कोरोना की भयावहता के बीच टीबी से जूझ रहे देश के कई राज्य, टीबी मरीजों का कोविड पॉजिटिव होना जानलेवा
कोरोना वायरस का संक्रमण उन रोगियों के लिए घातक और जानलेवा हो सकता है जिनके फेफड़ों की क्षमता पहले से ही कम होती है यानी वो टीबी से जूझ रहे हों....
श्रेया खेतान की रिपोर्ट
जयपुर। कनार्टक के तुमकुर में 48 साल की केंचम्मा के इलाज शुरू हुए दो महीने हो चुके हैं, लेकिन ठीक होने की रफ्तार धीमी रही है। वह अभी भी ठीक महसूस नहीं कर रही हैं। मिचली, थकावट व कमजोरी महसूस होती है। यह बात उनके बेटे अशोक कुमार बताते हैं।
डाॅक्टरों ने कहा कि केंचम्मा टीबी और कोविड-19 दोनों से पीड़ित थीं, जो एक दुर्बल संयोजन है जिसमें दोनों में से किसी एक बीमारी से मरीज बामुश्किल उबरता है।
आरंभिक अध्ययन भारत में कोविड19 के रोगियों में टीबी का 0.37 प्रतिशत से 4 प्रतिशत का प्रसार दिखाता है, जबकि 1.14 प्रतिशत टीबी रोगियों की कोविड जांच अक्टूबर तक करायी गयी। यह जानकारी भारत के केंद्रीय टीबी प्रभाग ने एक इमेल के जरिए दी। भारत में 10.3 मिलियन कोविड19 केस 14 जनवरी 2021 तक हैं और 2019 तक भारत में 2.4 मिलियन से अधिक टीबी केस हैं।
टीबी गंभीर कोविड19 रोग के 2.1 गुना बढे हुए जोखिम से जुड़ा हुआ है। इसका उल्लेख सितंबर 2020 में कोविड19 के लिए टीबी रोगियों के परीक्षण पर एक दिशा निर्देश जारी करते हुए भारतीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में किया गया। गाइडलाइन में सुझाव दिया गया कि सभी रोगियों के लिए कोविड19 की स्क्रीनिंग करायी जाए - इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियां और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन के लिए। इसमें किसी भी कोविड19 रोगी के लिए एक टीबी परीक्षण का भी सुझाव दिया गया, जिसमें टीबी का लक्षण दिखता है या जो टीबी रोगी के संपर्क में रहा हो या जिसे पहले टीबी था।
केंचम्मा के दोहरे इलाज में प्रगति थी, लेकिन कुछ राज्यों में टीबी और कोविड19 के लिए दो स्तरीय स्क्रीनिंग व परीक्षण शुरू हुआ और कुछ राज्यों में इसे पूरी तरह लागू किया जाना बाकी है। इसकी चुनौतियों में स्टाफ की कमी, टीबी के स्टाफ का कोविड19 के कार्याें में तैनाती, कोविड मरीज के कलेक्शन व टेस्टिंग सेंटर की सुरक्षा आदि शामिल हैं, यह हमने टीबी प्रोग्राम स्टाफ, मरीज, व एक्सपर्ट ग्रुप से मालूम किया जिनका हमने इंटरव्यू किया।
सह संक्रमण का निदान क्यों जरूरी है?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के तहत, सभी नए और मौजूदा टीबी रोगियों का कोविड19 के लिए परीक्षण किया जाना है और सभी टीबी मरीजों का कोविड19 टेस्ट किया जाना है और जांच रिपोर्ट के अनुरूप उनका इलाज किया जाना है। सभी कोविड19 मरीज के टीबी के लक्षणों की भी जांच की जानी चाहिए। जिन लोगों को दो सप्ताह तक कफ और बुखार रहता है या वजन में उल्लेखनीय गिरावट होती है, रात में पसीना आता हो या टीबी मरीज के संपर्क में आने की पृष्ठभूमि रही हो उनके सीने का एक्स-रे किया जाना चाहिए या थूक की जांच की जानी चाहिए।
विशेषज्ञों ने कहा है कि टीबी और कोविड19 सह संक्रमण का समय पर निदान आवश्यक है क्योंकि दोनों बीमारियों के लक्षण समान हैं। शरीर के अंगों पर प्रभाव पड़ता है, श्वांस प्रणाली पर दबाव पड़ता है। कोविड19 उन रोगियों के लिए घातक हो सकता है जिनके फेफड़ों की क्षमता पहले से ही कम होती है।
