वायु प्रदूषण से अधेड़ महिलाओं में बढ़ रहा हड्डियां टूटने का खतरा यानी ऑस्टियोपोरोसिस रोग
वर्ष 2019 में शहरी क्षेत्रों में अकेले वायु प्रदूषण के कारण 18 लाख लोगों की असमय मृत्यु हो गयी – यह आंकड़ा प्रति एक लाख मौत में 61 मौतों का है। यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि दुनिया की 55 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A new study reveals that 99.999 percent of global population and 99.82 percent of land-mass is under the grip of air pollution. लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पृथ्वी का 99.82 प्रतिशत भू-भाग और 99.999 प्रतिशत आबादी वायु प्रदूषण की चपेट में है। इस अध्ययन के लिए वायु प्रदूषण का पैमाना विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पीएम2.5 के लिए निर्धारित दैनिक स्तर के लिए दिशानिर्देश, 15 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है। वायु प्रदूषण का सबसे घातक स्वास्थ्य प्रभाव एशियाई देश झेल रहे हैं।
इस अध्ययन के लिए दुनियाभर में फैले वायु प्रदूषण को मापने के 5000 से अधिक मोनिटरिंग केन्द्रों, सैटेलाईट से प्राप्त आंकड़ों, मौसम विज्ञान से सम्बंधित आंकड़ों, भौगोलिक परिस्थितियों और मशीन लर्निंग सिमुलेशन टूल्स का सहारा लिया गया है। इस अध्ययन को ऑस्ट्रेलिया और चीन के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वायु प्रदूषण के लिए निर्धारित दैनिक मानक के आधार पर यह वैश्विक स्तर पर लिया गया पहला विस्तृत अध्ययन है।
वैश्विक स्तर पर वर्ष 2019 में 70 प्रतिशत से अधिक दिनों तक वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित दैनिक स्तर से अधिक रहा। दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के देशों में वायु प्रदूषण का स्तर 90 प्रतिशत से भी अधिक दिनों तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से अधिक रहा। वर्ष 2000 से 2019 के बीच के पिछले 20 वर्षों के दौरान पीएम2.5 की हवा में सांद्रता एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया क्षेत्रों में 12.6 प्रतिशत बढाए, जबकि लैटिन अमेरिका में यह बृद्धि 15.6 प्रतिशत रही। इसी दौरान प्रदूषण के स्तर को कम करने के कारगर कदम उठाने के कारण यूरोप और अमेरिका में पीएम2.5 की सांद्रता कम हो गयी है।
वर्ष 2000 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर पीएम2.5 की औसत सांद्रता 32.8 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर आंकी गयी, जबकि पूर्वी एशिया के लिए यह औसत 50 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा। इस अध्ययन के अनुसार पूर्वी एशिया की स्थिति पीएम2.5 के संदर्भ में दुनिया में सबसे खराब है। भारत समेत दक्षिण एशिया में इन 20 वर्षों के दौरान पीएम2.5 की औसत सांद्रता 37 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर आंकी गयी, उत्तरी अफ्रीका में 30 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और ऑस्ट्रेलिया में 8.5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर सांद्रता आंकी गयी।
वर्ष 2022 के जनवरी महीने में लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर शहरी क्षेत्रों की 86 प्रतिशत आबादी, यानि 2.5 अरब लोग ऐसी हवा में सांस लेते हैं जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश प्रदूषित हवा बताते हैं। इस अध्ययन के लिए पीएम2.5 के लिए निर्धारित वार्षिक स्तर, 5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर, के संदर्भ में प्रदूषण का आकलन किया गया है।
अमेरिका के जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन को किया था और बताया था कि वर्ष 2019 में शहरी क्षेत्रों में अकेले वायु प्रदूषण के कारण 18 लाख लोगों की असमय मृत्यु हो गयी – यह आंकड़ा प्रति एक लाख मौत में 61 मौतों का है। यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि दुनिया की 55 प्रतिशत से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है।
इस अध्ययन के लिए वर्ष 2000 से 2019 के बीच दुनिया के 13000 शहरों के वायु प्रदूषण का विस्तृत आकलन किया गया। वर्ष 2019 में दुनिया के शहरों में पीएम2.5 की औसत सांद्रता 35 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी, इस सांद्रता में पिछले 20 वर्षों में कोई भी अंतर नहीं आया।
पीएम2.5 की यह सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों से 7-गुना अधिक है। इस अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर वर्ष 2000 से 2019 के बीच पीएम2.5 की एक जैसी सांद्रता में दक्षिण-पूर्व एशिया का योगदान है – केवल इस क्षेत्र में पीएम2.5 की सांद्रता बढ़ रही है जबकि शेष सभी क्षेत्रों में इसकी सांद्रता कम हो रही है।
पिछले 20 वर्षों के दौरान दक्षिण-पूर्व एशिया के शहरी क्षेत्रों में पीएम2.5 की सांद्रता 27 प्रतिशत बढी है और इसके प्रभाव के कारण अकाल मृत्यु में 33 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी है। इसी दौरान पीएम2..5 की शहरी क्षेत्रों की सांद्रता में अफ्रीका में 18 प्रतिशत, यूरोप में 21 प्रतिशत और उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में 29 प्रतिशत की कमी आंकी गयी है।
ई-क्लिनिकल मेडिसिन नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार अधेड़ उम्र की महिलाओं में हड्डियों की समस्या यानी ऑस्टियोपोरोसिस के मामले वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रहे हैं। इस अध्ययन के लिए ग्रेट ब्रिटेन की 9000 महिलाओं की हड्डियों की 6 वर्षों में 3 बार स्कैनिंग की गयी और हड्डियों के घनत्व को इन महिलाओं के घरों के आसपास वायु प्रदूषण के स्तर के साथ आकलन किया गया।
इस अध्ययन के अनुसार सामान्य वायु प्रदूषण के प्रभाव से भी ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या दुगुनी हो जाती है और हड्डियों के टूटने का ख़तरा बढ़ जाता है। प्रदूषित हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की बढ़ती सांद्रता ऑस्टियोपोरोसिस के मामले बढाने में सबसे प्रभावी है।
समस्या यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधान के स्तर पर वायु प्रदूषण की चर्चा नगण्य सी हो चली है – अब सारी चर्चा और अनुसंधान तापमान बृद्धि पर सिमट गया है। दूसरी तरफ तापमान वृद्धि का मूल कारण वायु प्रदूषण ही है। तापमान वृद्धि पर लगातार चर्चा के बाद भी कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कोई कमी नहीं आई है, इसके विपरीत हरेक वर्ष उत्सर्जन के आंकड़े पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को ध्वस्त करते जा रहे हैं। जब उत्सर्जन बढ़ रहा है, तब जाहिर है दुनिया में वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है और इससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है और लोग मर रहे हैं।