Pending Court Cases : सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालत में 4.5 करोड़ केस पेंडिंग, 50 प्रतिशत जजों के पद खाली

Pending Court Cases : पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार देशभर के न्यायालयों में 15 सितंबर 2021 तक लंबित मामलों की संख्या 4.5 करोड़ से ज्यादा थी, इसमें अधीनस्थ न्यायालयों में 87.6 फीसदी मामले लंबित पाए गए हैं...

Update: 2022-09-27 07:30 GMT

Pending Court Cases : सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालत में 4.5 करोड़ केस पेंडिंग, 50 प्रतिशत जजों के पद खाली

Pending Court Cases : भारतीय न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति को लेकर हाल ही के दिनों में सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव बढ़ती हुई नजर आई है। बड़ी संख्या में लंबित मामलों के निपटान के लिए सुप्रीम कोर्ट लगातार जजों की संख्या को बढ़ाने की बात कह रही है लेकिन इसके बावजूद दोनों पक्षों के बीच चल रही रस्साकशी में जजों की नियुक्ति का मामला फंसा हुआ है। बता दें कि वर्तमान स्थिति में देश भर में लंबित मामलों की संख्या 4:30 करोड़ से भी ज्यादा है, जिनकी जल्दी से जल्दी सुनवाई के लिए जजों की संख्या को बढ़ाया जाना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट में 70 हजार से ज्यादा मामले लंबित

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार देशभर के न्यायालयों में 15 सितंबर 2021 तक लंबित मामलों की संख्या 4.5 करोड़ से ज्यादा थी। इसमें अधीनस्थ न्यायालयों (सबऑर्डिनेट कोर्ट) में 87.6 फीसदी मामले लंबित पाए गए हैं। वहीं उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों का आंकड़ा 12.3 प्रतिशत रहा। वहीं सुप्रीम कोर्ट की तो वहां लंबित मामलों की संख्या 70 हजार से ज्यादा है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार देश में 2010 और 2020 के बीच लंबित मामलों की संख्या में 2.8 फीसदी की दर से सालाना वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार अगर इसके बाद कोई नया मामला दर्ज नहीं होता तो भी सुप्रीम कोर्ट को सभी बचे मामलों को निपटाने में 1.3 वर्ष का समय लगता। वहीं हाईकोर्ट और सबऑर्डिनेट कोर्ट (अधीनस्थ न्यायालय) को लंबित मामलों को खत्म करने में 3-3 वर्ष का समय लगता।

हाईकोर्ट्स में लंबित मामले

वहीं अगर लंबित मामलों में बढ़ोतरी की बात करें तो 2019 से 2020 के बीच हाईकोर्ट्स में 20 फीसदी की दर से, अधीनस्थ न्यायालयों में 13 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई है। हालांकि लंबित मामलों में तेजी से हुई वृद्धि का एक कारण ये भी रहा कि इस दौरान कोरोना महामारी के कारण न्यायालयों में सामान्य कामकाज सीमित रहा। लंबित मामले इसलिए भी बढ़ें हैं क्योंकि क्योंकि मामलों को निपटाने की रफ्तार, नए दर्ज होने वाले मामलों की संख्या में बहुत धीमी रही।

बड़ी आबादी को कवर करने वाले कोर्ट में कम मामले लंबित

सामान्य तौर पर जिन कोर्ट्स के तहत बड़ी आबादी आती है, वहां लंबित मामलों की संख्या ज्यादा होने की संभवना होती है लेकिन कोलकाता और पटना हाई कोर्ट्स की तुलना में मद्रास, राजस्थान और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई जबकि कोलकाता और पटना हाईकोर्ट्स का क्षेत्राधिकार मद्रास, राजस्थान और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट्स से ज्यादा का है।

10 वर्षों में 45 लाख से ज्यादा मामले लंबित

रिपोर्ट के अनुसार हाईकोर्ट्स में पिछले 5 वर्ष या उस समय से लंबित मामलों का आंकड़ा 41 फीसदी है। वहीं अधीनस्थ न्यायालयों में हर 4 में से 1 मामला कम से कम पिछले 5 वर्षों से लटका हुआ है। अधीनस्थ और उच्च न्यायालयों में करीब 45 लाख मामले 10 वर्षों या उससे भी ज्यादा समय से लंबित है। बता दें कि इसमें उच्च न्यायालयों में 21 फीसदी और अधीनस्थ न्यायालयों में 8 फीसदी मामले 10 सालों से ज्यादा समय से लंबित हैं।

इन 4 अदालतों में लंबित मामलों में कमी

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार 2010 और 2020 यानि 10 साल के बीच सिर्फ 4 न्यायालयों यानि इलाहाबाद, कोलकाता, ओडिशा और जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख में बचे हुए मामलों में कमी देखी गई। वहीं इस दौरान उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई। हालांकि, पश्चिम बंगाल और गुजरात के अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों में गिरावट दर्ज की गई है। 

जजों की कमी के कारण अदालतों में सबसे ज्यादा मामले लंबित

शॉर्ट्स में जजों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। 1 सितंबर 2021 तक सुप्रीम कोर्ट में 34 जजों की संख्या में 1 पद खाली था। वहीं, हाईकोर्ट्स में जजों के कुल स्वीकृत पदों में से 42 फीसदी पद खाली थे, यानी 1098 में से 465 पद खाली थे। बता दें कि इसमें तेलंगाना, पटना, राजस्थान, ओडिशा और दिल्ली में 50 फीसदी से ज्यादा पद खाली थे। वहीं, मेघालय और मणिपुर हाई कोर्ट में कोई पद खाली नहीं था।

वहीं अगर अधीनस्थ न्यायालयों की बात करें तो 20 फरवरी 2020 तक 21 फीसदी पद खाली थे। यानी 24018 में से 5146 पद रिक्त थे। जजों की कमी की वजह से फास्ट ट्रैक कोर्ट और फैमिली कोर्ट्स (ट्रिब्यूनल्स और स्पेशल कोर्ट) को गठित किया गया लेकिन यहां भी लंबित मामलों की संख्या काफी अधिक है। यही नहीं यहां खाली पदों की संख्या भी काफी ज्यादा है। 2020 के अंत तक इन न्यायालयों में 21 हजार से ज्यादा मामले लंबित थे। वहीं ट्रिब्यूनल्स में 63 में से 39 सदस्य थे और बाकी पद खाली थे।

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