भारत के केंद्रीय टीबी प्रभाग ने अधिकारियों ने कहा है कि अज्ञात टीबी कोविड19 के लिए एक रिस्क फैक्टर है। प्रभाग ने कहा है कि टीबी रोगियों में कुपोषण, मधुमेह, धूम्रपान व एचआइवी के लक्षण उनके कोविड19 के संक्रमण को खतरों को बढा देते हैं।
उत्तरप्रदेश के राज्य टीबी अधिकारी संतोष गुप्ता ने कहा, 'सिर्फ इसलिए कि दो में से एक बीमारी का पता चला है, इसका मतलब यह नहीं है कि लक्षण के संकेत देने पर आप दूसरे की अनदेखी कर सकते हैं। टीबी ग्रस्त लोगों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ Touched by TB की ब्लेसिना कुमार (Blessina Kumar) ने कहा, मुंबई में कोई भी व्यक्ति एक सार्वजनिक अस्पताल में आता है तो उसका एंटीजन टेस्ट के माध्यम से कोविड19 परीक्षण किया जाता जाता है'। हालांकि कुमार ने टीबी परीक्षण के लिए आने वाले सभी लोगों के लिए कोविड19 परीक्षण को अनिवार्य किए जाने के प्रति सावधान किया। वे कहते हैं, टीबी स्टाफ को पहले ही कोविड19 के लिए डायवर्ट कर दिया गया है और इससे सिस्टम पर भी बोझ पड़ सकता है।
केंचम्मा के बेटे कहते हैं, 'उन्हें तुमकुर के एक सामान्य अस्पताल में तब भर्ती कराया गया था जब उनके शरीर का तापमान 105 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच गया। उन्हें खांसी थी, कोविड19 के परीक्षण के लिए उनकी दो बार जांच की गयी, उनके थूक क नमूना उसी दिन लिया गया था जब रक्त, मूत्र और मल के नमूनों के साथ उनका टीबी परीक्षण किया गया था'।
केंचम्मा की कोविड19 रिपोर्ट निगेटिव आने में नौ दिन लग गए, लेकिन उन्हें अप्रैल तक टीबी का इलाज कराना जारी रखना होगा। उन्होंने टीबी की दो दवाओं के छह महीने का कोर्स पूरा करना होगा। तुमकुर के जिला टीबी अधिकारी सनथ कुमार कहते हैं, दोहरा संक्रमण उन्हें एक बीमारी की तुलना में और प्रभावित करेगा, जिससे वजन घटना, कमजोरी लगना आदि की स्थितियां होंगी।
कर्नाटक टीबी प्रोग्राम के अनुसार, 'अप्रैल से एक नवंबर 2020 के बीच कर्नाटक में 29,352 टीबी रोगियों की जांच की गयी थी और उनके लक्षणों के आधार पर उनमें 11,313 यानी 38.5 प्रतिशत का कोविड19 के लिए परीक्षण किया गया था। इनमें से 348 रोगियों यानी तीन प्रतिशत को कोविड19 पाॅजिटिव पाया गया और उन्हें इलाज उपलब्ध कराया गया'।
अलग-अलग प्रोटोकॉल का पालन करते हैं राज्य
केरल मई से कोविड19 और टीबी के लिए द्वि दिशात्मक परीक्षण को लागू कर रहा है और इसे जारी रखे हुए है। केरल के टीबी अधिकारी सुनील कुमार ने इंडिया स्पेंड को बताया: कोविड19 के रोगियों का तब टीबी के लिए परीक्षण किया जाता है जब उनमें मधुमेह, लंबे समय से खांसी जैसे लक्षण दिखते हैं और वे टीबी रोगी का कोविड19 के लिए परीक्षण बाद में करवाते हैं। कुमार ने टीबी और कोविड19 दोनों से पीड़ित मरीजों का डेटा उपलब्ध नहीं करवाया।
उत्तरप्रदेश भी दिशा-निर्देशों को लागू कर रहा है। वहां के राज्य टीबी अधिकारी गुप्ता ने यह बताया, लेकिन कोई डेटा नहीं दिया। उन्होंने कहा, इन सभी सैंपल कलेक्शन को कोविड19 के लिए आवश्यक सावधानियों के साथ करना चुनौतीपूर्ण है लेकिन हमने सभी जिलों को इसे करने का निर्देश दिया है।
