एक लाख का चेक पहले दिया था। लेकिन जब एक पीड़िता ने कहा कि इसमें क्या होगा, हमारी जीवनभर की पूंजी भी घर के साथ जल गई है तो ममता ने फौरन ये रकम दोगुनी यानि दो लाख कर दी।

दोषियों के खिलाफ ममता का रुख सख्त

पीडितों से बातचीत के बाद ममता ने कद्दावर टीएमसी नेता और पार्टी के ब्लॉक प्रमुख अनवारूल हुसैन के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए। रात दस बजते-बजे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। रामपुरहाट के लोगों ने पुलिस के खिलाफ लापरवाही की शिकायत की तो उन्होंने देर शाम तक रामपुरहाट थाने के प्रभारी त्रिदीप प्रमाणिक और एसडीपीओ सायन अहमद को निलंबित कर दिया। सीएम के निर्देश पर पुलिस ने गुरुवार शाम से ही पूरे राज्य में अवैध हथियारों के खिलाफ अभियान शुरू किया और रात होते-होते आसनसोल से एक अवैध कारखाना जब्त कर लिया। आज भारी मात्रा में हथियार बरामद होने की खबर आई है।

अब हम नहीं कह पाएंगे टीएमसी राज में सामूहिम हत्याएं नहीं हुई

टीएमसी ( TMC ) के एक नेता ने बताया है कि पहले हम इस बात का गर्व से दावा करते थे कि पार्टी के सत्ता में आने के बाद सामूहिक हत्याकांड की कोई घटना नहीं घटी। बीरभूम हिंसा ( Birbhum Violence ) ने में भले हमारे समर्थकों की ही मौत हुई हो, सबसे दुखद बात यह है कि इनमें बेकसूर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। इस घटना को सामूहिक हत्या मानने से इनकार नहीं कर सकते। बीरभूम के ही एक अन्य नेता का कहना है कि हमने कभी ऐसी घटना की कल्पना तक नहीं की थी।

विपक्षियों को मिला बोलने का मौका

इस घटना से अब हमारे ख़िलाफ भाजपा को कानून व्यवस्था की नाकामी का मुद्दा उठाने का मौका मिल गया है। सीपीएम और कांग्रेस के नेता भी बीरभूम की घटना को सरकार की कथित नाकामी का मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी इस घटना को बर्बर बता चुके हैं। साथ ही सीएम को सीख लेने की नसीहत दी है।

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