दिल्ली में वायु प्रदूषण के नाम पर फिर एक नये कमीशन को मंजूरी, मगर कैसे लगायेंगे प्रदूषण पर लगाम

इस नये कमीशन में भी वही केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी या इसी तरह के संस्थानों के वैज्ञानिक होंगे जो दशकों से दिल्ली के वायु प्रदूषण पर काम कर रहे हैं, पर प्रदूषण बढ़ रहा है....

Update: 2020-10-30 08:09 GMT

आज हो चुके हैं राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के 4 साल पूरे और 6897.06 करोड़ रुपये खर्च, मगर लक्ष्य अब भी आधा-अधूरा

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश में अनेक ऐसी समस्याएं हैं, जिनपर सरकारी फाइलों में और न्यायालयों में बहुत काम काम किया जाता है, फिर भी समस्या घटने या ख़त्म होने के बदले लगातार पहले से अधिक विकराल होती जाती है। फिर एक दो वर्षों बाद फाइलें नए सिरे से चलनी शुरू होती हैं, पुरानी योजनाओं को नई चाशनी के साथ प्रस्तुत किया जाता है। प्रेस कांफ्रेंस कर बताया जाता है कि अब समस्या पूरी तरह से ख़त्म हो जायेगी।

मंत्री, प्रधानमंत्री जनता को सब्जबाग दिखाते हैं, अखबारों में बड़े-बड़े लेख आते हैं, टीवी समाचारों में आशावादी खबरें चलती हैं और इन सबके बीच समस्या पहले से भी अधिक विकराल होती जाती है। दिल्ली का वायु प्रदूषण एक ऐसी ही समस्या है, जिस पर हरेक दो-तीन वर्षों में कुछ नया किया जाता है और बताया जाता है कि अब यह समस्या बिलकुल ख़त्म हो जायेगी। फिर अगले दो साल बाद कुछ और नया किया जाता है और मंत्री जी बेशर्मी से फिर वही वक्तव्य दुहराते है, जिस दावे को दो साल पहले किया था।

29 अक्टूबर को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर बता रहे थे कि अब दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने "कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन नॅशनल कैपिटल रीजन एंड ऐडजोइनिंग एरियाज" का अध्यादेश जारी किया है, इसके बाद वायु प्रदूषण की सारी समस्या ख़त्म हो जायेगी।

दो वर्ष पहले तत्कालीन पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने नॅशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की शुरुआत करने के समय भी यही कहा था, अब वायु प्रदूषण की समस्या नहीं रहेगी। इससे पहले दिल्ली-एनसीआर के लिए ग्रेडेड रेस्पोंस एक्शन प्लान शुरू करते हुए भी ऐसे ही वायु प्रदूषण से निजात पाने की बात कही गई थी। ऐसा ही वादा एयर क्वालिटी इंडेक्स के समय भी किया गया था।

कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन नॅशनल कैपिटल रीजन एंड ऐडजोइनिंग एरियाज के बाद वर्षों से चले आ रहे एनवायर्नमेंटल पोल्यूशन कण्ट्रोल अथॉरिटी (ईपीसीए) और इसी तरह के दिल्ली एनसीआर के वायु प्रदूषण से सम्बंधित दूसरे संस्थाओं को बंद कर दिया जाएगा। अब यही कमीशन पूरी तरह से इस पूरे क्षेत्र के वायु प्रदूषण पर निगरानी रखेगा और सम्बंधित निर्देश जारी करेगा। इसे प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्यवाही का पूरा अधिकार रहेगा, और इसके आदेश के बाद किसी भी प्रदूषणकारी को पांच वर्ष के लिए जेल भेजा जा सकता है या एक करोड़ रुपये या अधिक का जुर्माना वसूला जा सकता है। इस कमीशन में दिल्ली और पड़ोसी राज्यों – हरयाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान – के प्रतिनिधि सम्मिलित रहेंगे।

इस कमीशन के अध्यक्ष का चुनाव केंद्र सरकार करेगी, जिनका ओहदा सेक्रेटरी या चीफ सेक्रेटरी से कम नहीं होगा और इसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त 17 सदस्य होंगें जिनमें कुछ नौकरशाह, कुछ तथाकथित पर्यावरण विशेषज्ञ और कुछ पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय एक्टिविस्ट होंगें। इसमें पर्यावरण मंत्रालय के सेक्रेटरी और कम से कम पांच और सम्बंधित विभागों के सेक्रेटरी या चीफ सेक्रेटरी शामिल रहेंगे। कमीशन को प्रदूषणकारी या फिर इसके निर्देशों की अवहेलना करने वालों के विरुद्ध एफआईआर का अधिकार होगा। इसे नए नियम/क़ानून बनाने का भी अधिकार होगा। कमीशन के आदेशों या निर्देशों के विरुद्ध केवल एनजीटी में याचिका दायर की जा सकेगी।

