प्रतिदिन 15 सिगरेट पीने वालों की मृत्युदर के बराबर है एकाकीपन के शिकार लोगों की मौत का आंकड़ा
पिछले कुछ वर्षों के दौरान एकाकीपन एक गंभीर वैश्विक आपदा के तौर पर उभरा है और मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसके गंभीर परिणाम स्पष्ट हो रहे हैं। इसे मृत्यु दर लगभग उतनी ही है जितना हरेक दिन कम से कम 15 सिगरेट पीने वालों में देखी गयी है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
As per WHO, loneliness is a global threat and its mortality effects are similar to smoking 15 cigarettes a day : विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान एकाकीपन एक गंभीर वैश्विक आपदा के तौर पर उभरा है और मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसके गंभीर परिणाम स्पष्ट हो रहे हैं। इसे मृत्यु दर लगभग उतनी ही है जितना हरेक दिन कम से कम 15 सिगरेट पीने वालों में देखी गयी है।
अमेरिका के सर्जन जनरल डॉ विवेक मूर्ति ने कई बार एकाकीपन के प्रभावों पर ध्यान दिलाया है। जापान जैसे कुछ देशों में यह समस्या इतनी गंभीर है कि वहां इस विषय पर एक अलग से मंत्रालय भी है। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस समस्या के विस्तृत अध्ययन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आयोग बनाया है, जिसे तीन वर्षों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है। इसके अध्यक्ष डॉ विवेक मूर्ति हैं और सह-अध्यक्ष अफ्रीकन संघ के युवा प्रतिनिधि चीड़ो म्पेम्बा हैं। इसके अतिरिक्त इस आयोग में 11 सदस्य हैं जो क़ानून से जुड़े या फिर देशों के मंत्री हैं। इन मंत्रियों में अयुको काटो भी हैं, जो जापान में एकाकीपन की मदद से जुड़े मंत्रालय में मंत्री हैं।
एकाकीपन की समस्या पहले भी थी, पर कोविड-19 महामारी के समय जब लगभग पूरी दुनिया में लॉकडाउन लग गया था, तब इस समस्या के गंभीरता स्पष्ट हुई। इसके बाद उपजी आर्थिक और सामाजिक समस्याओं ने इसे और बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार यह एक वैश्विक समस्या है और इससे स्वास्थ्य और विकास का हरेक आयाम प्रभावित होता है। पहले एकाकीपन को विकसित और औद्योगिक देशों की समस्या माना जाता था, पर अब यह हरेक समाज और हरेक आय-वर्ग और आयु-वर्ग की समस्या बन चुका है। पहले के कुछ अध्ययन बताते हैं कि विकसित देशों की लगभग 25 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी एकाकीपन की चपेट में है, पर नए अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि यह संख्या लगभग हरेक क्षेत्र में समान है।
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि बुजुर्गों में एकाकीपन के कारण विकशित होने के मामले 50 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं, जबकि हार्ट-स्ट्रोक और कोरोनरी-आर्टरी रोगों में 30 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाती है। दुनिया में लगभग 5 से 15 प्रतिशत तक युवा भी इसकी चपेट में हैं, पर अनेक विशेषज्ञ मानते है कि वास्तविक संख्या इससे बहुत अधिक होगी। एक अनुमान के अनुसार अफ्रीका में 12.7 प्रतिशत और यूरोप में 5.3 प्रतिशत युवा एकाकीपन का शिकार हैं। एक दूसरा अध्ययन बताता है कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे यदि एकाकीपन का शिकार होते हैं, तब वे पढाई में पिछड़ जाते हैं और इनमें से अधिकतर बच्चे कॉलेज तक नहीं पहुँच पाते हैं।
हमारे देश में भी किये गए अनेक अध्ययनों से इस समस्या की गंभीरता स्पष्ट होती है। हेल्पेज इंडिया द्वारा मुंबई में कराये गए एक सर्वेक्षण में 75 प्रतिशत बुजुर्गों ने एकाकीपन के अहसास की चर्चा की। मई 2022 में जर्नल ऑफ़ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन के अनुसार देश के 48 वर्ष से अधिक आबादी के 20.5 प्रतिशत लोग मध्यम एकाकीपन और 13.3 प्रतिशत लोग गंभीर एकाकीपन की चपेट में हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना के वैज्ञानिकों द्वारा जर्नल ऑफ़ रिसर्च इन पर्सनालिटी के सितम्बर 2023 अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार एक विस्तृत अद्ययन से स्पष्ट होता है कि एक औसत आदमी दिन के 66 प्रतिशत समय में अकेला ही रहता है, पर एकाकीपन का गंभीर अहसास तब होता है, जब यह समय 75 प्रतिशत से अधिक हो जाता है।
जर्नल ऑफ़ नेचर ह्यूमन बेहेवियर में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन के अनुसार एकाकीपन या फिर सामाजिक एकाकीपन से आयु कम होने की संभावना बढ़ जाती है। सामाजिक एकाकीपन, उसे कहते हैं जब कोई व्यक्ति समाज में कुछ अपनी सोच लेकर जाता है, पर वहां का माहौल बिलकुल दूसरा होता है और वह व्यक्ति अपने आप को एकाकी महसूस करता है। इस अध्ययन के अनुसार सामाजिक एकाकीपन से जल्दी मृत्यु की संभावना 32 प्रतिशत बढ़ती है, जबकि एकाकीपन से यह संभावना 14 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
एकाकीपन एक गंभीर समस्या है, पर एकाकीपन और अकेले होना दो बिलकुल अलग विषय हैं। एकाकीपन एक मानसिक अवस्था है जब आप अपने आपको पूरी तरह अकेला समझाने लगते हैं। अकेले होना हमारे ऊपर निर्भर करता है, भरी भीड़ में भी कोई इस अवस्था में अपनी मर्जी से पहुँच सकता है। अकेले होना सभी प्रकार की कलाओं का आधार है।