ग्राउंड रिपोर्ट : हरियाणा के सीएम खट्टर की विधानसभा का गांव झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले, इमरजेंसी हुई तो जाना पड़ेगा 45 किमी दूर
हरियाणा के सीएम मनोहर लाल के गृह जिले के गांव गढ़ी बीरबल के बहुत बुरे हैं हालात, कोरोना से निपटने के इंतजाम तो दूर टेस्ट तक की सुविधा नहीं है मौजूद...
खट्टर की विधानसभा के गांव गढ़ी बीरबल से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो, हरियाणा। करनाल हरियाणा के सीएम मनोहर लाल का विधानसभा क्षेत्र है। इसी जिले का गांव है गढ़ी बीरबल, जो कि जिले से 45 किलोमीटर दूर है। इस गांव में लगभग हर घर में एक सदस्य जुकाम और खांसी से पीड़ित है। ग्रामीण इसकी वजह मौसम का बदलना बता रहे हैं। उनका कहना है कि मौसम बदलते ही इस तरह की दिक्कत आ सकती है। कहीं कोविड तो नहीं। क्या...,? हमें क्यों होगा जी...। गांव के हैं, यह बीमारी तो शहर की है। नहीं... नहीं... हमें कोरोना नहीं हो सकता।
लेकिन वह गलत बोल रहे हैं, क्योंकि वह भी जानते हैं, यह साधारण सर्दी जुकाम का मामला नहीं हैं। पर यह स्वीकार करते हुए डरते हैं। गांव में कोरोना ने पांव पसार लिए। गढ़ी बीरबल ही नहीं, हरियाणा के गांवों में कोरोना कहर बन कर टूट रहा है। ग्रामीण बीमारी छुपा रहे हैं, क्योंकि वह डरते हैं, बोले तो पता नहीं क्या होगा?
यही डर गांवों में कोविड के संक्रमण को जानलेवा बना रहा है। रही सही कसर सरकार की लापरवाही पूरी कर रही है। हरियाणा सरकार दावे तो खूब कर रही है, मगर हकीकत अलग है। 1500 की आबादी वाले गांव में कोविड की जांच के लिए अभी तक टेस्ट नहीं हुए हैं। ग्रामीण अपने से टेस्ट कराने तो शहर जाएंगे नहीं। क्योंकि एक तो टेस्ट कराने के लिए उन्हें यहां से कम से कम 15 किलोमीटर दूर इंद्री जाना होगा। जाने पर होगा क्या? यह सवाल भी वह करते हैं? इसलिए घर पर ही घरेलू उपचार से इस महामारी से निपटने के लिए जूझ रहे हैं।
प्रदेश के गांवों में कोविड संक्रमण तेजी से फैल रहा है, लेकिन गांवों में इस रोकने की दिशा में सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है। गांवों में पहले ही स्वास्थ्य सुविधाओं की ओर सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। गढ़ी बीरबल भी इसका अपवाद नहीं है।
गढ़ी बीरबल में हालांकि लॉकडाउन का असर देखने को मिल रहा है। गलियां सूनी हैं, लेकिन चौपालों पर रौनक खूब है। यहां लोग ताश खेल रहे हैं। इनका कहना है कि गांव में उन्हें कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है।
दलितों के बीच काम करने वाली संस्था मूकनायक की प्रवक्ता कविता सरोहा कहती हैं, गांव के हर घर में एक सदस्य बीमार है। गांव वाले क्या करें। यहां उनकी जांच की सुविधा नहीं है। इसलिए गांव के लोग यहां के स्थानीय नीम हकीम से इलाज करा रहे है। महीने भर पहले तक वह घर पर आकर मरीज देख जाया करता था, आज उसके पास वक्त नहीं है। इतने मरीज हैं कि लाइन लगी हुई है। गांव में नीम हकीमों की चार दुकानें हैं।
इसमें से एक झोलाछाप डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'हम तो साधारण सर्दी जुकाम की दवा दे देते हैं।' लेकिन यह मरीज कोविड के भी हो सकते हैं? पूछने पर वह बहुत ही लापरवाही से कहते हैं, 'हो सकते हैं, लेकिन क्या करें। हमारे पास आ गए तो दवा तो देंगे।'
कविता कहती हैं, सरकार दावा कर रही है कि गांवों में आइसोलेशन सेंटर बना दिए, कहां हैं? हमारे गांव में तो कुछ नहीं है।
