Doctors Day: महामारी के इस दौर में भगवान से कम नहीं डॉक्टर, भारी समस्याओं के बीच बखूबी निभायी ड्यूटी

कोरोना महामारी में 'धरती के भगवान' माने जाने वाले डॉक्टर्स ने अभाव और आपदा के बीच निभाई ड्यूटी, अपनी जान की परवाह न करते हुए बचाई कईयों की जान, कुछ चिकित्सकों ने डॉक्टर्स डे पर साझा किये अपने अनुभव

Update: 2021-07-01 12:14 GMT

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प्रियंका की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। डॉक्टर को 'धरती का भगवान' कहा जाता है। हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है डॉक्टर, जिनका जीवन मानव सेवा को समर्पित है। समाज, देश के लिए समर्पित उनके योगदान के सम्मान में डॉक्टर्स डे (Doctors Day) मनाया जाता है। भारत में 1 जुलाई को हर साल नैशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) के तौर पर मनाया जाता है। आज की तारीख जानेमाने फिजिशियन और बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय की जयंती और पुण्यतिथि का प्रतीक है। वैसे तो हर कोई डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा का आभारी होता है, लेकिन 1 जुलाई का दिन डॉक्टरों और हेल्थकेयर वर्कर्स के महत्वपूर्ण योगदान को सराहने और इंसानियत की अनथक सेवा में उनका शुक्रिया अदा करने के लिए जाना जाता है।

हमारा देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया करीब डेढ़ साल से कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की चपेट में है। हालांकि, बीते कुछ दिनों में इस महामारी से थोड़ी राहत मिली है। लेकिन इस साल के अप्रैल-मई महीने में महामारी के भयावह रूप को शायद ही कोई भूला पायेगा। कोविड के मरीजों की संख्या में लगातार होती बढ़ोतरी और इससे हो रही मौत के बढ़ते आंकड़े ने हर किसी को दहशत में डाल दिया था। लेकिन इतने भयावह काल में भी अपनी जान जोखिम में डालकर देश के डॉक्टर्स ने लाखों लोगों की जान बचाई।

कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई में डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स फ्रंट लाइन वॉरियर हैं। हालांकि इस महामारी ने कई चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की जान भी ले ली। लेकिन फिर भी देश के चिकित्सकों ने अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से निभाई। डॉक्टर्स के लिए कैसा था कोरोना काल का वो पूरा दौर, किस तरह की समस्याएं सामने आयी, जानने की कोशिश की जनज्वार ने।

झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रांची स्थित रिम्स (RIMS) के माईक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. मनोज कुमार की मानें तो अगर दिल से काम किया जाये तो कुछ भी मुश्किल नहीं। कोरोना महामारी से लड़ाई भी इसी जज्बे के साथ लड़ी जा रही है। उन्होंने कहा कि कमियों के बीच भी हमने बेहतर काम किया। तीसरे वेब को लेकर कहा कि उसकी तैयारी चल रही है। कोरोना की तीसरी लहर आयेगी या नहीं इस पर संशय बना हुआ है। लेकिन लोगों को सजग होना होगा। केवल सरकार के सक्रिय होने से नहीं होगा। उन्होंने सलाह दी कि लोगों को बगैर काम के भीड़ वाली जगहों पर जाने से तब तक बचना चाहिए, जब तक इस महामारी के खिलाफ कोई स्ट्रॉंग इम्यूनिटी नहीं आ जाती है।

रिम्स के ही कार्डियोलॉजिस्ट (Cardiologist) विभाग के एचओडी डॉ. हेमंत नारायण का कहना है कि कोरोना महामारी से लड़ाई मुश्किल तो थी, लेकिन ये हमारा काम था। खुद भी कोरोना का संक्रमण झेल चुके डॉ. हेमंत ने बताया कि नेगेटिव होने के बाद जब मैंने हॉस्पिटल ज्वाइन किया, तो कई वीवीआईपी से लेकर आम आदमी तक अस्पताल में बेड के लिए फोन करते थे। ऑक्सीजन की कमी थी।

