भुखमरी का कारण खाद्यान्न संकट नहीं, उसे लोगों को उपलब्ध कराने का सरकारी तरीका जिम्मेदार
भुखमरी की चपेट में पिछले वर्ष 16 करोड़ नई आबादी आ गयी, और अब ऐसे लोगों की कुल संख्या 81 करोड़ तक पहुँच गयी है, कुपोषण और भूख का सबसे अधिक असर बच्चों पर पड़ता है और उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है, इनमें भी सबसे अधिक असर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चो पर पड़ता है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। 12 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की एक-तिहाई आबादी भुखमरी और कुपोषण से ग्रस्त है। इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र की 5 संस्थाओं – वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम, फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन, इन्टरर्नेशनल फण्ड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट, यूनिसेफ और वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने संयुक्त तौर पर तैयार किया है। इसके अनुसार वर्ष 2020 में कुपोषण से ग्रस्त आबादी में 32 करोड़ लोगों की वृद्धि हो गयी, और अब कुपोषण से दुनिया में 2.37 अरब आबादी प्रभावित है। पिछले वर्ष ही यह वृद्धि, इसके पीछे के 5 वर्षों की सम्मिलित वृद्धि से भी अधिक है।
भुखमरी की चपेट में पिछले वर्ष 16 करोड़ नई आबादी आ गयी, और अब ऐसे लोगों की कुल संख्या 81 करोड़ तक पहुँच गयी है। कुपोषण और भूख का सबसे अधिक असर बच्चों पर पड़ता है और उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है। इनमें भी सबसे अधिक असर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चो पर पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी और कुपोषण के कारण दुनिया में 5 वर्ष से कम उम्र के जितने बच्चे हैं, उनमें से 22 प्रतिशत से अधिक का विकास बाधित होगा।
इंटरनेशनल फण्ड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट के अध्यक्ष गिल्बर्ट हौंग्बो के अनुसार भुखमरी और कुपोषण का कारण यह नहीं है कि खाद्यान्न की कमी है। दुनिया की पूरी आबादी के पौष्टिक भोजन के लिए जितने खाद्यान्न की जरूरत है, किसान उससे कहीं ज्यादा उपज दे रहे हैं। समस्या सरकारों के खाद्यान्न तंत्र में है, उसके वितरण में है और इसे लोगों को उपलब्ध कराने में है। यह सब सरकारी लापरवाही का नतीजा है, हालांकि कुछ देशों में गृहयुद्ध और सामाजिक असमानता भी इसका कारण है।
कुछ महीनों पहले अंतरराष्ट्रीय चैरिटी संस्था ऑक्सफैम द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कोविड 19 के कारण करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर पहुँच गए हैं, और आने वाले समय में जितने लोग वैश्विक महामारी से मरेंगे, उससे कहीं अधिक लोग भूख से मरेंगे। कोविड 19 के नियंत्रण के नाम पर खाद्यान्न आपूर्ति बाधित हो रही है और लोगों की आमदनी तेजी से घटी है, या फिर बंद हो गई है। पहले से ही बहुत सारे देशों में भुखमरी की विकट समस्या थी, पर अब यह समस्या विकराल हो चली है। अनुमान है कि अफ़ग़ानिस्तान में केवल भूख के कारण दस लाख से अधिक मौतें होंगी, जबकि यमन में यह मानवता के नाम पर धब्बा होगा। यमन में इस वैश्विक महामारी के पहले भी दो-तिहाई आबादी खाद्यान्न समस्या से जूझ रही थी।
अफ़ग़ानिस्तान में खाद्यान्न संकट इतना बढ़ गया है कि अकाल जैसे हालात हो गए हैं। वर्ष 2020 के सितम्बर तक वहां लगभग 25 लाख आबादी भूखमरी के कगार पर थी, जबकि कोविड 19 के बाद इस वर्ष 2021 के मई तक यह संख्या 35 लाख तक पहुँच गई। अनुमान है कि आने वाले समय में भूखमरी से सामान्य समय में प्रतिदिन मरने वालों के आंकड़े में 12000 लोग और जुड़ जायेंगे, और यदि ऐसा हुआ तो यह संख्या कोविड 19 के सबसे बुरे दौर, अप्रैल 2020, में महामारी से प्रतिदिन मरने वालों की संख्या से 2000 थी।
