दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यूनाइटेड किंगडम की 20 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीब, मोदीराज के दावों के बीच भारत का भी बुरा हाल

पीएम मोदी भले ही गरीबी उन्मूलन पर अपनी पीठ थपथपाते हों, पर उन्हीं की योजना के अनुसार देश की 58 प्रतिशत आबादी (140 करोड़ की कुल आबादी में से 80 करोड़) अत्यधिक गरीब हैं और सरकार इस आबादी को कुपोषित बना रही है...

Update: 2023-11-09 18:21 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

UN rapporteur on Extreme Poverty & Human Rights, Olivier De Schutter, slams UK Government on rising poverty. विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, यूनाइटेड किंगडम में 20 प्रतिशत आबादी गरीबी की कगार पर है, या फिर अत्यधिक गरीबी की चपेट में आकर बेसहारा जीवन बिता रही है। ब्रिटेन के जोसफ रोनट्री फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 18 लाख से अधिक परिवार, जिनमें 38 लाख आबादी है और जिनमें 10 लाख से अधिक बच्चे हैं, अपनी बुनियादी जरूरतें – भोजन, घर गर्म रखने के उपकरण, बिजली – पूरी करने में असमर्थ हैं, यानी अत्यधिक गरीब और बेसहारा हैं। इनमें से अधिकतर परिवारों की सप्ताहभर की कमाई 85 पौंड है, जिनसे बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं की जा सकती हैं।

हाल में ही एक सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हुआ था कि यूनाइटेड किंगडम की 37 प्रतिशत से अधिक आबादी चाहती है कि गरीबों की सरकारी मदद बढ़ाई जाए। यूनाइटेड किंगडम में अत्यधिक गरीब और बेसहारा लोगों को समाज में पहले से अधिक स्वीकृति मिल रही है। वर्ष 2005 में वहां की 40 प्रतिशत आबादी यह मानती की नहीं थी उनके समाज में गरीब भी हैं, पर वर्ष 2023 तक ऐसी सोच वाली आबादी 19 प्रतिशत ही रह गयी है।

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संयुक्त राष्ट्र के अत्यधिक गरीबी और मानवाधिकार के विशेषज्ञ ओलिविएर देस्चुत्टर गरीबों की स्थिति का आकलन करने युनाइटेड किंगडम के दौरे पर थे। उन्होंने कहा कि यूनाइटेड किंगडम जैसे समृद्ध देश में गरीबों की बढ़ती संख्या और बदहाल स्थिति को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार के सन्दर्भ में किये गए समझौते का उल्लंघन किया है और यह एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है। संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मानवाधिकार समझौते के आर्टिकल 9 के अनुसार हरेक देश अपने सभी नागरिकों को सारी मूलभूत सुविधाएं देने को बाध्य है। वहां 25 वर्ष से अधिक उम्र के बेरोजगार युवाओं को सरकार की तरफ से प्रत्येक सप्ताह 85 पौंड दिए जाते हैं, पर ओलिविएर देस्चुत्टर ने कहा कि तेजी से बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखते हुए यह राशि बहुत कम है और इससे बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं की जा सकती हैं।

ओलिविएर देस्चुत्टर ने कहा कि यूनाइटेड किंगडम में 20 प्रतिशत आबादी, या 1.44 करोड़ आबादी गरीबी रेखा पार कर चुकी है, यह संख्या पिछले वर्ष से 10 लाख अधिक है और यह एक गंभीर स्थिति है। उनके अनुसार यह स्थिति केवल यूनाइटेड किंगडम की ही नहीं है, बल्कि अधिकतर देश जो अपनी बड़ी अर्थव्यवस्था पर इतराते हैं, इसी स्थिति में हैं। ओलिविएर देस्चुत्टर के अनुसार, सबसे पहले तो पूंजीवाद द्वारा फैलाए गए इस भ्रम को छोड़ना पड़ेगा कि बड़ी अर्थव्यवस्था का मतलब समाज के सारे तबके का सबका विकास है – अधिकतर उदाहरण इसके विपरीत इशारा करते हैं और बड़ी अर्थव्यवस्था में आर्थिक और सामाजिक असमानता तेजी से बढ़ती है।

दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश चीन अकेला देश है जहां सरकारी आंकड़ों में ग्रामीण या शहरी क्षेत्र में रहने वाला व्यक्ति अत्यधिक गरीब की श्रेणी में आता है। चीन ने पिछले 4 दशकों तक गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में गंभीरता से काम किया है और 80 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी रेखा से बाहर किया है। वर्ष 2020 के बाद से चीन में सरकारी स्तर पर कोई भी व्यक्ति अत्यधिक गरीब नहीं है।

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमेरिका, के सेन्सस ब्यूरो द्वारा जनवरी 2023 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 तक अमेरिका में 3.79 करोड़ व्यक्ति जो कुल आबादी का 11.6 प्रतिशत हैं, गरीब हैं। जापान तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वहां वर्ष 2021 में 15.4 प्रतिशत आबादी गरीबी से जूझ रही थी। चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जर्मनी, में वर्ष 2022 में 1.73 करोड़ आबादी यानि कुल आबादी का 20.9 प्रतिशत हिस्सा गरीबी और सामाजिक प्रताड़ना से जूझ रहा है। इन आंकड़ों को जर्मनी के स्टेटिस्टिक्स विभाग ने 16 मई 2023 को एक प्रेस रिलीज़ के माध्यम से प्रकाशित किया था।

भारत अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में दुनिया में पांचवें स्थान पर है। प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद से आंकड़ों की बाजीगरी के आधार पर देश को तथाकथित विश्वगुरु बनाने की कवायद चल रही है, पर सरकारी आंकड़ों को समग्र तरीके से देखने पर गरीबी का पैमाना स्पष्ट होता है। सरकारी आंकड़ों में देश में अत्यधिक गरीबों की संख्या कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं है। पर, दूसरी तरफ वर्ष 2020 से सरकार बेहद गरीब और असहाय लोगों को 5 किलो अनाज और एक किलो दाल हरेक महीने मुफ्त दे रही है। हाल में ही प्रधानमंत्री जी ने इस योजना को पांच वर्ष और बढाने का चुनावी ऐलान किया है। ऐसे लाभार्थियों की संख्या सरकारी आंकड़ों में 80 करोड़ से अधिक है।

प्रधानमंत्री जी भले ही गरीबी उन्मूलन पर अपनी पीठ थपथपाते हों, पर उन्हीं की योजना के अनुसार देश की 58 प्रतिशत आबादी (140 करोड़ की कुल आबादी में से 80 करोड़) अत्यधिक गरीब हैं और सरकार इस आबादी को कुपोषित बना रही है। यदि मुफ्त अनाज और दाल को महीने भर हरेक दिन दो समय के खाने के सन्दर्भ में देखें तो एक समय के खाने में महज 83 ग्राम अनाज और 17 ग्राम दाल आती है। इतने से किसी को पूरा पोषण नहीं मिल सकता है।

दुनिया में गरीबी की स्थिति देखकर ओलिविएर देस्चुत्टर का कथन – “सबसे पहले तो पूंजीवाद द्वारा फैलाए गए इस भ्रम को छोड़ना पड़ेगा कि बड़ी अर्थव्यवस्था का मतलब समाज के सारे तबके का सबका विकास है – अधिकतर उदाहरण इसके विपरीत इशारा करते हैं और बड़ी अर्थव्यवस्था में आर्थिक और सामाजिक असमानता तेजी से बढ़ती है” – बिलकुल सही नजर आता है।

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