बिहार में जहरीली शराब से तकरीबन 100 मौतों पर नीतीश सरकार के सहयोगी भी हमलावर, शराबबंदी के औचित्य पर ही उठने लगे सवाल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पीड़ित परिवारों को कोई राहत देने से इंकार करने को लेकर उनके सहयोगी दल भी हमलावर नजर आ रहे हैं, ऐसे में सरकार के सहयोगी व विपक्ष के हमले से एक बार फिर शराबबंदी के औचित्य पर ही सवाल उठने लगे हैं....
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार। बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के छह वर्ष में जहरीली शराब से मौत की अब तक की सबसे बड़ी घटना सामने आई है। सारण जिले में जहरीली शराब पीने से पांच दिन पूर्व शुरू हुए मौत के कहर के लगातार जारी रहने से अब यह आंकड़ा 18 दिसंबर तक अस्सी के पार पहुंच गई। उधर सारण से ही सटे सीवान जिले के भगवानपुर में जहरीली शराब पीने से अब तक 6 लोगों के मौत की खबर है। हालांकि यह भी आंकड़ा अनंतिम है।
उधर जहरीली शराब के कहर बरपाने को लेकर बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में हंगामे के चलते सरकार विपक्ष के निशाने पर है। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पीड़ित परिवारों को कोई राहत देने से इंकार करने को लेकर उनके सहयोगी दल भी हमलावर नजर आ रहे हैं। ऐसे में सरकार के सहयोगी व विपक्ष के हमले से एक बार फिर शराबबंदी के औचित्य पर ही सवाल उठने लगे हैं।
सारण जिले में शराब पीने से एक साथ इतनी ज्यादा लोगों की मौत की संभवत बिहार की पहली घटना है। हालांकि जिला प्रशासन ने अभी तक मादक पदार्थ के सेवन से 26 लोगों की मौत होने की पुष्टि की है। जबकि चर्चा के मुताबिक यह संख्या अस्सी से अधिक हो सकती है। इसके पहले सबसे अधिक गोपालगंज में वर्ष 2016 में 19 एवं 2018 में 18 लोगों की संदिग्ध जहरीली शराब मे मौत हो चुकी है। अगर प्रशासन के बात को भी मानें तो 26 का आंकडा 19 से अधिक है।
20 से 40 रुपए में खरीदी गई शराब बनी मौत की वजह
सारण जिले में जहरीली शराब के रूप में इन लोगों ने 20 एवं रुपए 40 में अपनी मौत खरीदी थी। सदर अस्पताल में उपचार कराने आए एक पीड़ित ने बताया कि मशरक के बहरौली में 20 एवं 40 में शराब बिक रही थी। शराब तस्कर 15 लीटर के गैलन में शराब लेकर पॉलीथीन में 150 एमएल एवं ढाई सौ एमएल का पाउच बनाकर बेचते हैं। शराब बेचने वाले तस्कर उसमें यूरिया वाला पानी भी मिलाकर पाउच बनाते हैं। उन्होंने बताया कि खजूर के पेड़ पर लबनी में भी शराब का पाउच रखकर बेचा जाता है।
इसके पहले सारण जिले में जहरीली शराब पीने से 22 जनवरी 2022 को 16 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं 15 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। इसमें दो और लोगों की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। अमनौर और मकेर के बाद अब मढौरा के कर्णपुर में भी जहरीली शराब से तीन व्यक्तियों की मौत हो गई थी। गड़खा व अमनौर में 3 अगस्त 2022 को शराब पीने से 13 लोगों की मौत और 16 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से बीमार हो गए थे।
इसी बीच 16 दिसंबर को सीवान जिले के भगवानपुर थाना क्षेत्र में जहरीली शराब से मौतों का सिलसिला शुरू हुआ। यहां थाने के चैकीदार समेत छह की मौत की बात सामने आई है। ब्रम्हस्थान गांव में जहरीली शराब से 40 वर्षीय अमीर मांझी तथा उसके चचेरे भाई अवध मांझी के मौत की खबर सबसे पहले आई। 45 वर्षीय अवध मांझी गांव का चैकीदार था। उधर गांव के 40 वर्षीय बाली राय को इलाज के लिए सीएचसी ले जाया गया, जहां से चिकित्सकों ने जिला अस्पताल सीवान के लिए रेफर कर दिया, जहां चिकित्सकों बाली राय को मृत घोषित कर दिया।
