Lumpy Skin Disease: लंपी वायरस से गायों पर आए प्रकोप से बचाने के लिए हिमालय की जड़ी बूटियों एवं गौ घृत से दी आहुतियां

Rajasthan News : इस बीमारी से निवारण के लिए हिमालय की जड़ी बूटियों एवं गाै घृत से आहुतियां दी गई, गायत्री शक्तिपीठ सगवाड़ा के पंचकोश सावित्री साधना शिविर की शुरुआत गोरेश्वर तीर्थ स्थित मोरन नदी के घाट पर पूजा-अर्चना के साथ हुई...

Update: 2022-09-23 10:12 GMT

Rajasthan News : लंपी वायरस से गौमाता पर आए प्रकोप से बचाने के लिए हिमालय की जड़ी बूटियों एवं गौ घृत से दी आहुतियां

Rajasthan News : पिछले कुछ माह से भारतीय मवेशियों में खतरनाक लंपी वायरस का खतरा तेजी से फैल रहा है। लेकिन केंद्र और राज्यों की सरकारें संभावित दुष्परिणाम से पूरी तरह बेखबर हैं। अभी तक देश के आठ राज्यों में 17 हजार से अधिक मवेशियों की मौत हो चुकी है। इनमें अधिकांश मौतें गायों की हुई हैं। गायों व भैंसों में लंपी वायरस तेजी से फैलने से भारत पर दुग्ध संकट का खतरा भी मंडराने लगा है। एक अनुमान के मुताबिक दुग्ध उत्पादन में 15 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है।

आठ राज्यों में लंपी वायरस का प्रभाव अधिक

लंपी वायरस का सबसे ज्यादा प्रभाव देश के आठ राज्यों में है। इनमें नंबर वन पर राजस्थान हैं। दूसरे नंबर पर गुजरात है। उसके बाद इस वायरस से पीड़ित राज्यों में पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार और मध्य प्रदेश है। वर्तमान लंपी वायरस अप्रैल 2022 में पाकिस्तान के रास्ते सबसे पहले राजस्थान पहुंचा। उसके बाद गुजरात होते हुए अब आठ राज्यों में फैल गया है।

हिमालय की जड़ी बूटियों एवं गाै घृत से दी गई आहुतियां

लंबे वायरस से बचाव के लिए जगह जगह पर टीकाकरण शुरू हो गए हैं। इस बीमारी से निजात पाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं इस बीमारी से निवारण के लिए हिमालय की जड़ी बूटियों एवं गाै घृत से आहुतियां दी गई। गायत्री शक्तिपीठ सगवाड़ा के पंचकोश सावित्री साधना शिविर की शुरुआत गोरेश्वर तीर्थ स्थित मोरन नदी के घाट पर पूजा-अर्चना के साथ हुई। अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार की ओर से आंचलिक कार्यालय पुष्कर के माध्यम से गायत्री शक्तिपीठ श्री रामनगर में पंचकोश सावित्री साधना के साथ नव दिवस शरीर शुद्धि, मन शुद्धि एवं आत्मपुष्टि शिविर का शुभारंभ हुआ। उपजोन प्रभारी घनश्याम पालीवाल व केआर शर्मा के सानिध्य में प्रारंभ हुए शिविर के पहले दिन साधकों का तड़के 3 बजे जागरण कर सामूहिक उपासना, ध्यान, पंच कोशीय ध्यान व ब्राह्मी प्राणायाम करके नक्षत्र वाटिका में सामूहिक विश्व मंगल की कामना से सूर्य को अर्घ्य दिया।

घनश्याम पालीवाल साहब ने दी जानकारी

दीप महायज्ञ ऋषि तर्पण, विनियोग, मार्जन और अग्रह क्रिया करके संपन्न हुआ। संगोष्ठी में अभ्यास के बाद घनश्याम पालीवाल साहब ने बताया कि मानव शरीर में पंचरत्न, पंचकोश, पंचदेव, पंचतत्व और पंचभूत स्व-देवता के रूप में विद्यमान हैं, जिनकी निरंतर साधना से नाभि, नाभि का जागरण होता है। चक्र, मूलाधार चक्र, आज्ञा चक्र और स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होते हैं। इस अवसर पर मुख्य प्रबंध ट्रस्टी नारायण लाल पंड्या, सहायक प्रबंध ट्रस्टी किशोर कुमार भट्ट, हरि मुख भट्ट, आसपुर मुख्य प्रबंधक रामचंद्र मेहता, सहायक प्रबंध ट्रस्टी अमृतलाल कलाल, शिवराम कलाल, प्रवक्ता दीपक कुमार जोशी, तुलसीराम व्यास सहित बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, राजसमंद, उदयपुर, दिल्ली, मध्य प्रदेश व गुजरात से आए शिविरार्थियों ने भाग लिया। गायत्री परिवार के जिला समन्वयक भूपेंद्र पंड्या ने जानकारी दी कि सर्व पितृ अमावस्या के दिन सभी शिविरार्थी वागड़ प्रयाग तीर्थ बेनेश्वर धाम जाएंगे और मार्गदर्शन में प्रात: सामूहिक जप, ध्यान, योग, यज्ञ और श्राद्ध करेंगे।

लंपी वायरस का इतिहास

दुनिया में लंपी स्किन डिजीज का पहला केस अफ्रिकी देश जाम्बिया में 1929 में मिला था। 1943-45 के बीच यह जिम्बॉबे, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका में फैल गया। 1949 में साउथ अफ्रीका में एलएसडी की वजह से 80 लाख मवेशी प्रभावित हुए थे। अफ्रीका महाद्वीप के बाहर पहली बार लंपी बीमारी 1989 में इजराइल में फैला था। 2012 के बाद ये मिडिल ईस्ट, यूरोप और सेंट्रल और वेस्ट एशिया में फैला। जुलाई 2019 में बांग्लादेश के साथ इसने साउथ एशिया में एंर्टी की। अगस्त 2019 में भारत में लंपी का पहला केस मिला था। ताजा मामला अप्रैल में पाकिस्तान से पहले राजस्थान पहुंचा और उसके बाद गुजरात। अभी तक यह देश के आठ राज्यों में फैल चुका है।

भारत में लंपी वायरस

भारत में फिलहाल लंपी से सुरक्षा के लिए गोट पॉक्स.वायरस वैक्सीन लगाई जा रही है। नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड ने लंपी से बचाव के लिए गुजरात, राजस्थान और पंजाब को गोट पॉक्स वैक्सीन की 28 लाख डोज भेजी हैं। केंद्र सरकार ने लंपी के लिए लंपीप्रो बैकएंड नाम से एक नई स्वदेशी वैक्सीन लॉन्च की है। इसे इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च की हिसार और बरेली यूनिट ने विकसित किया है।

Tags:    

Similar News