मिट रहा रात और दिन के तापमान का अंतर, वैज्ञानिकों ने चेताया समुद्र तटों के 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को होना पड़ेगा विस्थापित

वर्ष 1993 के बाद से महासागरों का तापमान लगातार तेजी से बढ़ रहा है, और सबसे अधिक बढ़ोत्तरी आर्कटिक महासागर में देखने को मिल रही है। अब तो महासागरों में भी पृथ्वी की तरह "हीटवेव" का असर होने लगा है....

Update: 2020-10-05 09:25 GMT

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महेंद्र पाण्डेय का विशेष लेख

जनज्वार। तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के अनेक प्रभाव अब स्पष्ट होते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार धीरे-धीरे दिन और रात के तापमान का अंतर घटता जा रहा है, जिसका प्रभाव मनुष्यों के साथ ही वनस्पतियों और जीव-जन्तुवों पर भी पड़ना तय है।

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार पिछले 35 वर्षों के दौरान रात के औसत तापमान में 0.25 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के वैज्ञानिक डेनियल कॉक्स के नेतृत्व में विभिन्न विश्विद्यालयों के वैज्ञानिकों के दल ने किया है। इस अध्ययन को दुनियाभर में दिन और रात के तापमान में अंतर से सम्बंधित सबसे बड़ा और सबसे विस्तृत अध्ययन माना गया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग पूरी दुनिया में पृथ्वी का औसत तापमान साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है और यह बढ़ोत्तरी दिन और रात दोनों के तापमान में दर्ज की जा रही है। पृथ्वी के अधिकतर हिस्से में रात में तापमान बढ़ने की दर दिन से अधिक है।

वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग दो-तिहाई पृथ्वी पर रात के तापमान की बढ़ोत्तरी दिन से अधिक है। ऐसे क्षेत्र मध्य-एशिया, यूरोप, पश्चिमी अफ्रीका और पश्चिम-दक्षिण अमेरिका में स्थित हैं। दूसरी तरफ दक्षिण अमेरिका, मेक्सिको और मध्य-पूर्व में दिन के तापमान में अधिक बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है।

शोधपत्र के अनुसार रात में तापमान के अपेक्षाकृत तेजी से बढ़ने का मुख्य कारण बादल हैं। दरअसल तापमान वृद्धि के साथ ही महासागरों का वाष्पीकरण अधिक तेजी से हो रहा है और साथ ही आसमान में बादल भी अधिक समय के लिए और पहले से अधिक सघन बनते जा रहे हैं। तापमान वृद्धि में बादलों की भूमिका वैज्ञानिकों को अभी तक बहुत स्पष्ट नहीं है, इसलिए इस दिशा में बहुत सारे अनुसंधान किये जा रहे हैं।

इस शोधपत्र के लेखकों के अनुसार बादलों के घने आवरण के कारण दिन में सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी तक नहीं पहुँच पातीं हैं, इसलिए गर्मी भी कम पहुँचती हैं। दूसरी तरफ रात में बादल वायुमंडल में एक आवरण की तरह काम करते हैं, जिससे पृथ्वी की गर्मी इनके पार वायुमंडल में नहीं जा पाती, इस कारण रातें गर्म होती जा रही हैं।

दिन और रात के तापमान का सामान्य अंतर मनुष्य के साथ ही वनस्पतियों और वन्यजीवों के लिए बहुत आवश्यक है। दिन की गर्मी से मनुष्यों को अपेक्षाकृत कम गर्म रातें राहत देती हैं, जिससे उसकी नींद पूरी होती है और अगली सुबह वह पूरी तरह तरोताजा रहता है।

ठंडी रातों में मच्छर और पतंगे भी कम परेशान करते हैं। दिन और रात के तापमान में अंतर वनस्पतियों और फसलों के लिए भी आवश्यक है, जबकि अनेक वन्यजीवों का प्रजनन और व्यवहार भी इसपर निर्भर करता है। वर्ष 1970 के बाद से वन्यजीवों की संख्या 68 प्रतिशत तक गिर चुकी है, और तापमान के अंतर में कमी वन्यजीवों के लिए घातक भी हो सकती है।

जर्नल ऑफ़ ऑपरेशनल ओसनोग्राफी के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वर्ष 1993 के बाद से महासागरों का तापमान लगातार तेजी से बढ़ रहा है, और सबसे अधिक बढ़ोत्तरी आर्कटिक महासागर में देखने को मिल रही है। अब तो महासागरों में भी पृथ्वी की तरह "हीटवेव" का असर होने लगा है। महासागरों का बढ़ता तापमान इसमें पनपने वाले जीवन को और प्रवाल भित्तियों को प्रभावित करने लगा है। महासागरों का बढ़ता तापमान पूरी दुनिया के मौसम को भी प्रभावित करेगा।

जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के असर से जब समुद्रों और महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, तब इसके पानी का आयतन भी बढ़ता है और फिर पानी सागर तटों की तरफ फैलता है। इससे सागर तटों के पास बसने वाली आबादी के साथ ही तटों पर पनपने वाले मैन्ग्रोव जैसे विशेष पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होंगे।

अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के आकलन के अनुसार दुनियाभर में 34 करोड़ आबादी सागर तटों के पास रहती है, यह दुनिया की कुल आबादी का 4.5 प्रतिशत है, पर सागर तटों और नदियों के मुहाने का क्षेत्र दुनिया के भौगोलिक क्षेत्रफल का महज 0.5 प्रतिशत है।

आबादी का यह बड़ा बोझ जो सागर तटों पर है, वह बढ़ते सागर तल से खतरे में है और इसमें से लगभग 92 प्रतिशत आबादी गरीब और विकासशील देशों में है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस दशक के दौरान बाढ़ और सागर तटों के पास आने वाले भीषण चक्रवातों के कारण 3 करोड़ से अधिक आबादी को सागर तटों के पास से विस्थापित होना पड़ेगा।

आश्चर्य यह है कि वैज्ञानिकों की लगातार चेतावनियों के बाद भी दुनिया जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आज तक गंभीर नहीं है, शायद इसका कारण जलवायु परिवर्तन का अधिकतर प्रभाव गरीबों पर पड़ना है, वैसे अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में लगी आग से अधिकतर रईस ही प्रभावित हो रहे हैं।

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