ब्रह्मस्थान गांव के ही 65 वर्षीय महेश राय तथा इसुआपुर थाना क्षेत्र के नरहरपुर गांव के शिवपूजन साह की सुल्तानपुर ससुराल में मौत की खबर है। गांव के ही युवक राजेन्द्र कुमार की शराब पीने से गांव में मौत हो गई, जिनका परिजनों ने अंतिम संस्कार कर दिया।
थाने के मालखाने से गायब स्पिरिट से तो नहीं बनी शराब
सारण की इस घटना पर प्रशासन पहले ठंड से मौत की बात करता रहा, लेकिन आंकड़ा बढ़ने के बाद सच को कबूलना पड़ा। अब मशरक पुलिस पर आरोप लगा है कि इसके मालखाने में रखे जब्त स्पिरिट के कई ड्रम खाली हैं और इसी से शराब के धंधेबाजों ने जहरीली शराब बनाई। इस आरोप की जांच उत्पाद विभाग के मुख्य सचिव केके पाठक के निर्देश पर एक टीम कर रही है। ऐसे में अब एक बड़ा सवाल यह है कि मालखाने से गायब स्पिरिट आखिर कहां गया। सारण की ताजा घटना ने संदेह को सच में तब्दील करते दिख रही है। जिसके मुताबिक गायब स्पिरिट की ही ममद से शराब तैयार किया गया, जो गरीबों के मौत की वजह बनी।
बिहार सरकार के सहयोगी और विपक्ष दोनों हुए हमलावर
सारण में शराब से मौत के बाद सियासत तेज हो गई है। भाजपा सदन से लेकर सड़क तक आंदोलनरत है। ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार से अलग होने के बाद पहली बार भाजपा को आंदोलन के लिए एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। उधर सरकार के सहयोगी जीतन राम मांझी ने भी भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए मृतक के परिवारों को मुआवजा देने की की मांग की है। उधर सरकार की तीसरी बड़ी सहयोगी पार्टी भाकपा माले ने भी पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की मांग की है।
भाकपा माले का मानना है कि प्रशासन व शराब माफियाओं की मिलीभगत के चलते ऐसी घटनाएं हो रही हैं। इनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करे। साथ ही भाकपा माले ने भाजपा के विरोध को नाटक बताते हुए कहा है कि इसके लोग ही शराब माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं।
बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री व भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने जहरीली शराब से मृत परिवारों के परिजनों से मिलने के बाद कहा कि बिहार के तीन जिलों में जहरीली शराब से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, उनमें अधिकतर दलित, आदिवासी, गरीब और पिछड़े समाज के लोग हैं, लेकिन जीतन राम मांझी, भाकपा माले और माकपा जैसे दलों ने सत्ता में बने रहने के लिए गहरी चुप्पी साध ली। जहरीली शराब ने इनकी आत्मा को भी मार डाला है।
जन अधिकार पार्टी प्रमुख पप्पू यादव ने कहा है कि बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय सिन्हा के समधी के यहां बड़ी मात्रा में शराब बरामद हुई। फिर भी आखिर गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, नीतीश जी चूर चूर और मुर-मुर दोनों नहीं चलेगा। बीजेपी के नेता अवैध शराब के धंधे में संलिप्त हैं तो कार्रवाई कीजिए।
एलजेपी आर प्रमुख चिराग पासवान ने जहरीली शराब से मौत के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सीधे जिम्मेदार मानते हुए मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। मैं मुख्यमंत्री पर कोई कानून के उल्लंघन का नहीं बल्कि छपरा में हुई हत्याओं का दोषी होने का आरोप लगा रहा हूं।
अन्य राज्यों में भी शराब से होती रही है मौत
