सोशल मीडिया को सरकार नहीं बना पायी थी तोता, अब मुंह पर तालाबंदी का ले आयी कानून
सरकार ने सोशल-मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों के लिए नई गाइडलाइन्स जारी की हैं। लेकिन ये गाइडलाइन्स इन कंपनियों पर लगाम कसने की बजाय अपनी जनता को भयभीत करने, सामाजिक-सांस्कृतिक अथवा राजीनितिक स्तर पर मूलगामी सवाल उठाने वालों को काबू में रखने के लिए हैं।
प्रमोद रंजन का साप्ताहिक कॉलम 'नई दुनिया'
पिछले दो दिनों से भारतीय डिजिटल दुनिया में यह खबर छाई है कि सरकार सोशल-मीडिया कंपनियों पर लगाम कसने के लिए एक कड़ा कानून लेकर आई है। सरकार ने इसे "सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता)" का नाम दिया है। कहा जा रहा है कि जिन कंपनियों की नकेल कसने में यूरोपीय देशों को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं, उसे भारत की मौजूदा मजबूत सरकार ने आखिरकार झुकने के लिए मजबूर कर दिया है।
वास्तविकता क्या है?
25 फरवरी, 2021 को जारी इस नए नियम के तहत सोशल मीडिया चलाने वाली कंपनियों व ओटीटी प्लेटफार्म को इंटरमीटियटरी (मध्यवर्ती संस्थान) मानते हुए, उनसे प्राय: "स्व-नियमन" की उम्मीद की गई है। जैसा कि इसे जारी करते समय प्रेस कांफ्रेंस में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर ने भी कहा 'हमने कोई नया कानून नहीं बनाया है। हमने मौजूदा आईटी अधिनियम के तहत (सिर्फ) इन नियमों को बनाया है। हम इन नियमों का पालन करने के लिए इंटरमीटियटरी प्लेटफार्मों पर भरोसा कर रहे हैं। (हमारे) इस दिशानिर्देश का फोकस उनके आत्म-नियमन पर है।" वस्तुत: ये नियम मूल रूप से उपरोक्त मध्यवर्ती प्लेटफार्मों को काबू में करने से अधिक अपनी जनता को भयभीत करने, सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक अथवा राजीनितिक स्तर पर मूलगामी सवाल उठाने वालों को काबू में रखने के लिए हैं। इससे बहुसंख्यक भारतीय जनता को, जो भी, जैसी भी अभिव्यक्ति की आजादी अब तक प्राप्त है, वह भी अनेक रूपों में बाधित होगी।
साथ ही इन नए नियमों के तहत कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे मौजूदा सरकार के समर्थक धर्मांध, नफरत फैलाने वाले लोगों को लाभ होने की संभावना बनेगी।
क्या हैं नए नियम?
सरल भाषा में इन नियमों का व्यवहारिक सार यह है :
- सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को किसी भी कथित आपत्तिजनक, शरारती पोस्ट या संदेश को सबसे पहले किसने लिखा, इसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। यानी, संदेश को शुरू करने वाले उस व्यक्ति की पहचान करनी होगी, जिसपर कार्रवाई की जा सके। इनमें ऐसा कोई भी संदेश शामिल है, जिससे धार्मिक भावना आहत होती हो, सरकार की नीतियों की ऐसी आलोचना होती हो, जिससे 'देश की सुरक्षा और संप्रभुता' को खतरा हो। इसमें किसी आंदोलन के आह्वान से संबंधित संदेशों को भी 'देश की सुरक्षा को खतरा' बताकर शामिल किया जा सकेगा।
- अगर कोई अश्लील सामग्री परोसता है तो उसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। इसमें हर प्रकार की पोर्नोग्राफी, बच्चों से सेक्स के वीडियो, बलात्कार आदि से संबंधित चीजें होंगी। साथ ही, इसी तरह उन समूहों को भी कटघरे में खड़ा किया जा सकेगा, जो समाज द्वारा स्वीकृत सेक्स संबंधी धारणाओं से इतर गतिविधियों में शामिल होते हैं।