कर्नाटक स्टेट टीबी अधिकारी रमेशचंद्र रेड्डी ने दिसंबर 2020 में कहा, स्टेट टीबी प्रोग्राम कोविड19 टेस्ट के लिए अगस्त तक टीबी के लिए आइएलआइ और एसएआरआइ गाइडलाइन के अनुरूप करवा रहा था पर जैसे ही कोविड19 के केस बढे यह बेकार हो गया। राज्य अभी भी कोशिश कर रहा है कि वह सरकारी कार्यक्रम के तहत सभी टीबी मरीजों की कोविड19 जांच कराए जो सभी टीबी रोगियों के लिए आसान है। विशेषज्ञों ने कहा कि कि कोविड19 के मामले में टीबी कार्यक्रम को अन्य विभागों के साथ समन्वय करना पड़ता है जो एक चुनौती है।
मिजोरम के टीबी-एचआइवी को-आर्डिनेटर जे रिंकीमी ने इंडिया स्पेंड से कहा, राज्य ने गाइडलाइन को दिसंबर 2020 में लागू करना शुरू किया। सभी जिलों को इसके लिए सूचित किया गया है कि वे कोविड19 रोगी के निगेटिव होने के सात दिन बाद उनका टीबी परीक्षण सुनिश्चित करायें। रिंकीमी ने कहा, राज्य में आइएलआइ और एसएआरआइ पेंसेट की जांच नहीं की जाती है लेकिन अब इसकी योजना बनायी जा रही है।
महामारी ने टीबी रिपोर्टिंग को कैसे प्रभावित किया?
सालों से भारत अपने टीबी रोगियों की सही गणना करने में असमर्थ रहा है। टीबी रोगियों में कई जिनका इलाज निजी क्षेत्र में किया जाता है, उन्हें गलत ढंग से पेश किया जाता है। पर अब सरकार द्वारा कुछ टीबी केस छूट रहे हैं। महामारी व लाॅकडाउन ने टीबी की सूचनाओं को 1.7 मिलियन नीचे तक धकेल दिया। भारत द्वारा साल के आरंभ में 30 लाख के तय लक्ष्य की तुलना में मात्र 17 लाख टीबी मरीज 2020 में चिह्नित किए गए जो लक्ष्य का मात्र 59 प्रतिशत है और 2019 में दर्ज किए गए केस का यह 74 प्रतिशत है। यह जोखिम में आने वाले रोगियों और संक्रमण फैलने की संभावना को बढाता है।
मिजोरम में लाॅकडाउन ने टीबी कार्यक्रम के कर्मचारियों के भीतरी इलाकों में पहुंचने को मुश्किल बना दिया और अैर कुछ लोग अस्पताल आए। रिंकीमी ने कहा पिछले साल की तुलना में संख्या अच्छी नहीं है।
केंद्रीय टीबी प्रभाग ने अपनी इमेल प्रतिक्रिया में कहा, मोटे तौर पर राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की आण्विक नैदानिक क्षमताओं का लगभग 70 प्रतिशत और देश भर में मानव संसाधन का 80 प्रतिशत कोविड19 उपचार के लिए डायवर्ड किया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाॅ हर्षवर्धन ने नवंबर 2020 में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, हम सभी जानते हैं कि पिछले 10 महीनों में उपचार में रूकावट, दवाओं की उपलब्धता में बाधा, नौदानिक परीक्षणों की आपूर्ति में कमी, इलाज में देरी, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा, विनिर्माण क्षमता का विचलन और ऐसे रोगियों के लिए भौतिक अवरोधों को देखा गया है जो इलाज के लिए दूर स्थित अस्पताल जा सकते थे।
कोविड19 से पहले भी टीबी प्रभाग के सभी विभागों में कम कर्मचारी थे।
केंद्रीय टीबी प्रभाग के एक कंसलटेंट ने कहा, राज्यों को रिक्त पदों को भरने को कहा जाता है और कोविड19 की शुरुआत के साथ ही राज्यों ने कर्मचारी के समय पर भर्ती के महत्व को समझा है।
जमीनी समस्याएं
स्वयं सेवी संस्था Touched by TB की कुमार (Blessina Kumar) कहती हैं, टीबी प्रोग्राम के पास संक्रमण नियंत्रण प्रणाली और कोविड19 जांच के लिए सैंपल कलेक्शन के लिए आवश्यक विशेष प्रशिक्षण नहीं है। वे द्विस्तरीय जांच गाइडलान पर कहती हैं, यह कार्यक्रम ठीक है लेकिन जमीन पर बहुत सारी समस्याएं हैं।