वर्तमान में बिहार, गुजरात, नागालैंड और मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में पूर्ण शराबबंदी लागू है। जिनमें बिहार के अलावा गुजरात में भी जहरीली शराब से मौत की घटनाएं सामने आती रही हैं। यहां जहरीली शराब से होने वाली मौतों के कई मामले सामने आए हैं। पहला प्रलेखित मामला, 1976 में, अहमदाबाद में 100 से अधिक मौतों का गवाह बना। 1989 में, वड़ोदरा में लगभग 170 और वीरमगाम में 32 लोगों की मौत हुई थी। हाल के वर्षों में, 2016 में सूरत में जहरीली शराब से 23 लोगों की मौत हुई , इसके बाद 2017 में छह लोगों की मौत हुई।
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के सांसद कुंवर दानिश अली ने एक अतारांकित सवाल का केंद्र सरकार ने जवाब दिया था। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लिखित जवाब दिया था। उन्होंने बताया था कि 2016, 2017, 2018, 2019, 2022 के दौरान नकली शराब से होने वाली मौतों का विवरण दिया था। मंत्री ने बताया था कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के डेटा के अनुसार, इन 5 सालों में नकली शराब के कारण सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 6,172 लोगों की मौत हुई थी।
सरकार के आंकड़े के अनुसार, सबसे ज्यादा मौत के मामले में मध्य प्रदेश में टॉप पर रहा। यहां 1,214 लोगों की मौत हुई थी। कर्नाटक में 909 मौतों हुई हैं। पंजाब में 725 मौतें नकली शराब पीने के कारण हुई थी। गुजरात में 5 सालों में नकली शराब से 50 मौतें हुई हैं। उत्तर प्रदेश में नकली शराब से 5 सालों में 291 लोगों की मौत हुई है। 2016 में नकली शराब से 961, 2017 में 1,354, 2018 में 1,352, 2019 में 1,264 और 2020 में 893 मौतें हुई हैं।
राज्यों में शराबबंदी कानूनों पर एक नजर
बिहार : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1 अप्रैल, 2016 को पूर्ण शराबबंदी लागू किया। नए शराबबंदी कानून में शराब के सेवन पर सात साल तक की जेल और एक लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा, नए कानून में उन लोगों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है जो अवैध शराब के निर्माण या व्यापार में लगे हैं, अगर इसके सेवन से कोई हताहत होता है। कानून को क्रूर कहा जाता है। शराबबंदी से बिहार के खजाने को 6,000 करोड़ रुपये का नुकसान का अनुमान लगाया गया। 1977-78 में जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे तब बिहार में शराबबंदी लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रहे।
हरियाणा : 1996 में जब हरियाणा जनहित कांग्रेस के भजनलाल मुख्यमंत्री थे, तब हरियाणा ने पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी थी। बंसीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा विकास पार्टी की सरकार ने 1998 में शराबबंदी हटा ली थी।
गुजरात : गुजरात में एक सत्कार कानून लागू है जो शराब के निर्माण, भंडारण, बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाता है। यह कानून 1 मई, 1960 से लागू हुआ जब गुजरात को बॉम्बे राज्य से अलग किया गया था।
महाराष्ट्र : बॉम्बे प्रोहिबिशन एक्ट, 1949 अभी भी महाराष्ट्र में लागू है, शराब के विक्रेताओं और व्यापारियों को लाइसेंस देने में राज्य में लाइसेंसिंग शासन काफी उदार है।
आंध्र प्रदेश : मद्रास राज्य ने 1952 में जब सी राजगोपालाचारी मुख्यमंत्री थे, तब पूर्ण शराबबंदी लागू की थी। आंध्र प्रदेश बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव ने 1994 में नए सिरे से शराबबंदी कानून पेश किया। 1997 में एन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने इसे रद्द कर दिया।
तमिलनाडु : मद्रास राज्य से अलग होने के बाद भी, तमिलनाडु ने तब तक पूर्ण शराबबंदी जारी रखी जब तक कि एम करुणानिधि के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार ने 1971 में इसे निरस्त नहीं कर दिया। लेकिन बाद में उसी सरकार ने 1974 में शराबबंदी लागू कर दी। एमजी रामचंद्रन के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सरकार ने शराबबंदी हटा दी।
