BJP और मोदी समर्थक अंधभक्त अब अम्बानी के JIO और दीपिका का क्यों नहीं कर रहे बहिष्कार

यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जिस दिन अम्बानी जिओ के सन्दर्भ में 5-जी लाने की बात करते हैं, ठीक उसी दिन प्रधानमंत्री जी 5-जी की खूबियाँ गिनाते हैं....

Update: 2020-12-14 08:24 GMT

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। सरकार, सरकारी टुकड़ों पर पलने वाली मीडिया और उसके अंधभक्त कृषि कानूनों पर कितने नाटक कर सकते हैं, यह रोज देखने को मिलता है। इस बीच आन्दोलन की शुरुआत से अबतक 12 किसान शहीद हो गए और सरकार इस मसले पर खामोश है। राहुल गांधी ने जरूर ये मुद्दा उठाया था। इस शहादत के बाद भी किसानों के हौसले डगमगाए नहीं हैं और आज सभी आन्दोलनकारी किसान अपने नेताओं के साथ अनशन पर हैं।

सरकार का रवैय्या वही है, जो एक क्रूर तानाशाह का होता है। पहले घोषित किया गया कि किसानों के ऐतिहासिक हित में ये कानून बनाए गए हैं, पर अब वही सरकार इन हितों का संशोधन करने को तैयार है। कृषि मंत्री कहते हैं कि उन्हें दुःख होता है कि किसान खुले में सर्दियों की रातें बिता रहे हैं, वहीं दूसरे मंत्री इन्हें आतंकवादी और खालिस्तानी बताने पर जुटे हैं और दिल्ली पुलिस इन पर एफ़आईआर दायर कर रही है।

जब अलग-अलग प्रान्तों से किसान दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे, तब कृषि मंत्री ने बातचीत के लिए कई दिनों बाद तीन दिसम्बर को समय दिया था, जिसे इस किसानों के दिल्ली पहुँचाने के बाद और चौतरफा दबाव डालने के बाद 1 दिसम्बर किया गया था।

दूसरी तरफ, 13 दिसम्बर को सारे टीवी चैनलों पर उत्तराखंड से आये किसानों के दिल्ली में पहुंचते ही कृषि मंत्री से सीधे मुलाक़ात की तस्वीरें दिखाई जा रहीं थीं। कृषि मंत्री और उत्तराखंड के तथाकथित किसान नेताओं इन तस्वीरों से बहुत सारे तथ्य उजागर होते हैं। दिल्ली की सीमाओं पर जो किसान नेता आन्दोलन कर रहे हैं, उसमें भी उत्तराखंड के किसान नेताओं की उपस्थिति है, पर मीडिया और सरकार इन आन्दोलनों को केवल पंजाब का आंदोलन बनाकर प्रचारित कर रही है।

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कृषि मंत्री ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है कि यदि कोई इन कानूनों का समर्थन करता है, तब उनके पास मिलने का समय है, पर यदि कोई विरोध करता है तब उनकी व्यस्तता अचानक बढ़ जाती है और फिर मुलाक़ात के लिए कई दिन बाद का समय मिलता है। उत्तराखंड के तथाकथित किसान नेताओं का जो दल कृषि मंत्री से मिला उसके टीवी फुटेज में 20-25 लोग बैठे नजर आते हैं।

दूसरी तरफ जब आन्दोलनकारी नेताओं को मिलना था तब कभी 5 तो कभी 13 नेताओं को बुलाया जाता था। आन्दोलनकारी किसान नेताओं के अड़ने के बाद इनकी संख्या 35 तक पहुँचती है, पर कृषि मंत्री अकेले तथाकथित किसान संगठन के 20-25 लोगों से मुस्कराते हुए और दावत उड़ाते हुए मिलते हैं। जाहिर है, ये सभी लोग सकारी खर्चे पर दिल्ली बुलाये गए होंगे।

रोजाना खबरें आती हैं कि महाराष्ट्र समेत दूसरे राज्यों से दिल्ली आ रहे किसानों को उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर रोक लिया गया या फिर हरियाणा के बॉर्डर पर रोक लिया गया। पर, उत्तराखंड के तथाकथित किसान नेताओं को, जो कृषि क़ानून के समर्थन में आ रहे थे, कहीं नहीं रोका गया और वे सीधे मंत्री जी के दरबार में पहुँच गए। यह भी संभव है कि उन्हें गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने शाबाशी भी दी हो। ऐसे ही नाटक सरकार समर्थक भी कर रहे हैं। वैसे ऐसे सरकारी नाटक पहले भी नागरिकता क़ानून से सम्बंधित आन्दोलनों के समय पूरी दुनिया देख चुकी है।

