लखनऊ में आंगनबाड़ी, आशा और मिड डे मील यूनियनों की बैठक, आंगनबाड़ी केंद्रों पर एजुकेटर भर्ती को बताया पूर्णतया अवैधानिक

भारत सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट प्रावधान है कि 3 साल से 6 साल के बच्चों की पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ियों को ट्रेनिंग देकर तैयार किया जाएगा और आंगनबाड़ी केंद्र को मजबूत किया जायेगा। इसको करने की जगह सरकार आउटसोर्सिंग में कर्मियों को रखने का आदेश दे रही है...

Update: 2024-09-15 11:45 GMT

लखनऊ। आंगनबाड़ी, आशा और मिड डे मील समेत सभी स्कीम वर्कर्स को सम्मानजनक मानदेय देने, रिटायरमेंट पर 5000 पेंशन व ग्रेच्युटी, रसोइयों को न्यूनतम वेतन देने और आंगनबाड़ी को ग्रेच्युटी देने के हाईकोर्ट के आदेश को लागू करने, एजुकेटर की नियुक्ति को तत्काल निरस्त करने, ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने पर 10 लाख का मुआवजा देने के सवालों पर आज 15 सितंबर को लखनऊ श्रम विभाग के हाल में आंगनवाड़ी, आशा और मिड डे कर्मियों की यूनियनों की संयुक्त बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता एटक की उषा शर्मा और सीटू की डॉक्टर वीना गुप्ता ने की। बैठक का संचालन एटक के प्रांतीय महामंत्री चंद्रशेखर ने किया।

बैठक में वक्ताओं ने कहा कि सरकार का यह तर्क की आंगनबाड़ी, आशा और मिड डे मील रसोइया, शिक्षामित्र, रोजगार सेवक जैसे स्कीम वर्करों को सम्मानजनक मानदेय देने के लिए संसाधन नहीं है, पूर्णतया गलत है। यदि सरकार देश के सुपर रिच और कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगाए तो इन सारे कर्मचारी को सम्मानजनक मानदेय तो दिया ही जा सकता है साथ ही साथ पेंशन, ग्रेच्युटी जैसी सामाजिक सुरक्षाओं को भी प्रदान किया जा सकता है। इसके जरिए बजट के अतिरिक्त सरकार 18 लाख करोड रुपए जुटा सकती है, जिसे जनता के कल्याण के लिए खर्च किया जा सकता है और संविधान प्रदत्त हर नागरिक के सम्मानपूर्ण जीवन को सुनिश्चित किया जा सकता है।

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वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों पर की जा रही एजुकेटर भर्ती पूर्णतया अवैधानिक है। भारत सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट प्रावधान है कि 3 साल से 6 साल के बच्चों की पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ियों को ट्रेनिंग देकर तैयार किया जाएगा और आंगनबाड़ी केंद्र को मजबूत किया जायेगा। इसको करने की जगह सरकार आउटसोर्सिंग में कर्मियों को रखने का आदेश दे रही है। यह आदेश शिक्षा अधिकार अधिनियम का भी उल्लंघन है इस अधिनियम में साफ तौर पर कहा गया है कि शिक्षा क्षेत्र में संविदा प्रथा लागू नहीं की जाएगी और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में इसे स्वीकार किया है। इसलिए सरकार को इस आदेश को वापस लेना चाहिए।

वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश में तो हालत इतनी बुरी है कि यहां न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश भी लागू नहीं किए जाते। हाई कोर्ट इलाहाबाद ने मिड डे मील कर्मचारी को न्यूनतम वेतन देने का आदेश दिया था जिसे सरकार ने मानने से इनकार कर दिया। इसी तरह आंगनबाड़ियों को रिटायरमेंट के वक्त ग्रेच्युटी देने का आदेश हाईकोर्ट द्वारा हुआ जिसे लागू करने की जगह सरकार सुप्रीम कोर्ट में रुकवाने गई है।

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बैठक में फैसला हुआ कि इन मुद्दों पर पूरे प्रदेश में अभियान चलाया जाएगा। जगह-जगह मंडल सम्मेलन किए जाएंगे और 7 से लेकर 9 अक्टूबर तक सामूहिक ज्ञापन लखनऊ में विभागाध्यक्षों को दिया जाएगा और 26 नवंबर को बड़ी रैली आयोजित की जाएगी।

बैठक को वर्कर्स फ्रंट अध्यक्ष दिनकर कपूर, इंटक के दिलीप श्रीवास्तव, टीयूसीसी के नेता उदयनाथ सिंह, डॉक्टर आरती, जैनब, सलमा परवीन, नीता त्यागी, बबीता, गीता सैनी, कृष्णा गिरी, कुसुम गिरी, नीलम आर्या, लज्जावती, राधा, मनोज कुमारी, कृष्ण सागर, जमील अख्तर, बीके गोस्वामी, लक्ष्मी गोस्वामी, ध्रुव चंद, विजय नाथ तिवारी, सुधीर श्रीवास्तव, मीना, हीरामनी समेत कई लोगों ने संबोधित किया।

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