फैक्ट चेक : बिहार सरकार का दावा हर बाढ़ पीड़ित परिवार के खाते में 6-6 हजार, मगर हकीकत में सूची भी नहीं तैयार

घरबार डूबने के बाद बांध पर शरण लिए परसा के संजय प्रसाद कहते हैं 'बाढ़ के पानी में सबकुछ डूब चुका है। घर में कमर भर पानी है। किसी तरह भागकर बांध पर शरण लिए हुए हैं। खाते में कोई पैसा नहीं आया है, न ही किसी ने अबतक कोई सुध ली है.....

Update: 2020-08-03 05:17 GMT

सुशासन बाबू के दावों और हकीकत में है जमीन आसमान का अंतर, राहत तो दूर की बात अभी तक लिस्ट भी नहीं तैयार

बिहार के अलग-अलग जिलों से जनज्वार टीम के साथ पटना से राजेश पाण्डेय की रिपोर्ट

जनज्वार। बिहार में बाढ़ से लोगों के जान-माल पर संकट है। सरकारी स्तर पर दी जा रहीं सुविधाएं नगण्य हैं। सरकार के दावे जमीनी हकीकत के सामने फेल नजर आते हैं। चाहे जिस क्षेत्र में जाएं और लोगों से बात करें, कहीं भी सरकारी राहत पहुंचती नजर नहीं आ रही।

इस बीच बिहार सरकार ने बाढ़ प्रभावित परिवारों के खाते में प्रति परिवार 6-6 हजार रुपये भेजने की घोषणा की है। सिर्फ घोषणा ही नहीं की है, बल्कि 2 अगस्त की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आपदा विभाग के प्रधान सचिव रामचन्द्र डुडु की ओर से यह दावा किया गया कि ऐसे 1.61 लाख परिवारों के खातों में 112 करोड़ रुपये भेज भी दिए गए हैं। हालांकि उन्होंने इसका डिटेल आंकड़ा जारी नहीं किया कि किस जिले के किस ब्लॉक और पंचायत के कितने परिवारों को यह राशि दी गई है।


राज्य के बाढ़ प्रभावित जिलों से जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार ज्यादातर पंचायतों में तो अभी बाढ़ पीड़ितों की सूची बननी ही शुरू हुई है। जानकारी के अनुसार,सूची बनने के बाद इसे प्रखंड स्तरीय अनुश्रवण समिति से पास कराना होता है, उसके बाद प्रखंड स्तर के पदाधिकारी इसे वेरिफाई कर जिला मुख्यालय में भेजते हैं और वहां से आगे की कार्यवाही की जाती है। यह समय लगने वाली प्रक्रिया है। पिछली बार की बाढ़ों में भी खातों में पैसे जाने में समय लगा था, हालांकि लोग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि पिछली बार बड़ी संख्या में लाभुक छूट भी गए थे।

जनज्वार ने धरातल पर जब पड़ताल की तो स्थिति बिल्कुल उलट देखने को मिली। राज्य के ज्यादातर जिलों में तो अभी बाढ़ पीड़ित परिवारों की सूची ही बननी शुरू हुई है। संबंधित बीडीओ, सीओ और मुखिया सूची तैयार कर रहे हैं। सूची तैयार होगी, फिर उसका सत्यापन होगा, अन्य कागजी प्रक्रिया होगी, तब जाकर जिनको मिलना होगा, उन्हें मिलेगा।


आपदा प्रबंधन विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक बिहार की 53 लाख 67 हजार 182 की आबादी बाढ़ से प्रभावित हो गई है। अब 14 जिलों के 113 प्रखंडों की 1059 पंचायतों में बाढ़ का पानी घुस गया है। ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतनी बड़ी प्रभावित आबादी की सूची तैयार करना, उसे वेरिफाई करना और पीड़ितों को राशि उपलब्ध कराना एक समय लेने वाला काम साबित हो सकता है।

हालांकि बाढ़ पीड़ित इलाकों में जब हमने लोगों से बात की तो उन्होंने इसका एक समाधान बताया कि वर्ष 2017 में जिन इलाकों में बाढ़ आई थी, लगभग उन्हीं इलाकों में फिर से बाढ़ आई है। ऐसे में अगर उस समय की राहत सूची निकाल ली जाय और उसे ही वेरिफाई कर आगे कार्रवाई की जाय,तो सूची बनाने में लगने वाले समय की बचत हो सकती है।

इस संबंध में जब हमने पीड़ितों से बात की तो उनका कहना है कि घर-बार सब डूब चुके हैं, जान बचा कर किसी तरह बांध, सड़क पर भागे हैं, न तो सरकारी राहत पहुंच रही है, न ही अभी कोई पैसा मिला है। सारण, दरभंगा, सीवान, समस्तीपुर, मधुबनी आदि जिलों में यह राशि अभी पीड़ितों के खातों तक नहीं पहुंची है। कुछ जगह इन पीड़ितों की सूची बनाए जाने की शुरुआत जरूर की गई है। समझा जा सकता है कि सूची बननी शुरू भी हो गई है तो पीड़ितों के खातों तक पहुंचने में कितना वक्त लगने वाला है और वह सभी पीड़ितों तक पहुंचेगा भी या नहीं।