पिछले वर्ष अभिनेत्री दीपिका पादुकोण छपाक फिल्म के प्रमोशन के दौरान जब दिल्ली आयी थीं तब उन्होंने जेएनयू के छात्र नेताओं से मुलाक़ात करने का भी समय निकाला था। उसके तुरंत बाद सरकार समर्थक सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक हफ़्तों दीपिका पादुकोण की फिल्म के बहिष्कार की अपील करते रहे, उन्हें देशद्रोही करार दिया और पाकिस्तान जाने की सलाह देने लगे।

हाल में ही दीपिका पादुकोण को जब नारकोटिक्स ब्यूरो ने पूछताछ के लिए बुलाया था, तब भी सरकार समर्थक अंधभक्तों ने दीपिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, और सरकारी गोद में बैठी मीडिया भी इस दुष्प्रचार में शामिल थी।

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अब वही दीपिका पादुकोण अम्बानी के जिओ का विज्ञापन कर रही हैं, पर अंधभक्त खामोश हैं, जबकि उन्हें तो जिओ के बहिष्कार की अपील करनी चाहिए थी। आखिर, सरकार समर्थित कट्टर दक्षिणपंथी और पुरातनपंथी अंधभक्तों की तो ऐसे बहिष्कारों की लम्बी परंपरा है। हरेक समय आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान के उत्पादों, यानी फिल्मों के बहिष्कार के ये नारे लगाते हैं, मुहिम चलाते हैं, सिनेमा हाल में तोड़फोड़ करते हैं। आमिर खान के विज्ञापनों के उत्पादों के बहिष्कार की मांग करते है, सोशल मीडिया पर हैशटैग चलाते हैं। पर कमाल है जिओ के विज्ञापनों में दीपिका पादुकोण के दिखने से इन्हें कोई असर नहीं पड़ रहा है। वैसे, जिओ का विज्ञापन तो हमारे प्रधानमंत्री जी भी सरेआम कर चुके हैं।

इन सरकार समर्थित अंधभक्तों से ठीक उलट किसान नेता हैं, जिन्होंने पूंजीवाद के विरुद्ध आवाज उठाई है, अडानी-अम्बानी के उत्पादों और रिटेल स्टोर, जिसमें जिओ भी शामिल है, के बहिष्कार की बात की है। किसान पूंजीपतियों का प्रतिकार कर रहे हैं और सरकार पूंजीपतियों के भरोसे चल रही है। यह सरकार तो पूंजीपतियों द्वारा और पूंजीपतियों के लिए ही है। जाहिर है, न तो सरकार में बैठे मंत्री और नेता और ना ही उनके अंधभक्त पूंजीपतियों के विरुद्ध एक भी वाक्य बोल सकते हैं। दरअसल अंधभक्तों का कोई उसूल है ही नहीं, ये तो सरकार के इशारे पर काम करते हैं और सरकार पूंजीपतियों के इशारे पर।

बहुत सारे किसान नेता, अपने वक्तव्यों में पूंजीपतियों के उदाहरण के तौर पर जिओ का उदाहरण दे चुके हैं। लगातार बताते रहे हैं कि देश में अनेक नेटवर्क चल रहे थे, पर जिओ के आते ही किस तरह प्रधानमंत्री जी इसका विज्ञापन करते रहे और ऐसी नीतियाँ निर्धारित करते रहे जिससे भविष्य में केवल जिओ ही अकेला बचे। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जिस दिन अम्बानी जिओ के सन्दर्भ में 5-जी लाने की बात करते हैं, ठीक उसी दिन प्रधानमंत्री जी 5-जी की खूबियाँ गिनाते हैं।

प्रधानमंत्री जी और इस सरकार के लिए प्राथमिकता किसान की समस्याएं, बेरोजगारी, डूबती अर्थव्यवस्था है ही नहीं,बल्कि पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाना है और अंधभक्तों का काम सरकार का प्रचार करना है। जाहिर है, ऐसे में जिओ के बहिष्कार की बात वो अंधभक्त तो नहीं करेंगे, जिन्होंने फिल्म छपाक का विरोध केवल इसलिए किया था, क्योंकि उसमें दीपिका पादुकोण ने अभिनय किया था। जब सरकार का मुखिया ही केवल विदूषक की भूमिका में हो, तब जाहिर है पूरी सरकार और इसके अंधभक्त केवल नाटक ही करेंगे।

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