Coal Mining In Hasdeo Aranya : मोदी सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान को दी मंजूरी, 300 किमी पैदल राजभवन पहुंचे थे ग्रामीण आदिवासी

Coal Mining In Hasdeo : आदिवासी ग्रामीणों ने 14 अक्टूबर को राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अपनी मांग रखी थी। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने सभी प्रक्रियाओं को दरकिनार किया और स्वीकृति जारी की है।

Update: 2021-10-23 08:30 GMT

(कोयला खदान का विरोध करते ग्रामीण)

Coal Mining In Hasdeo : छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (Ministry Of Environment, Forest And Climate Change)  की ओर से क्लीयरेंस मिलने के बाद कोयला खदान के लिए अब दो गांव पूरी तरह और तीन गांव आंशिक रुप से विस्थापित होने वाले हैं। इस प्रक्रिया में 841 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1 लाख पेड़ों का विनाश तय है। वहीं गांवों और जंगलों को बचाने के लिए सरगुजा-कोरबा (Sarguja Korba) के आदिवासी (Adiwasi) ग्रामीण प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे पहले आदिवासी ग्रामीण 13 अक्टूबर को 300 किमी पैदल चलकर राजभवन और मुख्यमंत्री निवास पहुंचे थे।

छ्त्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (Chhattisgarh Bachao Andolan) से जुड़े आलोक शुक्ला ने कहा- परसा खदान की वन भूमि डायवर्जन की प्रक्रिया फर्जी ग्रामसभा दस्तावेजों पर आधारित है। इसकी जांच और कार्रवाई की मांग को लेकर हसदेव के लोगों का आंदोलन लगातार जारी है। फर्जी ग्रामस भा दस्तावेजों को रद्द करने और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग लगातार 2018 से हसदेव के आदिवासी समुदाय आंदोलन करते आ रहे हैं। इन मांगों को लेकर साल 2019 में ग्राम फत्तेपुर में हसदेव अरण्य के लोगों ने लगातार 73 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया था।   

आलोक शुक्ला ने बताया कि आजतक उन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है और न ही लिखित शिकायत के बावजूद एफआईआर दर्ज की गई। ग्रामीणों ने 14 अक्टूबर को राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अपनी मांग रखी। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने सभी प्रक्रियाओं को दरकिनार किया और गैरकानूनी रूप से यह वन स्वीकृति जारी की है। हम इस मंजूरी को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

खबरों के मुताबिक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के लिए परसा कोयला खदान की स्टेज 1 स्वीकृति 13 फरवरी 2019 को जारी हुई थी। इस पर ग्रामीणों ने अपनी आपत्ति जताई थी। तय प्रावधानों के मुताबिक किसी भी परियोजना हेतु वन स्वीकृति से पहले वनाधिका मान्यता कानून के तहत वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमति आवश्यक है।  

ग्रामीणों का कहना है कि आज भी उनके वनादिकार के दावे लंबित हैं और 24 जनवरी 2018 ग्राम हरिपुर व 27 जनवरी 2018 लाल्ही, 26 अगस्त 2017 को फतेहपुर गांव में दिखाई ग्रामसभाएं फर्जी थीं। इसकी जांच को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपे हैं।

हसदेव अरण्य घने वनों और जैव विविधता से भरपूर है। इसे छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहा जाता है। 2009 में इसे 'नो गो एरिया' घोषित किया गया था। इस क्षेत्र में खनन कार्यों की अनुमति नहीं थी।

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