खुद कोरोना पीड़ित होने पर व्यापारी को समझ आया दर्द और अपने आलीशान ऑफिस में खुलवा दिया कोविड अस्पताल

सूरत के एक रियल एस्टेट कारोबारी कादिर शेख ने अपने शुरुआती दिनों में पैसे का काफी संकट देखा, इस कारण वे गरीबों को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वे व उनके बेटे हमेशा गरीबों-जरूरतमंदों की मदद करते हैं...

Update: 2020-07-22 10:48 GMT

जनज्वार। दुनिया में उदार लोगों की भी कमी नहीं है। ऐसी ही उदारता गुजरात के सूरत के बड़े कारोबारी कादिर शेख ने दिखाई है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद उन्हें इस बीमारी से उत्पन्न होने वाली परेशानियां समझ में आयीं और जब वे स्वस्थ हुए तो उन्होंने अपने 30 हजार वर्ग फीट के लक्जरी आफिस को कोविड अस्पताल में परिवर्तित करवाने का फैसला लिया, ताकि इस बीमारी से संक्रमित लोगों का इलाज हो सके।

कादिर शेख के इस अस्पताल में 85 कोविड बेड होंगे और रोगियों का मुफ्त इलाज होगा। सूरत के श्रेयम कांप्लेक्स में उनका 30 हजार फीट का दफ्तर है। वे इस औद्योगिक शहर में रियल एस्टेट के कारोबारी हैं।

पिछले ही महीने वे कोरोना से ठीक हो गए थे। काफी संपन्न होने के बावजूद भी अस्पताल के खर्च व हालत को देख वे दुखी हो गए। ऐसे में उन्होंने गरीब कोविड मरीजों के लिए कुछ करने का सोचा और उसकी परिणति अस्पताल के रूप में सामने आयी। इस अस्पताल में गरीब कोरोना मरीजों का इलाज होगा।

63 वर्षीय कादिर शेख ने अपना इलाज एक निजी अस्पताल में करवाया था, जहां उनको काफी खर्च वहन करना पड़ा। ऐसे में उनके दिमाग में बात आयी कि वे तो संपन्न है लेकिन जो गरीब कोविड मरीज हैं वे कैसे इलाज करवाएंगे।

कादिर शेख ने मेडिकल स्टाफ, आइसीयू सहित दूसरी सुविधाओं के लिए सूरत नगर निगम से करार भी किया है। अस्पताल बन कर तैयार हो गया है और सूरत नगर निगम के कमिश्नर बीएन पाणी और डिप्टी हेल्थ कमिश्नर डाॅक्टर आशीष नाइक ने अस्पताल का दौरा करने के बाद संचालन की मंजूरी दे दी है।

डा आशीष नाइक ने बताया है कि अस्पताल तैयार हैं और अगले कुछ दिनों में वहां मरीज रेफर किए जाएंगे। अस्पताल में डाॅक्टरों व नर्साें के लिए सेपरेट स्पेस भी तैयार किया गया है।

कादिर शेख ने अस्पताल में किचन व डाइनिंग रूप भी तैयार करवाया है ताकि लोगों के भोजन व खानपान से जुड़ी दूसरी जरूरतों का ख्याल रखा जा सके।

कादिर शेख ने अस्पताल का नाम अपनी पोती हीबा के नाम पर रखा है। कादिर शेख ने कहा है कि यह अस्पताल सबके लिए है, जाति, धर्म के नाम पर यहां कोई भेदभाव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वे चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा नहीं हुए थे, काफी आर्थिक दिक्कतें झेली और कठिन परिश्रम किया। उसके बाद सफलता मिली और पैसे कमाए, इसलिए मुश्किल वक्त में जरूरतमंदों की मदद के लिए यह फैसला लिया है। 

कादिर शेख व उनके तीन बेटे आम दिनों में गरीबों की हर तरह से मदद करते हैं।

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