भारत में वायु प्रदूषण से पिछले साल हुईं 16.7 लाख मौतें, दिल्ली बनी सबसे जहरीली राजधानी

एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले 5 शहरों में वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2020 के दौरान 1,60,000 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो गयी, इसका कारण हवा में भारी मात्रा में मौजूद पीएम्2.5 के कण हैं जो सीधा फेफड़े तक पहुँच जाते हैं...

Update: 2021-03-18 07:35 GMT

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। स्विट्ज़रलैंड स्थित संस्था आईक्यू एयर ने वर्ष 2020 के दौरान दुनिया के 106 देशों में वायु प्रदूषण, विशेषकर पीएम2.5 के स्तर, के आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, इसके अनुसार दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9, 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 और 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 35 भारत में स्थित हैं। वायु प्रदूषण के स्तर के अनुसार दिल्ली दुनिया में 10वां सबसे प्रदूषित शहर है, पर किसी भी देश की राजधानी के सन्दर्भ में इसका स्थान पहला है। दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर चीन का होटान शहर है, और उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद दूसरे स्थान पर और बुलंदशहर तीसरे स्थान पर है।

इसके बाद क्रम से बिसरख, नॉएडा, ग्रेटर नॉएडा, कानपुर, लखनऊ, भिवंडी और दिल्ली का स्थान है। सबसे प्रदूषित 30 शहरों में मेरठ, आगरा, मुज़फ्फरनगर, फरीदाबाद, जींद, हिसार, फतेहाबाद, बंधवारी, गुरुग्राम, यमुना नगर, रोहतक, धारूहेड़ा और मुजफ्फरपुर के नाम शामिल हैं। वैसे वायु प्रदूषण सरकारों का चरित्र तो नहीं देखता, फिर भी तथ्य यह है कि दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं, और इनमें से 19 शहर भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में स्थित हैं। इनमें से 11 शहर तो अकेले प्रधानमंत्री के उत्तम प्रदेश यानि उत्तर प्रदेश में स्थित हैं।

इस रिपोर्ट में दुनिया के 106 देशों में वायु प्रदूषण के स्तर का अध्ययन किया गया है। वर्ष 2020 में कोविड 19 के दौरान अधिकतर देशों में लॉकडाउन लगाया गया, जिसमें सभी गतिविधियाँ रुक गईं और प्रदूषण के स्त्रोतों पर अंकुश लग गया। इस कारण अधिकतर देशों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत कम हो गया था, पर लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जिद में फिर से प्रदूषण के स्त्रोत खोल दिए गए और प्रदूषण का स्तर लॉकडाउन के पहले के स्तर से भी अधिक हो गया।

कुल 84 प्रतिशत देशों में 2020 में वायु प्रदूषण का औसत स्तर 2019 की तुलना में कम पाया गया। दिल्ली जैसे सर्वाधिक प्रदूषित शहर में वर्ष 2020 में प्रदूषण का औसत स्तर वर्ष 2015 की तुलना में 15 प्रतिशत कम रहा। बीजिंग में 11 प्रतिशत, शिकागो में 13, लन्दन में 16, पेरिस में 17 और सीओल में 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी। भारत के 63 प्रतिशत शहरों में वायु गुणवत्ता वर्ष 2020 में बेहतर आंकी गयी, जबकि चीन के 86 प्रतिशत शहरों में यह सुधार देखा गया।

रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे प्रदूषित क्षेत्र है, इस क्षेत्र में दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 50 शहरों में से 42 स्थित हैं। जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के कारण भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। तापमान वृद्धि के कारण जंगलों में आग लगाने की घटनाएँ बढ़ रही हैं और इसका असर वायु प्रदूषण के स्तर पर पड़ रहा है। वर्ष 2020 के सितम्बर महीने में अमेरिका के 77 प्रतिशत शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या वहां जंगलों में आग लगाने के कारण थी।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोविड 19 से देश में अब तक 1.46 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है। मौत के ये आंकड़े डराते हैं। कोविड 19 के विस्तार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया, लोग अपने स्तर पर सावधानी बरत रहे हैं, पूरे समाज का व्यवहार बदल गया और अब लोग बेसब्री से इसके टीके का इंतज़ार कर रहे हैं। दूसरी तरफ पिछले वर्ष भारत में 16.7 लाख मौतें अकेले वायु प्रदूषण के कारण हो गईं, जो देश में कुल मौतों का 18 प्रतिशत है, पर ना ही सरकार सचेत हुई और न ही जनता में इसके लिए कोई सुगबुगाहट है। इन आंकड़ों को हाल में ही प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल, लांसेट में प्रकाशित किया गया है।

ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले 5 शहरों में वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2020 के दौरान 1,60,000 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो गयी। इसका कारण हवा में भारी मात्रा में मौजूद पीएम्2.5 के कण हैं जो सीधा फेफड़े तक पहुँच जाते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक ऐसी मौत, 54000 मौत, दिल्ली में दर्ज की गयी और वायु प्रदूषण के जानकार लोगों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दिल्ली हमेशा ही वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर से घिरी रहती है। इसके बाद जापान की राजधानी टोक्यो का स्थान है, जहां 40000 असामयिक मौतें दर्ज की गईं हैं।

यहाँ ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि ये आंकड़े वर्ष 2020 के हैं, जब पूरी दुनिया कोविड 19 की चपेट में थी और लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियाँ बंद थी। पिछले वर्ष दुनिया के हरेक क्षेत्र में लम्बे समय तक वायु प्रदूषण का स्तर लगभग नगण्य था। इस दौरान प्रदूषण-रहित समाज पर बड़े-बड़े लेख लिखे गए, पर अब सब कुछ बदल गया है और प्रदूषण का स्तर पहले से भी अधिक हो गया है।

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