- अगर मध्यवर्ती कंपनी किसी का अकाउंट डिलीट करती है या कोई कंटेंट हटाती है तो उसे यूजर को बताना होगा कि उसका कंटेंट क्यों हटाया जा रहा है। इसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा बैन किए जाने की घटना को देखते हुए उठाया गया कदम माना जा रहा है। पिछले दिनों भारत में भी कुछ हिंदूवादी कार्यकर्ताओं के अकाउंट इन कंपनियों ने सांप्रदायिक पोस्ट के कारण डिलीट किए थे। सरकार अब ऐसे मामलों में प्रकारांतर से हस्तक्षेप कर सकेगी।
- सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए अनिवार्य होगा कि वे उन सभी लोगों को "सत्यापित उपभोक्ता" की तरह प्रदर्शित करे, जो अपनी पहचान सत्यापित करवाना चाहते हों। इस प्रकार के उपभोक्ताओं को ये कंपनियां सामान्यत: ब्लू टिक देती रही हैं। लेकिन यह सिर्फ "पहचान के सत्यापन" का मामला नहीं होता है, बल्कि इनमें प्राय: सेलिब्रिटी जगह पाते रहे हैं और आमतौर पर कंपनियां उन लोगों को ब्लू टिक नहीं देतीं, जिनकी पोस्टों को वे अपने नियमों के अनुसार आपत्तिजनक पाती रहीं हों। यह सच है कि इस मामले में अनेक गड़बड़ियों की शिकायतें रही हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में लाखों फालोअर्स वाले दंगाइयों व अन्य प्रतिक्रियावादी लोगों को भी ब्लू टिक नहीं मिलती थी। इनमें से ज्यादतर मौजूदा सत्ताधारी दल के प्रत्यक्ष-परोक्ष ट्रोल हैं। सरकार को इनकी पहचान कायम करने और प्रभाव बढ़ाने की चिंता है।
- सोशल मीडिया पर उपरोक्त कथित आपत्तिजनक पोस्ट लिखने पर देश के नागरिकों को पांच साल जेल होगी। यह पहले से चला आ रहा नियम है, जिसके बारे में सरकार ने फिर से ध्यान दिलाया है।
इन नियमों में नागरिकों की प्राइवेसी की कोई चर्चा नहीं है, जो दुनियाभर में चर्चा का विषय बना हुआ है, न ही यह स्थानीय मीडिया संस्थानों की मेहनत को हड़पने वाले इन मध्यवर्ती प्लेटफार्मों को किसी प्रकार के भुगतान के लिए बाध्य करता है।
सरकार इस बारे में पूरी तरह स्पष्ट भी है कि वह क्या चाहती है। मंत्री रविशंकर इसे ज्यादा छिपाते भी नहीं। नये नियम जारी करते समय प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने जो कहा, उसका सार भी यही था कि सरकार टेकजाइंट्स का स्वागत करती है। वे यहां व्यापार करें, पैसा कमाएं। हमारे नागरिकों का निजी डेटा बेचें, छोटे-बड़े देशी मीडिया संस्थानों द्वारा उत्पादित कंटेंट को हड़पें, पत्रकारों, लेखकों को झांसे में रखकर उनकी मेहनत और प्रतिभा को बेचें, उन्हें एक दमड़ी तक न दें, ऐसी नीतियां बनाएं, जिससे देश की नई पीढ़ी स्क्रीन से बाहर न निकल सके, लेकिन वे सरकार के सही-गलत सभी निर्देर्शों का पालन करें। सरकार जिसकी पोस्ट हटाने के लिए कहे, उसे हटा दिया जाए, सरकार खान-पान की जिस आदत को देश के लिए खतरा माने, उससे संबंधित चीजें पोस्ट करने वालों पर कार्रवाई हो। सरकार अगर देश को निजी हाथों में बेच रही हो तो उसका विरोध करने वाली पोस्टों को देश की सुरक्षा के हित में हटा दिया जाए।
दरअसल, सरकार ने फरवरी के दूसरे सप्ताह में अपने नागरिकों के 'साइबर अपराध स्वयंसेवक (Cyber Crime Volunteers)' यानी, दूसरे शब्दों में साइबर जासूस बनने का रास्ता खोला था। ये नए कानून उसी क्रम की एक कड़ी हैं। नागरिकों के बीच से चुने हुए जासूस सरकार को उपरोक्त चीजों की सूचना देंगे, जिन्हें आधार बनाकर सरकार मध्यवर्ती प्लेटफार्मों को कार्रवाई करने के लिए कहेगी तथा समस्या पैदा करने वालों को दंडित करेगी। इन जासूसों के अलावा नागरिकों की आजादी को सीमित करने के लिए अन्य प्रकार की व्यवस्था स्थापित करने का भी प्रावधान इस नए नियम में किया गया है।
यही कारण है फेसबुक व अन्य टेकजाइंट्स ने इन नए नियमों का स्वागत किया है और कहा है कि वे तो अरसे से मांग करते रहे हैं कि सरकार हमारे लिए गाइडलाइन जारी करे। हम उस पर कार्रवाई के लिए तत्पर हैं।