दिल्ली के वायु प्रदूषण पर सरकारी चर्चा और इसे ख़त्म करने के वादे कोई पिछले दशक की बात नहीं है, बल्कि 1970 के दशक से जनता को सरकारी झुनझुना दिखाया जा रहा है। वर्ष 1974 में आज का केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित किया गया था। तब इसका नाम जल प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण का केन्द्रीय बोर्ड था, और काम भी केवल जल प्रदूषण नियंत्रण का ही था। वर्ष 1981 में वायु अधिनियम के बाद इसे वायु प्रदूषण नियंत्रण का काम दिया गया और फिर इसी दशक के अंत में इसका नाम बदल दिया गया।

1980 के दशक के आरम्भ में दिल्ली को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित किया गया और बताया गया कि अब दिल्ली में वायु प्रदूषण ख़त्म होगा। इससे पहले भी वायु अधिनियम की घोषण के बाद भी पूरे देश की हवा साफ़ करने का दावा था। 1980 के दशक के अंत तक केन्द्रीय बोर्ड ने देश में अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की, जिसमें दिल्ली के नजफ़गढ़ नाला का पूरा जल-ग्रहण क्षेत्र शामिल किया गया, यह क्षेत्र दिल्ली के पूरे क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत है।

यह क्षेत्र आज तक अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र की सूची में शामिल है। यह एक रहस्य बना रहेगा कि क्या सरकारी महकमा पूर्वी दिल्ली जैसे क्षेत्र को, जो नजफगढ़ नाले के जल ग्रहण क्षेत्र में नहीं हैं, वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र नहीं मानता? हकीकत यह है कि पूर्वी दिल्ली का आनंद विहार क्षेत्र नजफगढ़ नाले के क्षेत्र में नहीं है, पर अधिकतर समय दिल्ली का सबसे प्रदूषित इलाका रहता है।

1980 के दशक के अंत से 1990 के दशक तक वाहन प्रदूषण को कम करने के नाम पर खूब दिखावा किया गया और हरेक बार दिल्ली को वायु प्रदूषण से मुक्त करने का दावा किया गया। इसी दौर में वाहनों में सीएनजी का उपयोग शुरू किया गया, पेट्रोल/डीजल के लिए मानक तय किये जाने लगे, पुराने वाहनों को हटाने की चर्चा की जाने लगी, और वाहनों के इंजनों में ऐसे बदलाव किये गए जिनसे उत्सर्जन कम हो।

पर साल-दर-साल वायु प्रदूषण बढ़ता रहा और हरेक वर्ष की सर्दियों में इसका सरकारी और मीडिया में उत्सव मनता रहा। हरेक सर्दियों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय, दिल्ली उच्च न्यायालय और एनजीटी से तमाम आदेश आते रहे, पर वायु प्रदूषण पर कोई असर नहीं पड़ा।

1990 के दशक के अंत से दिल्ली के वायु प्रदूषण को हरयाणा और पंजाब के कृषि अपशिष्ट को खुले में जलाने से जोड़ा जाने लगा। हरेक वर्ष नए निर्देश आते रहे, इसपार राजनीति होती रही, पर बदलाव कुछ नहीं आया। इस बार नए कमीशन की स्थापना के बाद भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इससे दिल्ली का वायु प्रदूषण कम होगा?

फिलहाल तो यही लगता है कि कोई अंतर नहीं आने वाला है। इसका सबसे बड़ा कारण है, कमीशन में बड़ी संख्या में नौकरशाहों का होना, जिन्हें वायु प्रदूषण का तकनीकी ज्ञान नहीं होगा। दूसी तरफ वायु प्रदूषण से सम्बंधित जिन विशेषज्ञों को चुना जाएगा, उनमें वही केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी या इसी तरह के संस्थानों के वैज्ञानिक होंगे जो दशकों से दिल्ली के वायु प्रदूषण पर काम कर रहे हैं, पर प्रदूषण बढ़ रहा है।

जाहिर है इन वैज्ञानिकों से आगे भी कोई आशा नहीं कर सकते हैं। सरकार ने बड़े जोर-शोर से ऐलान किया है कि कमीशन में पर्यावरण एक्टिविस्ट भी रखे जायेंगे, पर सरकारी कमीशन में वास्तविक एक्टिविस्ट तो जाहिर है नहीं रखे जायेंगे। एक्टिविस्ट के नाम पर जिनको रखा जाएगा, वे निश्चित तौर पर सरकारी नुमाइंदे से अधिक कुछ नहीं होंगे।

सवाल यह भी है कि कमीशन आखिर ऐसा नया क्या करेगा। प्रदूषणकारियों से आज भी जुर्माना वसूला जा रहा है, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने का अधिकार आज भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास है। प्रदूषण के आंकड़े आज भी मौजूद हैं। वायु प्रदूषण से सम्बंधित तमाम क़ानून हैं।

यदि सरकार को सही में वायु प्रदूषण से निपटना है तो जाहिर है कमीशन की जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी, वरना आज के दौर में प्रदूषण बढ़ता जाता है और किसी विभाग की कोई जिम्मेदारी नहीं होती।

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