उन्होंने बताया कि कार्डियोलॉजी के ऑक्सीजन बेड को उनके आग्राह पर रिम्स प्रबंधन ने कोविड बेड में बदल दिया। हालांकि, इस 50 कोविड मरीजों को देखने की व्यवस्था नहीं थी। विभाग के तीन डॉक्टर भी संक्रमित थे। उस दौर में तीन डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ ने मिलकर इन मरीजों को संभाला। डॉ. हेमंत नारायण ने बताया कि उनके विभाग में 190 कोरोना के मरीज भर्ती हुए थे, जिनकी हालत वाकई गंभीर थी। इनमें से 22 को नहीं बचा पाने का उन्हें मलाल जरूर है। लेकिन उन्होंने कहा कि कार्डियोलॉजिस्ट होते हुए जिस तरह से हमारी टीम ने काम किया, वो बेहतरीन था। जिन लोगों को हम बचा पाये, आज वो जब हमें फोन करते हैं, तो अच्छा लगता है। आत्म संतोष की बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये मैंने अपने देश और अपने समाज के लिए किया।

कोलकाता में अतिन्द्रम मेडीकेयर के प्रमुख डॉ. रजनीश दूबे ने कहा कि दूसरी लहर में हालत बहुत खराब थे। ऑक्सीजन नहीं था, दवाईयों की कमी थी, अस्पताल में बेड नहीं थे। लेकिन इन कमियों के बीच हमने अपनी ड्यूटी की। और धीरे-धीरे स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी दूर हुई, क्योंकि केस कम हो गये। तीसरी लहर के बारे में बात करते हुए कहा कि इसके लिए तैयारी अभी भी कम है। कोरोना काल में फैमिली लाइफ को लेकर किये सवाल पर उन्होंने कहा कि डर तो था। परिवार के लोगों में ज्यादा डर था। लेकिन बचाव के हर उपाय को अपनाकर हमने अपना काम किया। लोगों की सेवा की। कोरोना वायरस को लेकर डॉ. दूबे ने कहा कि इस पर कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने लोगों से कोविड से बचने के उपायों को अपनाने की अपील भी की।

कोलकाता में निजी प्रैक्टिस कर रहे स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. जयदीप बासु ने कहा कि इस दौरान हमें गर्भवती महिलाओं का ज्यादा ख्याल रखना पड़ा। कोरोना काल में कोविड के मरीजों को खास तरजीह दी गयी। उन्होंने बताया कि फर्स्ट वेब की तुलना में दूसरे वेब में ज्यादा मरीज देखने को मिले। इस फेज में कई महिलाओं की डिलीवरी करवाई, लेकिन राहत की बात ये रही कि कोई भी नवजात इस महामारी की चपेट में नहीं आया। वहीं कोरोना की तीसरी लहर को लेकर कहा कि ये कहना जल्दबाजी होगी कि ये बच्चे को ज्यादा प्रभावित करेंगे। महाराष्ट्र में हुए सर्वे का जिक्र करते हुए कहा कि सर्वे में पता चला कि 40-50 प्रतिशत बच्चों में पहले से ही एंटीबॉडी बन चुकी है। इसलिए कोरोना की तीसरी लहर के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

वहीं मुंबई की होम्योपैथ डॉक्टर पूजा ने कहा कि कोरोना फेज में प्रेग्नेंसी सेक्टर में काम कर रही थी। इस दौरान में प्रेग्नेंट महिलाओं को ज्यादा पैनिक देखा। वैक्सीनेशन को लेकर भी उनमें ज्यादा कन्फ्यूजन था। कोरोना के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि मेडिकल प्रैक्टिशनर के तौर पर ये हमारे लिए नया है, क्योंकि हर दिन इसमें म्यूटेशन हो रहा है। कोरोना की दूसरी लहर का जिक्र करते हुए कहा कि युवा ज्यादा प्रभावित हुए थे और उनमें डर भी बहुत था। वहीं इस दौर में अपनी ड्यूटी औऱ फैमिली को मैनेज करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमें जो गाइडलाइन मिले थे, उसको फॉलो किया। किसी बीमारी से डर कर हम घर पर नहीं बैठ सकते। हमें अपना बचाव करते हुए मरीजों का इलाज करना पड़ता है। कोविड फेज में हमने इसका ज्यादा ध्यान रखा।

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