कर्नाटक के टीबी कार्यक्रम के एक सलाहकार ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा, टीबी प्रोग्राम के कर्मचारी कोविड19 के मरीजों की थूक के संग्रह के लिए प्रशिक्षित नहीं है, क्योंकि इसके लिए पीपीइ आदि जैसे विशेष संक्रमण रोधी प्रणालियों की आवश्यकता होती है। उक्त सलाहकार ने कहा कि नमूने को एक प्रयोगशाला में जांचना होगा जो इसके लिए तैयार किए गए हैं। यह स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य तकनीशियनों के लिए एक चुनौती है।
मिजोरम के रिंकीमी ने कहा, देखिए, कोविड19 परीक्षण के लिए हमें सुरक्षित कैबिनेट चाहिए, बहुत सारे जिलों में यह उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए यह कर्मचारियों के लिए बेहद खतरनाक है। इसे आसान बनाने के लिए जनरल हाॅस्पिटल को जिला टीबी सेंटर को किसी भी कोविड19 केस को लेकर सूचित करना चाहिए और थूक संग्रह में मदद करनी चाहिए।
टीबी के मामले की सूचनाओं में सुधार
टीबी पर कोविड19 के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार ने द्वि दिशात्मक टीबी-कोविड19 स्क्रीनिंग, आइएलआइ और एसएआरआइ मामलों की स्क्रीनिंग, निजी क्षेत्र की सक्रियता को बढाने, टीबी प्रोग्राम स्टाफ व मशीनों के पुनर्विकास की सिफारिश की। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने नवंबर में एक प्रेस कान्फ्रेंस में यह बात कही।
केंद्रीय टीबी प्रभाग ने इंडिया स्पेंड को बताया, सितंबर 2020 से महामारी के कारण, निदान और कर्मचारियों को धीरे-धीरे टीबी कार्यक्रम के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है। कर्नाटक के टीबी अधिकारी रेड्डी ने कहा, कर्नाटक में जहां सभी टीबी कर्मचारी एक चरण में कोविड19 से निबटने में लगे हुए थे, उनमें 50 प्रतिशत टीबी से संबंधित ड्यूटी में वापस लौट आए हैं।
हालांकि केंद्रीय टीबी डिवीजन ने कहा है कि द्वि दिशात्मक स्क्रीनिंग के परिणामस्वरूप उल्लेखनीय टीबी केस पता चले हैं। मिजोरम के रिंकीमी संदेह जताते हैं: मुझे नहीं पता कि क्या यह टीबी के बारे में सूचनाओं को बढाएगा। शायद कुछ मामलों में। लेकिन ज्यादा नहीं...हमारे पास जून-जुलाई में सह संक्रमण का एक मामला था और ऐसे बहुत कम मामले हैं।
रेड्डी ने कहा कि टीबी के गैर ज्ञात मामलों का पता लगाने के लिए राज्य अन्य तरीकों को अजमा रहे हैं। कर्नाटक ने दिसंबर 2020 में एक सक्रिय केस फाइंडिंग प्रोग्राम पर ध्यान केंद्रित किया जिसमें आसान शिकार होने वाली आबादी, विशेषकर वृद्धाश्रम और जेलों की स्क्रीनिंग टीबी के लिए की गयी। कर्नाटक में राज्य टीबी कार्यक्रम आम तौर पर साल में दो बार सक्रिय केस फाइंडिंग सेशन का आयोजन करता है। लेकिन, कोविड19 के चलते दिसंबर में इस पर फैसला हुआ। रेड्डी कहते हैं कि इस साल एक करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग का लक्ष्य है।
देश में कोविड19 से निबटने को लेकर लगी क्षमता के बीच केंद्रीय टीबी प्रभाग विशेष रूप से अस्पतालों में लगाए गए संक्रमण नियंत्रण उपायों को गिनाता है। साथ ही यह आण्विक नैदानिक क्षमता पर जोर देता है, यह टीबी उपचार को विकेंद्रीकृत करेगा ओर और दवाओं का पूरे देश में वितरण करेगा। प्रभाग के इमेल जवाब में कहा गया महामारी के दौरान व्यवहार गत बदलाव के कारण यह कफ हाइजिन, मास्क का उपयोग, सामाजिक दूरी आदि से टीबी के मामलों के प्रसार में कमी आएगी।
(श्रेया खेतान की यह रिपोर्ट पहले मूल रूप से अंग्रेजी में इंडिया स्पेंड पर प्रकाशित।)