मात्र 50 रूपए में मरीजों को डायलिसिस उपलब्ध करवा रहा कोलकाता का कम्युनिस्ट डॉक्टर, जमकर हो रही तारीफ

डॉ. फवाद हलीम की टीम ने लॉकडाउन की शुरु होने से अबतक 2,190 डायलिसिस प्रक्रियाओं का संचालन किया है। मरीज उन्हें 'उद्धारकर्ता' के रूप में देख रहे हैं.....

Update: 2020-06-29 11:45 GMT

जनज्वार ब्यूरो।  कोविड -19 के प्रसार को रोकने के लिए 25 मार्च को चूंकि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया था, इसलिए कैंसर और गुर्दे की बीमारियों जैसे रोगियों  को नियमित उपचार परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसके लिए  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता पश्चिम बंगाल में  आश्रित मरीजों को डायलिसिस उपलब्ध करवा रहे हैं जिसकी प्रति व्यक्ति शुल्क मात्र 50 रूपये है। इसके लिए उनकी खूब प्रशंसा भी हो रही है।

49 वर्षीय फवाद हलीम में एक एनजीओ स्वास्तिक संकल्प के तहत दक्षिण कोलकाता के पार्ट स्ट्रीट के पास एक चोटी स्टैंडअलोन डायलिसिस यूनिट चला रहे हैं। हलीम यह यूनिट अपने 60 दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ चला रहे हैं। लॉकडाउन शुरू होने के बाद से तीन डॉक्टरों और चार तकनीशियनों की हलीम की टीम ने 2,190 मरीजों को देख चुके हैं। 

इसके अलावा ऐसे समय में जब अस्पताल कोविड संक्रमण के डर से रोगियों को कथित रूप से दूर कर रहे हैं, हलीम की यूनिट कोविड-19 के नेगेटिव और पॉजिटिव सभी मरीजों को ले रही है।  एक रोगग्रस्त रोगी को परीक्षणों के लिए सरकारी बुखार क्लिनिक में भर्ती कराना पड़ता है।

फवाद हलीम हाशिम अब्दुल हलीम के बेटे हैं, जिन्होंने 29 साल तक (1982 से 2011 तक) पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर के रूप में कार्य किया था, जब ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के हाथों 34 साल का वाम मोर्चा शासन समाप्त हो गया तो हलीम जूनियर ने भाकपा (माले) के टिकट पर डायमंड हार्बर से 2019 लोकसभा चुनाव लड़ा और एक लाख से कम वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे, जबकि विजेता मुख्यमंत्री के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लगभग आठ लाख वोट मिले।

फवाद हलीम माकपा की जन राहत समिति के महासचिव भी हैं, लेकिन 2008 में स्थापित स्वास्तिक संकल्प पार्टी से संबद्ध नहीं है। हलीम कहते हैं कि यह क्षेत्र की पहली स्टैंडअलोन डायलिसिस यूनिट है, जहां मरीजों को कतार में लगना पड़ता है।

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हलीम ने 'द प्रिंट' से कहा, 'हम लोगों को सस्ती और वैज्ञानिक डायलिसिस की सुविधा देना चाहते थे जो मरीज किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। वे एक बड़ी पैसों की तंगी से गुजरते हैं। उनमें से ज्यादातर आम तौर पर खर्चों का सामना नहीं कर पाते हैं। इसलिए मेरे स्कूल के कुछ दोस्त और चचेरे भाई और मैंने इसके बारे में कुछ करने का फैसला किया। हमने 2008 में एक पांच बिस्तर की एक यूनिट शुरू की थी जिसे मैंने इसे अपने निवास स्थान पर शुरू किया था।

वह बताते हैं, 'शुरुआत में हम प्रत्येक मरीज से 350 रुपये लेते थे और हमने कभी दरों में वृद्धि नहीं की। सरकारी अस्पतालों में डायलिसिस की कीमत लगभग 900 से 1,200 रुपये हो सकती है। सरकारी चिकित्सा योजना के लाभार्थियों के लिएडायलिसिस नि: शुल्क किया जाता है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में प्रतीक्षा में बहुत अधिक समय लगता है और रखरखाव भी सही नही है। यहां हम प्रक्रियाओं को वैज्ञानिक और स्वास्थ्यकर तरीके से संपन्न करते हैं।

चूंकि भारत में कोविड -19 के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था, इसलिए फवाद हलीम और उनकी टीम ने कोरोना के पॉजिटिव और नेटगेटिव सभी के इलाज के लिए डायलिसिस की लागत को 50 रुपये प्रति प्रक्रिया तक लाने का फैसला किया।

वह कहते हैं, 'हमने कभी भेदभाव नहीं किया। ऐसे मरीज हैं जिनका हमने यहां इलाज किया और फिर लक्षणों को देखते हुए बुखार क्लीनिक भेजा। बाद में उन्होंने टेस्ट पॉजिटिव आया। ऐसे मरीज भी हैं जो नकारात्मक परीक्षण के बाद हमारे पास आए और हमने प्रक्रियाओं को पूरा किया।

हलीम कहते हैं, 'हमारे तकनीशियन और डॉक्टर प्रक्रियाओं को करते हुए सभी कोविद -19 प्रोटोकॉल और दिशानिर्देशों का पालन करते हैं। अब तक, हमारे स्टाफ में से कोई भी संक्रमित नहीं हुआ है।'

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