एक कार्टून शेयर करने की सजा 12 साल की कैद, निर्दोष प्रोफेसर ने क्लासरूम के बजाय जेल की सींखचों के पीछे गुजारा एक दशक से ज्यादा

अम्बिकेश महापात्र का मामला केवल सत्ता के दुरूपयोग और पुलिस की सत्ता के प्रति गैरकानूनी वफादारी का नहीं है, बल्कि देश के निचली अदालतें किस तरह से क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाती हैं, इसका उदाहरण भी है....

Update: 2023-01-29 07:46 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Freedom of expression and free speech is just a luxury in our country. हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश हरेक नेता लगाना चाहता है। हरेक दल के नेताओं का यही हाल है। इस समय पूरे देश का तंत्र और क़ानून व्यवस्था बीबीसी की गुजरात दंगों पर बनाई गयी डाक्यूमेंट्री रोकने में व्यस्त है। सरकार ने इसे आपातकालीन शक्तियों द्वारा सोशल मीडिया से हटा दिया है, पर प्रतिबंधित नहीं किया है। प्रतिबंधित करने का सरकारी आदेश पूरी दुनिया में प्रचारित होता तो सरकार ने पूरे देश की पुलिस को इसका जिमा दे दिया है।

हालत यह है कि डाक्यूमेंट्री देखने वाले 200 दर्शकों को रोकने के लिए 500 पुलिस वाले हथियारों से लैस होकर पहुंचते हैं। सरकार की नज़रों में डाक्यूमेंट्री तथाकथित "कोलोनियल माइंडसेट" का प्रतीक है, पर आश्चर्य यह है कि इसी सरकार को अपने विरूद्ध के हरेक समाचार को रोकना कोलोनियल माइंडसेट नहीं लगता, जबकि अंग्रेजों ने अपने विरुद्ध खबरों के प्रकाशित होने पर अंकुश लगाया था और इसी खबरों पर सजा भी दी थी।

हास्यास्पद यह है कि सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर बीबीसी की डाक्यूमेंट्री प्रतिबंधित करने के बाद शाहरुख खान की फिल्म पठान का विरोध करने वालों का ही विरोध कर रहे हैं, पर दोनों में एक समानता है, एक को सरकार ने विरोध कर हिट कर दिया है, जबकि दूसरे को बीजेपी समर्थकों ने विरोध कर सुपरहिट किया है। देश की बीजेपी सरकार का मीडिया के प्रति और अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति रवैया जगजाहिर है, और इसका विरोध समय-समय पर विपक्षी दल करते रहे हैं। पर दिक्कत यह है कि देश का एक भी बड़ा नेता अपने आलोचकों को कतई बर्दाश्त नहीं करता और यदि नेता सत्ता में हो तब तो आलोचकों को कुचलकर ही रहता है। महिला नेताओं का भी यही हाल है।

पिछले वर्ष शरद पवार की आलोचना में एक ट्वीट करने के कारण मराठी अभिनेत्री केतकी चितले को जेल में बंद किया गया था। उस समय शरद पवार महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में शामिल थे। ओड़िसा में नवीन पटनायक के आलोचकों को तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सम्बंधित एक सामान्य से कार्टून को सोशल मीडिया पर अपने मित्रों से शेयर करने के कारण प्रतिष्ठित जादवपुर यूनिवर्सिटी के केमिस्ट्री विभाग के वरिष्ठ प्रोफ़ेसर, अम्बिकेश महापात्र, को अप्रैल 2012 से पिछले सप्ताह तक जेल में रहना पड़ा।

अभी दो दिनों पहले ही इसी जादवपुर यूनिवर्सिटी में बीबीसी की डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया है। जाहिर है, प्रदर्शन से जुड़े छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी से लगाव होगा, पर इन्हीं छात्रों को अपने प्रोफ़ेसर के बिना कारण जेल में पड़े रहने से कोई परेशानी नहीं थी।

वर्ष 2012 के शुरू में ममता बनर्जी ने केंद्र में रेलवे मंत्री दिनेश त्रिवेदी को हटाकर मुकुल रॉय को मंत्री पद पर बैठाया था। अम्बिकेश महापात्र ने जिस कार्टून को सोशल मीडिया पर शेयर किया था, वह इसी से सम्बंधित था। इस कार्टून में ममता बनर्जी के साथ मुकुल रॉय खड़े है और ममता बनर्जी त्रिवेदी को "दुष्ट गायब हो जा" कहती हैं। इस कार्टून में कुछ भी अश्लील, आपत्तिजनक या असंवैधानिक नहीं था, पर जाहिर है ममता बनर्जी को और उनके समर्थकों को यह नागवार गुजरा और पुलिस और न्यायालयों ने सत्ता का गैरकानूनी तरीके से साथ दिया। इन सबके बीच एक वरिष्ठ प्रोफ़ेसर को अपने 12 वर्ष क्लासरूम में नहीं, बल्कि जेल में गुजारने पड़े।

अम्बिकेश महापात्र का मामला केवल सत्ता के दुरूपयोग और पुलिस की सत्ता के प्रति गैरकानूनी वफादारी का नहीं है, बल्कि देश के निचली अदालतें किस तरह से क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाती हैं, इसका उदाहरण भी है। अम्बिकेश महापात्र को आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत गिरफ्तार किया गया था। इस धारा को सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2015 में असंवैधानिक करार दिया था और राज्यों को निर्देश दिया था कि इसके अंतर्गत गिरफ्तार किये गए लोगों को तुरंत रिहा कर दिया जाए। वैसे भी वर्ष 2012 में गिरफ्तार किये गए अम्बिकेश महापात्र को धारा 66ए के तहत भी अधिकतम तीन वर्ष की सजा ही हो सकती थी। पर कोलकाता के अलिपोर के चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट ने सत्ता को खुश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की और अम्बिकेश महापात्र को धारा 66ए से सितम्बर 2021 में बरी किया। इसके बाद भी अम्बिकेश महापात्र को रिहा नहीं किया गया, बल्कि मजिस्ट्रेट साहब ने नारी की अस्मिता और गौरव पर प्रहार के नाम पर मामले को जिन्दा रखा। इसी महीने कलकाता उच्च न्यायालय ने अम्बिकेश महापात्र को हरेक आरोपों से बरी करते हुए रिहा किया है।

आईटी एक्ट की धारा 66ए को वर्ष 2000 में लागू किया गया था, पर सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में इसे असंवैधानिक करार करते हुए स्थगित कर दिया। राज्य सरकारें और राज्यों की पुलिस ने लगातार इस आदेश की अवहेलना की है। पिछले वर्ष पीपल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि 2015 ने दिए गए आदेश के बाद भी 11 राज्यों में 800 से अधिक लोगों को 66ए के तहत गिरफ्तार रखा गया है। 

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