Secret of Long Life : जानिए कैसे तेज चाल चलने से आपकी उम्र बढ़ सकती है? क्या कहता है वैज्ञानिकों का अध्ययन?

Secret of Long Life : एक नए अध्ययन में पता चला है कि रोजमर्रा के कामों के दौरान जो लोग तेज कदमों से चलते हैं, उनके उम्र लंबी होने की संभावना ज्यादा होती है। रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के डायबिटीज रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है...

Update: 2022-04-27 07:30 GMT

Secret of Long Life : जानिए कैसे तेज चाल चलने से आपकी उम्र बढ़ सकती है?

Secret of Long Life : जन्म (Birth) ही मौत की गारंटी (Guarantee) है, पर मनुष्य का स्वभाव (Human Behavior) है कि वह अधिक से अधिक लंबा जीवन (Long Life) जीना चाहता है। अब एक अध्ययन (Research) में यह बात सामने आयी है कि जितना तेज चलेंगे, उतना ज्यादा जिएंगे। हालांकि अब तक इंसान के जीने और ज्यादा जीने के बारे में बहुत सारे रहस्यों से पर्दा नही हट सका है। लेकिन वैज्ञानिक (Scientist) इस बात को लेकर लगातार शोध शोध कर रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है कि कोई 105 साल तक स्वस्थ रहता है जबकि किसी की मौत 65 साल में ही हो जाती है।

डचेज वैली में क्लेयर रोथ की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी तरह के एक नए अध्ययन में पता चला है कि रोजमर्रा के कामों के दौरान जो लोग तेज कदमों से चलते हैं, उनके उम्र लंबी होने की संभावना ज्यादा होती है। रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन (Britain) की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी (Leicester University) के डायबिटीज रिसर्च सेंटर (Diabetes Research Centre) के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। इस शोध के अनुसार काम करने के दौरान जो लोग तेजी से कदम रखते हैं उनके लंबा जीवन जीने की संभावना बढ़ जाती है, फिर चाहे वे शारीरिक रूप से सामान्य गतिविधि ही करते हों।

उम्र बढ़ाने में कैसे मदद करती है तेज चाल?

वैज्ञानिकों के अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि जो व्यक्ति तेज चलते हैं उसके क्रोमोसोम की सिरे लंबे होते हैं। इन सिरों या अंतखंड का उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में अहम योगदान होता है। जब कोशिकाओं का विभाजन होता है तो ये अंतखंड ही क्रोमोसोम की सुरक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए यह यह कुछ वैसा ही है जैसे जूते के फीते के सिरों पर प्लास्टिक का कवर लगा होता है जो उन्हें खुलकर बिखरने से रोकता है।

आपको बता दें कि हमारी कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होती रहती हैं. जितना ज्यादा उनका विभाजन होता है, उतना ही अंतखंड छोटे होते जाते हैं। एकबार ये अंतखंड पूरी तरह खत्म हो जाता है तो कोशिकाओं का विभाजन रुक जाता है और वे मर जाती हैं। जब कोशिकाएं मर जाती हैं तो उत्तकों का क्षरण शुरू हो जाता है। इसलिए अंतखंडों की लंबाई अहम है क्योंकि जितना ज्यादा वे कोशिका-विभाजन को झेल पाते हैं, उतनी ज्यादा देर तक कोशिकाएं अपना काम करती रहती हैं।

कैसे किया गया लंबे जीवन के रहस्य पर अध्ययन?

कम्युनिकेशंस बायोलॉजी नामक पत्रिका में शोधकर्ताओं का यह अध्ययन छपा है. इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने चार लाख पांच हजार यूके बायोबैंक हिस्सेदारों से उनके चलने की आदतों के बारे में बात की थी। इस दौरान उन्होंने समझना चाहा था कि चाल की तेजी का अंतखंडों की लंबाई से क्या संबंध है।

इस अध्ययन में शामिल लोगों में से लगभग आधे ऐसे थे जिनकी चाल औसत थी। 40 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि वे तेज चलते हैं और 6 प्रतिशत ने धीमी चाल से चलने की बात कही थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों ने तेज चाल की बात कही थी, उनके अंतखंड धीमी चाल वाले लोगों से ज्यादा लंबे थे।

जब 86 हजार लोगों के एक अन्य नमूने का अध्ययन किया गया तब भी इस नतीजे की पुष्टि हुई। इन लोगों की चाल को एक डिवाइस की मदद से आंका गया था इसमें पता चला कि जितनी ज्यादा तेज लोगों के चलने की रफ्तार थी, उतनी ही ज्यादा अंतखंडों की लंबाई भी थी।

 तेज चलना किसी भी व्यक्ति के हृदय और श्वसनतंत्र के स्वस्थ होने का संकेत देता है

शोधकर्ता और लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक थॉमस येट्स कहते हैं कि उनके दल ने दौड़ने या संतुलिन खाने आदि के बजाय अंतखंडों की लंबाई पर ही ध्यान दिया क्योंकि एक अन्य अध्ययन में उन्हें पता चला था कि ज्यादा तेज चलने वाले लोग ज्यादा स्वस्थ होते हैं। अन्य अध्ययन में इस टीम ने पाया था कि जो तेज चलने वाले लोग स्वास्थ्य का ज्यादा ध्यान नहीं रखते हैं वे उनके मरने की संभावना उन धीमा चलने वाले लोगों से कम होती है जो स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं। इसमें एकमात्र अपवाद धूम्रपान करने वालों का था। येट्स यह भी बताते हैं कि आप लोगों से पूछ सकते हैं कि वे क्या खाते हैं, वे कितना सक्रिय रहते हैं और कितना सोते हैं। येट्स के मुताबिक तेज चलना किसी भी व्यक्ति के हृदय और श्वसनतंत्र के स्वस्थ होने का संकेत देता है, जो सीधे तौर पर लंबा जीने से जुड़ा है क्योंकि उन्हें सांस या दिल के रोग होने की संभावना कम होती है.

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