गांव के ही निवासी 35 वर्षीय सतपाल चौधरी कहते हैं, 'यदि कोई इमरजेंसी आ गई तो 45 किलोमीटर दूर करनाल जाना पड़ेगा। गांव में न एंबुलेंस है, न सरकारी डॉक्टर। सतपाल चौधरी ने बताया कि इतने पैसे भी हमारे पास नहीं है कि हम निजी अस्पताल में इलाज करा लें, सरकारी अस्पताल में तो जगह मिलेगी नहीं, इसलिए यहीं पड़े हैं। जिंदगी होगी तो बच जाएंगे,नहीं तो... बस।' वह लाचारी और बेचारगी व्यक्त करते हुए अपनी बात पूरी करते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं कि कोविड से निपटने के लिए टेस्टिंग जरूरी है, लेकिन यहां उनका टेस्ट कौन करेगा? कैसे होगा? यहां तो सरकारी डॉक्टर ही नहीं हैं।
गांव के 22 वर्षीय विकास शर्मा दुखी होकर कहते हैं, 'हम भगवान भरोसे हैं। कहने को हम सीएम मनोहर लाल के जिले के गांव से हैं, लेकिन यहां ही हेल्थ सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। कोविड से निपटने के लिए यहां कोई इंतजाम नहीं किया गया है। यहां लोग घरों में पड़े हैं, बीमार हैं। लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। कम से कम गांव में टेस्ट ही करा लें, जिससे यह तो पता चल जाए कि कितने लोग संक्रमण की चपेट में हैं?'
कुछ अन्य ग्रामीण कहते हैं, 'सारी सुविधा शहर वालों के लिए हैं, गांव वालों के लिए कुछ नहीं। चाहे ऑक्सीजन के सिलेंडर उपलब्ध कराने हो, या फिर टेस्ट हर सुविधा शहरवासियों के लिए हैं। ग्रामीणों को तो जैसे कुछ होगा ही नहीं। गांव में इमरजेंसी में कहां संपर्क किया जाए, हमें तो यह तक नहीं पता। पहले कोई बीमार हो जाता था तो करनाल या यमुनानगर ले जाते थे। अब तो यहीं पता चला रहा है कि वहां भी बेड नहीं है।'
ग्रामीण सवाल करते हैं, हमें यदि ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होगी तो कहां से मिलेगा? हमें तो नहीं पता। इसके लिए कहां संपर्क करना होगा? कोई यदि गंभीर हो गया तो शहर ले जाएंगे। बेड मिल गया तो ठीक, वरना... जो होगा देखा जाएगा।
इधर गढ़ी बिरबल गांव के निर्वतमान सरंपच बबलु सरोए कहते हैं वह इस मामले में कोई बात नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें नहीं पता, इस मामले में क्या बात बतानी है और क्या नहीं बतानी।
वहीं इंद्री खड़ विकास अधिकारी अंग्रेज सिंह, (इस खंड में ही गढ़ी बीरबल गांव आता है) ने बताया, अभी इस गांव के लिए सरकार की ओर घोषित किया गया 30 हजार रुपए का बजट नहीं आया। गांव में अभी टेस्टिंग के लिए भी डोर टू डोर सर्व का कार्यक्रम नहीं आया है। जहां तक घर पर ही कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए सरकार की ओर से दी जा रही किट की बात है तो यह भी अस्पताल से मिलेगी। किट तब मिलेगी, जब कोविड की रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाएगी।
जांच रिपोर्ट तब आएगी, जब जांच होगी। सरकार की ओर से बनी टीम का अभी गांव में कोई कार्यक्रम नहीं है। कुल मिला कर गढ़ी बीरबल गांव अपने हाल पर है।
गांव वालों की क्या तकलीफें हैं, यह अलग बात है। मगर खट्टर सरकार का दावा है कि गांव में कोविड की जांच के लिए टेस्ट करने वाली टीम गठित की गई है। सरकार का यह भी दावा है कि कोविड संक्रमण को गांवों में फैलने से रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं, लेकिन सरकार के यह दावे सीएम मनोहर लाल के गृह जिले करनाल के गांव गढ़ी बीरबल में ही गलत साबित होते नजर आ रहे हैं। ऐसे में बाकी प्रदेश के हालात क्या होंगे, इसका सहज ही अंजादा लगाया जा सकता है।