Shocking Situation in Bihar Hospitals : बिहार के अस्पतालों के बारे में CAG ने जो कहा है उसे सुनकर आप अपना सिर पकड़ लेंगे, जानिए इस रिपोर्ट में क्या है?

Shocking Situation in Bihar Hospitals : विधानसभा में पेश किए गए इस CAG की रिपोर्ट के अनुसार साल 2013 और 2018 तक के आंकड़े बताते हैं कि स्वास्थ्य संकेतकों के मामले में बिहार राष्ट्रीय औसत से पीछे चल रहा है।

Update: 2022-03-31 13:56 GMT

Shocking Situation in Bihar Hospitals : बिहार के अस्पतालों में घूमता रहता है कुत्तों का झुंड

Shocking Situation in Bihar Hospitals : बिहार विधानसभा में बुधवार (30 मार्च) को Comptroller and Auditor General of India (CAG) की रिपोर्ट सरकार की ओर से पेश की गई। CAG की रिपोर्ट ने बिहार बिहार (Bihar Government) के स्वास्थ्य महकमे की कलई खोलकर रख दी है। कैग (CAG) की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2005 से लेकर 2021 तक बिहार में स्वास्थ्य के हालात में लगभग कोई फर्क नहीं पड़ा है। इस रिपोर्ट में रिपार्ट में बिहार सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं।

बिहार विधानसभा (Vidhan Sabha) में पेश किए गए इस CAG की रिपोर्ट के अनुसार साल 2013 और 2018 तक के आंकड़े बताते हैं कि स्वास्थ्य संकेतकों के मामले में बिहार राष्ट्रीय औसत से पीछे चल रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार के जिला अस्पताल खस्ता हाल हैं वहां पर्याप्त मात्रा में बेड तक उपलब्ध नहीं हैं। अस्पतालों में बेडों की स्थिति के मामले में यह राष्ट्रीय औसत से बिहार के अस्पतालों में 52 प्रतिशत से 92 प्रतिशत तक कम बेड उपलब्ध हैं।

आप इससे ही अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार में आपात स्थिति में आम लोगों का इलाज कैसे होता है। इसी स्थिति का फायदा उठाकर बिहार के निजी अस्पताल जनता की गाढ़ी कमाई को इलाज के नाम पर वसूल रहे हैं और अपनी बंपर कमाई कर रहे हैं।

कैग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के गृह जिले बिहारशरीफ (Biharsharif) और राजधानी पटना (Patna) के जिला अस्पताल को छोड़ दें तो बाकी जिलों में 2009 में स्वीकृत बेडों के केवल 24 से 32% ही बेड उपलब्ध हैं। बेडों की कमी के कारण ज्यादातर अस्पतालों में मरीजों को जमीन पर लिटाकर ही इलाज किया जाता है।

आप को बता दें कि सरकार ने वर्ष 2009 में अस्पतालों में बेड की संख्या को स्वीकृति दी थी। अब 10 दस साल से ​अधिक गुजर जाने के बाद भी बेड की संख्या बेडों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पायी है। जिला अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर भी जर्जर हाल में हैं। वहां सुविधाओं की भारी कमी है। वहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की गाइड के अनुसार निर्धारित 22 प्रकार की दवाओं के सैंपल में जांच के दौरान औसत रूप से सिर्फ दो से आठ प्रकार की दवाएं ही मिलीं हैं।

जिला अस्पतालों में ब्लड बैंक तक की सुविधा नहीं

कैग की रिपोर्ट की मानें तो बिहार के जिला अस्पतालों के ओटी में जरूश्री 25 तरह के उपकरणों की जगह सिर्फ 7 से 13 प्रकार के उपकरण ही जांच के दौरान उपलब्ध पाए गए हैं। जहां IPHS के प्रावधानों के अनुसार सभी जिला अस्पतालों में 24 घंटे ब्लड बैंक की सुविधा होनी चाहिए उसके उलट बिहार के 36 जिलों के सरकारी अस्पतालों में से 9 बिना ब्लड बैंक के ही चल रहे हैं। उस पर भी साल 2014 से 2020 के दौरान लखीसराय (Lakhisarai) और शेखपुरा (Sheikhpura) को छोड़कर सभी जिलों में बिना लाइसेंस के ब्लड बैंक चल रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि जांच के दौरान केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के निर्देशों का सरकार ने अनुपालन नहीं किया।

CAG की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं। उन्हें अस्पतालों में घुसने से रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है। निरीक्षण के दौरान जहानाबाद जिला (Jahanabad District) अस्पताल परिसर में खुलेआम आवारा कुत्ते घूमते देखे गए। वहीं मधेपुरा (Madhepura) के जिला अस्पताल में भी अगस्त 2021 में आवारा सुअरों का झुंड दिखा। मधेपुरा के जिला अस्पताल में कूड़ा और खुला नाला पाया गया। जहानाबाद जिला अस्पताल में  निरीक्षण के दौरान नाले का पानी, कचरा, मल, अस्पताल का कचरा जहां-तहां बिखरा मिला।

बिहार के जिला अस्पतालों की इस खस्ताहाल व्यवस्था को देखकर CAG की ओर से यह अनुशंसा की गयी है कि अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में डॉक्टरों, नर्सों, पारामेडिकल और अन्य सहायक कर्मियों की बहाली सरकार को जल्द से जल्द सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि गरीब और समाज के ऐसे उपेक्षित लोग जो निजी अस्पतालों का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं उन्हें भी अगर को ​बीमारी हो तो अच्छा इलाज मिल सके।

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