हर्षवर्धन के पतंजलि के कोरोनिल का समर्थन करने पर IMA ने जताया एतराज, कहा यह पूरे देश का अपमान है

आईएमए ने कहा कि देश के स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में बनाई गई एक अवैज्ञानिक दवा का गलत और मनगढ़ंत प्रक्षेपण, जिसे बाद में डब्ल्यूएचओ ने खारिज कर दिया, पूरे देश का अपमान है।

Update: 2021-02-22 11:38 GMT

नई दिल्ली। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने पतंजलि के कोरोनिल का समर्थन करने के लिए सोमवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को आड़े हाथों लिया। कोरोनिल को कोविड-19 के उपचार के उद्देश्य से दोबारा लांच किया गया था, हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पतंजलि के इस दावे पर सवाल उठाया है। आईएमए ने कहा कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की संहिता के अनुसार, जो हर आधुनिक मेडिकल डॉक्टर के लिए बाध्यकारी है, कोई भी डॉक्टर किसी भी दवा को प्रमोट नहीं कर सकता है। हालांकि, यह आश्चर्य की बात है कि स्वास्थ्य मंत्री, जो खुद एक आधुनिक चिकित्सा डॉक्टर हैं, दवा का प्रचार करते हुए पाए गए।

आईएमए ने कहा कि देश के स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में बनाई गई एक अवैज्ञानिक दवा का गलत और मनगढ़ंत प्रक्षेपण, जिसे बाद में डब्ल्यूएचओ ने खारिज कर दिया, पूरे देश का अपमान है।

एसोसिएशन ने योगगुरु रामदेव द्वारा संचालित आयुर्वेदिक दवा फर्म पतंजलि के एक कार्यक्रम में एक चिकित्सक व स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उपस्थिति के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की नैतिकता पर सवाल उठाया।

एसोसिएशन ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (तत्कालीन एमसीआई) के तहत एक अनुच्छेद का उल्लेख किया जो एक चिकित्सक को किसी दवा को प्रमोट करने की अनुमति नहीं देता है।

आईएमए ने कहा कि धारा 6: 1: 1 के तहत, कोई डॉक्टर किसी भी व्यक्ति को किसी दवा के संबंध में अनुमोदन, सिफारिश, समर्थन, प्रमाण पत्र, रिपोर्ट या बयान अपने नाम, हस्ताक्षर के साथ नहीं दे सकता है, चाहे वह मुआवजे के लिए हो या किसी अन्य उद्देश्य के लिए।

एसोसिएशन ने कहा कि वह "मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के आचार संहिता के प्रति असम्मान" पर स्वत: संज्ञान लेने एवं हर्षवर्धन से स्पष्टीकरण मांगने के लिए एनएमसी को पत्र लिखेंगे।

गौरतलब है कि 19 फरवरी को आयोजित एक कार्यक्रम में, जहां हर्षवर्धन और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे, पतंजलि ने कोरोनिल टैबलेट को "कोविड-19 के लिए पहली साक्ष्य-आधारित दवा" बताया था।

इस कार्यक्रम में आयुर्वेदिक फर्म के सह-संस्थापक बाबा रामदेव ने दावा किया था कि आयुर्वेदिक दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से प्रमाणन मिला है, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र के एक आधिकारिक ट्वीट में इनकार कर दिया गया था।

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