किसान आंदोलन: जीटी रोड का रास्ता खुलवाने के लिए 35 गांवों के ग्रामीणों का पैदल मार्च

35 गांवों के लोगों ने सरकार से मांग की कि रास्ता खोला जाए,क्योंकि उन्हें इससे परेशानी हो रही है। गांव का माहौल खराब हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी मांग की ओर ध्यान दिया जाए। धरनारत किसानों ने कहा, पैदल मार्च करने वाले ढकोसले बाज, इनमें ग्रामीण नहीं, भाजपा के कार्यकर्ता शामिल....

Update: 2021-07-21 09:12 GMT

(किसान नेताओं ने कहा कि प्रशासन ग्रामीणों को रोके, यदि वह आंदोलन के बीच में आते हैं तो फिर उन्हें रोका जाएगा। हालांकि कोशिश यही रहेगी कि हिंसा न हो।)

जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। सिंधु बार्डर पर ग्रामीणों व आंदोलनरत किसानों के बीच टकराव अब चरम पर पहुंच गया है। एक ओर का जीटी रोड खुलवाने की मांग को लेकर 35 गांवों के ग्रामीणों ने राजीव गांधी एजुकेशन सिटी से केएमपी तक पैदल यात्रा निकाली। इनकी मांग है कि रास्ता तुरंत खोला जाए। यदि ऐसा नहीं होता तो उन्हें स्वयं आगे आकर रास्ता खुलवाना होगा। ग्रामीणों ने बताया कि सात माह से चल रहे आंदोलन की वजह से उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस वजह से उनकी मांग है कि रास्ता खोल जाए।

इधर दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चे ने भी ग्रामीणों को रोकने के लिए कमर कस ली है। संयुक्त मोर्चे ने ऐलान किया कि पहले तो ग्रामीणें को पयार से रोका जाएगा। इसके बाद भी यदि बात नहीं बनी तो फिर देखेंगे क्या किया जा सकता है। ग्रामीणों को रोकने के लिए आंदोलन किसान भी जीटी रोड पर पंक्ति बना कर खड़े हो गए हैं।

किसानों ने बताया कि यह बीजेपी के एजेंडे पर हो रहा है। जो ग्रामीण धरने का विरोध कर रहे हैं, यह बीजेपी के कार्यकर्ता है। उनका कहना है कि बीजेपी आंदोलन के खिलाफ साजिश कर ही है। जिसे वह किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं होने देंगे।

किसान नेताओं ने कहा कि प्रशासन ग्रामीणों को रोके, यदि वह आंदोलन के बीच में आते हैं तो फिर उन्हें रोका जाएगा। हालांकि कोशिश यही रहेगी कि हिंसा न हो। इसलिए बड़ी संख्या में किसान मोर्चे पर डटे हुए है। नांगल कलां निवासी शमशेर सिंह ने बताया कि वह धरने पर बैठे हैं, नगला कला गांव सोनीपत जिले में आता है। उन्होंने कहा कि भाजपा धरने को बदनाम करने के लिए यह चाल चल रही है। जिसे किसी भी हालत में कामयाब नहीं होने देंगे।

धरना स्थल पर किसान नेता दर्शन सिंह ने कहा कि प्रशासन को चाहिए कि वह टकराव को रोके। क्योंकि यदि टकराव होता है तो स्थिति खराब हो सकती है। उन्होंने किसानों से भी अपील की कि वह शांति बनाए रखे। ग्रामीणों से भी अपील की कि वह अपना प्रदर्शन आंदोलन स्थल से दूर रखे।

ग्रामीणों को आंदोलन स्थल की ओर आता देख कर किसान केएमपी पर डट गए है। किसानों ने एक पंक्त बना ली है। भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस मिल कर किसानों को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। वह किसानों की मांग मानने की बजाय किसानों का बदनाम कर इस धरने को खत्म करने की साजिश कर रहे है।

यह कोशिश काफी समय से चल रही है। पिछले दिनों इसे लेकर पंचायत भी की गई थी। उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है। इसका हम पूरजोर विरोध करते है। उन्होंने यह भी दावा किया कि जो ग्रामीण धरने का विरोध कर रहे हैं, वह स्थानीय नहीं है। उन्हें बाहर से बुलाया गया है। जिससे आंदोलन को बदनाम किया जा सके।

इधर टकराव की आशंका के चलते भारी पुलिस बल तैनात, आरएएफ की टुकड़ी भी केएमपी के पास तैनात बेरिकेड्स लगाए गए, किसानों को तरफ जाने वाला मार्ग पूरी तरह से बंद कर दिया है। किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए प्रशासन ने धारा 144 भी लगा दी है।

दूसरी ओर ग्रामीणों ने बताया कि वह तंग है, इसलिए एक ओर का रास्ता खोलने की मांग कर रहे हैं। वह धरने को बदनाम नहीं कर रहे हैं। बस इतनी सी मांग है कि एक ओर का रास्ता खोल दिया जाए, जिससे उन्हें आने जाने में दिक्कत न हो।

इस वक्त उन्हें आने जाने के लिए कई किलोमीटर दूर से घूम कर आना पड़ रहा है। इससे उनका समय और इंधन खर्च हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा आंदोलन की वजह से उनके काम धंधा ठप हो गए हैं। गांव का माहौल भी खराब हो रहा है।

ग्रामीणों ने बताया कि किसान आंदोलन अपनी जगह ठीक है, लेकिन उन्हें तंग नहीं किया जाना चाहिए। उनकी फसल खराब हो रही है। उन्हें अपने रोजमर्रा के काम में दिक्कत आ रही है। इसलिए उनकी मांग है कि रास्ता खोल दिया जाना चाहिए। इससे पहले ग्रामीणों ने कई बार पंचायत आयोजित कर रास्ता खुलवाने की मांग की थी। लेकिन उनकी मांग की ओर ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए उन्हें यह मार्च निकालना पड़ रहा है।

ग्रामीणों ने कहा कि अब बहुत हो गया, वह ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। इसलिए अब स्वयं ही रास्ता खुलवाने का मन बनाया है। इसी को लेकर आज 35 गांव के लोग यह मार्च निकाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आंदोलनरत किसान उन्हें धमका रहे हैं, इससे ही साबित हो रहा है कि वह किसान है या असामाजिक तत्व। ग्रामीणों ने कहा कि उनकी यह छोटी सी मांग भी आंदोलनरत किसानों को बहुत बड़ी लग रही है। इससे ही पता चल रहा है कि किसानों की आड़ में किस तरह के तत्व बॉर्डर पर जमे हुए है।

Tags:    

Similar News