केरल : 2014 में ओमन चांडी के कांग्रेस शासन के दौरान , केरल ने चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी लागू की। चांडी सरकार की शराब नीति के मुताबिक, केरल में बार को हर साल लाइसेंस रिन्यू कराना पड़ता था। नीति के परिणामस्वरूप 418 बार बंद हो गए। बार मालिकों ने इस नीति का पुरजोर विरोध किया। लाइसेंस प्राप्त करने के लिए बार मालिकों द्वारा कई मंत्रियों को रिश्वत दिए जाने के साथ एक बड़ा घोटाला सामने आया।
मणिपुर : मणिपुर में आरके रणबीर सिंह सरकार ने 1991 में पूर्ण शराबबंदी लागू की। 2002 में ओकराम इबोबी सिंह सरकार ने आंशिक रूप से शराबबंदी हटा ली। राज्य विधान सभा ने उसी वर्ष मणिपुर शराब निषेध (संशोधन) विधेयक पारित किया, जिसमें राज्य के पांच पहाड़ी जिलों, चंदेल, चुराचंदपुर, सेनापति, तमेंगलोंग और उखरूल में शराबबंदी हटा दी गई।
नागालैंड : नागालैंड में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध है। नागालैंड शराब पूर्ण निषेध अधिनियम (छस्ज्च्) ने 1989 में शराब के कब्जे, बिक्री, खपत और निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, विदेशियों और अनिवासी भारतीयों द्वारा शराब की खपत के लिए कुछ प्रतिबंधित परमिट हैं।
मिजोरम : मिजोरम शराब पूर्ण निषेध अधिनियम, 1995 ने शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगा दिया। 2007 में, अमरूद और अंगूर से शराब बनाने की अनुमति देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया था। लेकिन शराब पर प्रतिबंध जारी रहा। 10 जुलाई, 2014 को, राज्य विधान सभा ने मिजोरम शराब (निषेध और नियंत्रण) विधेयक, 2014 पारित किया, निषेध नीति को आसान बनाया और एमएलटीपी अधिनियम को प्रतिस्थापित किया।
लक्षद्वीप : लक्षद्वीप भारत का एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश है जहां शराब के सेवन और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है। हालांकि, बंगाराम के निर्जन द्वीप में शराब के सेवन की अनुमति है।
सर्वेक्षण : देश में 16 करोड़ से अधिक लोग पीते हैं शराब
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में 10 से 75 साल की आयु वर्ग के लगभग 16 करोड़ लोग (14.6 प्रतिशत) शराब पीते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में शराब का सबसे ज्यादा सेवन किया जाता है। एम्स द्वारा यह सर्वे 36 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में किया गया था, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रीय स्तर पर 186 जिलों के 2 लाख 111 घरों से संपर्क किया गया और 4 लाख 73 हजार 569 लोगों से इस बारे में बातचीत की गई।
कुल 12 महीनों की अवधि में लगभग 2.8 प्रतिशत यानी कि लगभग 3 करोड़ 1 लाख लोगों ने भांग या अन्य चीजों का इस्तेमाल किया। भारत में पांच में एक व्यक्ति शराब पीता है। सर्वे के अनुसार 19 प्रतिशत लोगों को शराब की लत है। जबकि 2.9 करोड़ लोगों की तुलना में 10-75 उम्र के 2.7 प्रतिशत लोगों को हर रोज ज्यादा नहीं तो कम से कम एक पेग जरूर चाहिए होता है।
सर्वे में पहली बार महिलाओं से जुड़े आंकड़े भी शामिल किए गए। इसके अनुसार जहां 27 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं वहीं शराब का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या करीब 2 प्रतिशत है। इतना ही नहीं करीब साढ़े 6 प्रतिशत महिलाएं ऐसी भी हैं जिनकी शराब पर निर्भरता इतनी ज्यादा है कि उन्हें इलाज की जरूरत है।