एंटीबायोटिक्स की तुलना में जुकाम, खांसी व गले के खराश में शहद से जल्दी मिलता है आराम, शोध में हुआ खुलासा
हमारे देश में मधुमक्खियों की लगभग 796 प्रजातियाँ हैं और इनमें से 40 प्रजातियाँ केवल भारत में ही मिलती हैं। मधुमक्खियाँ देश के हरेक क्षेत्र में मिलती हैं और अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अनुसार नाक बंद होना, जुकाम, खांसी और गले में खराश जैसे रोगों के इलाज के लिए परम्परागत उपायों, जैसे एंटीबायोटिक्स, कफ़ सिरप या इन्हेलर की तुलना में शहद बेहतर परिणाम देता है। शहद अपेक्षाकृत सस्ता है। हरेक जगह उपलब्ध है और इसके कोई साइड.इफ़ेक्ट नहीं हैं। नाक से लेकर फेफड़े के पहले के हिस्से को चिकित्सा विज्ञान में अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक के नाम से जाना जाता है, जिसमें नाक, गला, वौइस बॉक्स और श्वसन नली सम्मिलित हैं। जुकाम, खांसी, गले में खराश इत्यादि इन्ही भागों में वायरस के संक्रमण के कारण होता है।
इन वैज्ञानिकों के अनुसार दुनियाभर में डॉक्टर सबसे अधिक एंटीबायोटिक्स इन्ही लक्षणों के रोगियों को देते हैं। पर, विडम्बना यह है कि एंटीबायोटिक्स वायरस पर बेअसर रहते हैं। इसलिए सर्दी, खांसी या गले में खराश के इलाज के लिए जो डॉक्टर दवाएं देते हैं, वे बेअसर हैं और बिना कारण एंटीबायोटिक्स के सेवन से एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के पनपने का खतरा बढ़ जाता है।
ऑक्सफोर यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिक हिबतुल्लाह अबुएल्गासिम और न्यूफील्ड डिपार्टमेंट ऑफ़ प्राइमरी केयर हेल्थ साइंसेज के शेर्लोट अल्बुरी और जोसफ ली के अनुसार अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट के संक्रमण को दूर करने के लिए डॉक्टर शहद का प्रभावी उपयोग कर सकते हैं। बच्चों को दुनियाभर में जुकाम, खांसी इत्यादि में घरेलू औषधि के तौर पर शहद दिया जाता है, हालांकि इंग्लैंड की नैशनल हेल्थ सर्विसेज एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शहद की सलाह नहीं देती है।
इसके अनुसार शहद की गुणवत्ता बदलती रहती है, इसलिए संभव है कि एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर कुछ शहद का प्रभाव फ़ूड पोइसोनिंग की तरह हो। युवाओं और उम्रदराज लोगों पर शहद से सम्बंधित अनुसंधान कम किये गए हैं। वैज्ञानिकों के इस दल ने ऐसे शोधपत्रों को खोजा जिसमें शहद की तुलना में एंटीबायोटिक्स के क्लिनिकल ट्रायल किये गए हों। इनके शोध का आधार ऐसे 14 प्रकाशित शोधपत्र थे, जिसमें एंटीबायोटिक्स के साथ ही शहद के साथ परीक्षण किया गया था और इनके प्रभावों में अंतर परखा गया था।
इन 14 क्लिनिकल ट्रायल में कुल 1761 मरीजों की भागीदारी थी, जिसमें सभी आयुवर्ग के लोग थे। इन सभी शोधपत्रों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि एंटीबायोटिक्स की तुलना में जुकाम, खांसी या गले के खराश में शहद से जल्दी आराम मिलाता है और शहद से जुकाम या खांसी की तीव्रता भी शीघ्र ही घटने लगती है। एंटीबायोटिक्स की तुलना में शहद से खांसी या जुकाम कम से कम दो दिन पहले ठीक हो जाता है। शहद का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसका कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
अनुसंधान भले ही शहद को बेहतर औषधि बताता हो, पर इस तथ्य को भी ध्यान में रखना पड़ेगा कि पूरी दुनिया में शहद बनाने वाली मधुमक्खीयाँ कम होती जा रही हैं और कुछ प्रजातियाँ तो कीटनाशकों, तापमान वृद्धि, बागों का कम होने के कारण विलुप्तिकरण के कगार पर हैं। इससे केवल शुद्ध शहद की संभावना कम नहीं हो रही है, बल्कि अनेक वनस्पतियों के आगे पनपने की संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। मधुमक्खियों की वनस्पतियों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनियाभर में फूल वाले वनस्पतियों की 90 प्रतिशत से अधिक प्रजातियों के और दुनियाभर की 124 महत्वपूर्ण फसलों में 70 प्रतिशत से अधिक के परागण में मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
हमारे देश में मधुमक्खियों की लगभग 796 प्रजातियाँ हैं और इनमें से 40 प्रजातियाँ केवल भारत में ही मिलती हैं। मधुमक्खियाँ देश के हरेक क्षेत्र में मिलती हैं और अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। एक अध्ययन के अनुसार देश के 75 प्रतिशत से अधिक वनस्पति और फसलों के परागण में मधुमक्खियों का महत्वपूर्ण योगदान है। देश की 6 प्रमुख फसलों के परागण से जो आर्थिक लाभ होता है उसकी कीमत 5400 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई है। मधुमक्खियाँ मैन्ग्रोव वनस्पति और शोला वन के वनस्पतियों के परागण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पर, हमारे देश में आधुनिक कृषि, जंगलों के घटते क्षेत्र, बागों से फूल वाले पौधे का गायब होते जाने और आधुनिक विकास के कारण मधुमक्खियों की संख्या तेजी से कम हो रही है।
मधुमक्खियों की कम होती संख्या के बीच अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी शहद के फायदे खोजने लगा है, इसलिए यदि जुकाम, खांसी या फिर गले में खराश से राहत पाना हो तो मधुमक्खियों को बचाइये।