ऐसी ही हालत यमन, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, वेनेज़ुएला, वेस्ट अफ्रीका का सहेल क्षेत्र, इथियोपिया, सूडान, साउथ सूडान, सीरिया और हैती में भी है। दूसरे देशों में जाने की बंदिशों के कारण समस्या और विकराल हो रही है। वर्ष 2020 के पहले चार महीनों के दौरान यमन के दूसरे देशों में कार्यरत श्रमिकों द्वारा अपने देश भेजे जाने वाली मुद्रा में 80 प्रतिशत से अधिक की कमी दर्ज की गई है। यमन में खाने-पीने का 90 प्रतिशत से अधिक सामान दूसरे देशों से आयात किया जाता है, जो इस दौर में रुक गया है। खाद्यान्न की कमी से जो कुछ बाजार में उपलब्ध है वह बहुत महंगा है और सामान्य जनता की पहुँच से दूर है।
ऑक्सफैम के चीफ एग्जीक्यूटिव डैनी श्रीस्कंदराजा के अनुसार यह समझ में आता है कि कोविड 19 वैश्विक महामारी है, इसलिए सभी देशों की प्राथमिकता इससे निपटना है, पर सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी संगठनों को समझाना होगा कि खाद्यान्न सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है और इस और ध्यान देना ही होगा। रिपोर्ट के अनुसार केवल गरीब देशों में ही यह समस्या नहीं, बल्कि भारत और ब्राजील जैसे मध्यम आय वाले देश भी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं। सरकारों को एक निष्पक्ष और सतत खाद्य तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है, जिसके तहत सबको खाद्यान्न सुरक्षा मिले।
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के अनुसार इस वर्ष कोविड 19 के प्रभाव से दुनिया में अत्यंत भुखमरी की चपेट में 12 करोड़ से अधिक आबादी आ जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के कोविड 19 से सम्बंधित ग्लोबल फण्ड में खाद्यान्न सुरक्षा के लिए वर्ष 2020 में जितनी मुद्रा उपलब्ध है, उसका 30 प्रतिशत भी अब तक सम्बंधित देशों को उपलब्ध नहीं कराया गया है। दुनिया के अधिकतर मानवाधिकार संगठन अब गरीब देशों के पहले के कर्जे माफ़ करने की मांग कर रहे हैं। अफ्रीका के सहेल क्षेत्र के देशों में जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर पड़ रहा है और लगभग 40 लाख आबादी पलायन कर रही है। इससे संसाधनों के बंटवारे के लिए तनाव बढ़ेगा और विस्थापितों की खाद्यान सुरक्षा हमेशा के लिए खतरे में पड़ जायेगी।
दुनियाभर में कोविड 19 के कारण रोजगार की समस्या पैदा हो गई है, पर इसका सबसे अधिक असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। भारत में केंद्र सरकार और अनेक राज्य सरकारें एक बड़ी आबादी को मुफ्त में खाद्यान्न उपलब्ध कराने का जोरशोर से दावा कर रही हैं, फिर भी जमीनी वास्तविकता एकदम भिन्न है। अप्रैल 2020 में इंटरनेशनल कमीशन ऑफ़ जुरिस्ट्स ने अपने ब्रीफिंग पेपर में बताया था कि कोविड 19 के दौर में सबको खाद्यान्न के अधिकार के मामले में भारत बहुत पीछे है।
इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन के अनुसार भारत में 40 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की हालत बहुत खराब है और इनमें से अधिकतर अत्यधिक गरीबी की तरफ बढ़ रहे हैं। विश्व बैंक की गरीबी रेखा, 240 रुपये प्रतिदिन की आमदनी, के सन्दर्भ में भारत में 1 करोड़ से अधिक आबादी इससे नीचे पहुँच रही है।
भारत में कोविड 19 के दौर के पहले भी खाद्यान्न सुरक्षा और कुपोषण की स्थिति बहुत खराब थी। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में कुल 107 देशों में भारत का स्थान 94वां था। भारत को इंडेक्स में अत्यधिक भुखमरी वाली श्रेणी में रखा गया है। अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर भारत का हरेक पड़ोसी देश – चीन, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान – बेहतर स्थिति में हैं।
लन्दन के किंग्स कॉलेज और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार कोविड 19 के प्रकोप के कारण भुखमरी उन्मूलन के क्षेत्र में दुनिया ने पिछले 30 वर्षों में जितनी प्रगति की थी, वह एक झटके में समाप्त हो गयी। इससे वर्ष 2020 के अंत तक दुनिया के 8 प्रतिशत से अधिक आबादी जुड़ गयी। इस समस्या के और विकराल होने की संभावना है, क्योंकि कोविड 19 से पार पाने के बाद अधिकतर देश उद्योगों और अर्थव्यवस्था की तरफ ध्यान देंगे, और भुखमरी से मुक्ति शायद ही किसी देश की प्राथमिकता है।