इस मसले पर वरिष्ठ पत्रकार सन्तोष सिंह कहते हैं कि सरकारें घोषणा जरूर कर देती हैं, पर वास्तविक लाभुकों तक ससमय कोई राहत नहीं पहुंचती। उन्होंने कहा 'दरभंगा, मधुबनी, सारण, समस्तीपुर, सीवान जैसे जिलों में अभी बाढ़ की शुरुआत ही हुई है। कई जिलों में अभी पूरी तरह से बाढ़ आई भी नहीं है, आगे स्थिति गंभीर होगी। ऐसे में सरकार किसे पैसे भेज देने का दावा कर रही है, यह सोचनीय बात है। सरकारी प्रक्रिया इतनी टेढ़ी होती है कि पीड़ितों तक राशि पहुंचने में महीनों का समय लग जाता है। वर्ष 2017 की बाढ़ के समय हमने यह बात नजदीक से महसूस की है। खातों में पैसे की बात तो छोड़िए, सही लोगों तक समय से कोई राहत नहीं पहुंच पाती।


बाढ़ प्रभावित पानापुर प्रखंड के बीडीओ मो. सज्जाद कहते हैं,   '31 जुलाई को प्रखंड के सभी मुखिया को पत्र भेजा गया है कि सूची तैयार कर अनुश्रवण समिति से पास कर भेजें। सूची बनने के बाद इसका वेरिफिकेशन किया जाएगा और जिला प्रशासन को भेज दिया जाएगा।'

परसा प्रखंड के सीओ ने भी कुछ ऐसी ही बात कही। उन्होंने कहा, 'प्रखंड के कुछ निचले इलाकों में पहले पानी आ गया था। ऐसे कुछ जगहों से पानी निकल भी चुका है। पिछले दो दिनों में कुछ नए जगहों पर पानी आ गया है। हमलोग पीड़ितों की सूची बना रहे हैं।'

बाढ़ में घरबार डूबने के बाद बांध पर शरण लिए परसा के संजय प्रसाद कहते हैं 'बाढ़ के पानी में सबकुछ डूब चुका है। घर में कमर भर पानी है। किसी तरह भागकर बांध पर शरण लिए हुए हैं। खाते में कोई पैसा नहीं आया है, न ही किसी ने अबतक कोई सुध ली है।'

कुछ ऐसा ही बांध पर प्लास्टिक टांग कर रह रहे पानापुर के सुनील कुमार, जमीरउद्दीन, चिंता देवी आदि का कहना है। ये लोग बता रहे हैं कि कोई पैसा नहीं आया है। पैसे की छोड़िए, बांध पर रहते दो दिन हो गए, अबतक न तो किसी ने अनाज दिया है, न खाना।

पानापुर में सड़क किनारे प्लास्टिक महेश यादव परिवार सहित बसेरा बनाए हुए हैं। ये कहते हैं 'पिछले कई दिनों से यहां पड़े हुए हैं, पर कोई झांकने तक नहीं आया है। जब अबतक कोई उनका नाम ही लिखकर नहीं ले गया, तो पैसा कहाँ से आएगा।'


तकरीबन ऐसी ही बात हर जगह बाढ़ पीड़ितों से सुनने को मिल रही है। इनकी दशा हृदयविदारक है। कड़ी धूप और बारिश में प्लास्टिक और छाते के सहारे समय काट रहे हैं। जहरीले कीड़ों-मकौड़ों का डर बना हुआ है। पीने के साफ पानी की कोई व्यवस्था नहीं। किसी तरह आधा पेट खाकर जीवनरक्षा कर रहे हैं।

जनहित संघर्ष मोर्चा के संयोजक सुभाष राय उर्फ झरीमन राय कहते हैं 'सरकार लोकलुभावन घोषणाएं तो कर देती है, पर इनका कार्यान्वयन कभी नहीं हो पाता। हां, इन घोषणाओं के पूरा होने की उम्मीद में पीड़ितों का आक्रोश जरूर कुछ कम हो जाता है। सरकार ने प्रवासी मजदूरों के खातों में भी 1-1 हजार रुपये देने की घोषणा की थी, पर जिससे भी पूछो, यही कहता था कि उसे पैसे नहीं मिले हैं। बाढ़ में भी यही होने जा रहा है। सूची बनेगी, उसमें गड़बड़ियां होंगी, बड़ी संख्या में वास्तविक लाभुक छूट जाएंगे। सूची के सत्यापन, प्रखंड प्रशासन द्वारा जिला प्रशासन को भेजने और वहां से सरकार को भेजने में काफी समय लगेगा। ऐसे में इस पैसे को भेजने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा, चूंकि यह पैसा तात्कालिक राहत के लिए है।'

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