मिर्जापुर के महेंद्र हत्याकांड में अपना दल के दबाव में पुलिस नहीं कर रही थी FIR, प्रदर्शन के बाद आधी रात को दर्ज किया मुकदमा

महेंद्र हत्याकांड में सजातीय लोग भी हैं अभियुक्त, क्षेत्रीय विधायक और सांसद दोनों ही हैं 'अपना दल' से जिसका पटेल सामाजिक आधार है और ये शुरू से ही एफआईआर दर्ज न होने देने के लिए पुलिस-प्रशासन को अपने दबाव में लिये हुए थे...

Update: 2020-09-06 04:47 GMT

भारी जनदबाव के बाद पुलिस को दर्ज करना पड़ा मुकदमा

मिर्जापुर। मिर्जापुर के महेंद्र हत्याकांड में यूपी पुलिस ने भारी जनदबाव के बाद 4 सितंबर की आधी रात को एफआईआर दर्ज की है।

पुलिस की तमाम ना-नुकुर के बाद, बिना एफआईआर की कॉपी लिए वापस नहीं जाने के प्रदर्शनकारियों के संकल्प के आगे प्रशासन को नतमस्तक होना पड़ा। आधी रात बाद एफआईआर दर्ज हुई और रात करीब ढाई बजे एफआईआर की कॉपी मृतक के परिवार वालों को उपलब्ध कराई गई।

गौरतलब है कि यूपी के मिर्जापुर जिले में लालगंज थानांतर्गत घुराकाड़ा गांव के नौजवान महेंद्र सिंह पटेल की बीते माह 8-9 अगस्त के बीच की रात हत्या हो गई। लाश अगली सुबह गांव से एक किमी दूर मिली। महेंद्र प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था, जो इस या अगले साल होनी है।


मृतक के पिता ने पांच व्यक्तियों को, जो वारदात की रात गांव के करीब की एक जगह पर मृतक के साथ मिलकर खाने-पीने में शामिल थे, नामजद करते हुए थाने में तहरीर दी थी, मगर लालगंज थाने की पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की और आश्वासन देकर परिजनों को लौटा दिया। कुछ समय बाद जब परिवार वाले फिर से थाने गए और एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा, तो थानाध्यक्ष ने पहली वाली तहरीर समझ में न आने की बात कह दूसरी तहरीर देने के लिए कहा। पिता ने दूसरी तहरीर भी दे दी। थानाध्यक्ष ने कार्रवाई करने की बात कह उन्हें फिर से वापस घर भेज दिया।


युवक की हत्या के लिए परिजनों का साथ दे प्रदर्शन में शामिल रही भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने कहा है कि मुख्यमंत्री योगी के शासन में हत्या की एफआईआर तक दर्ज कराने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं, न्याय मिलना तो दूर की कौड़ी है। राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि मिर्जापुर का महेंद्र सिंह पटेल हत्याकांड इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां राजनीतिक दबाव में हत्या को पुलिस आत्महत्या बताने और कार्रवाई से बचने की कोशिश करती रही है। यदि जनता सड़कों पर न उतरती, तो इसकी एफआईआर तक दर्ज नहीं होती।

कई दिन बीतने के बाद भी जब कुछ होता नहीं दिखा, तो मृतक के परिवार वालों ने भाकपा (माले) की जिला कमेटी सदस्य कामरेड रीता जायसवाल, जो उसी ब्लाक क्षेत्र में रहती हैं, से संपर्क किया और मदद मांगी। उन्होंने जिले के अपने पार्टी नेताओं को इस घटना की जानकारी दी। राज्य कमेटी सदस्य कामरेड जीरा भारती ने साथियों सहित घटनास्थल का दौरा कर तथ्यों की पड़ताल की। पार्टी ने एफआईआर दर्ज करने और दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग को लेकर लालगंज तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन करने की योजना बनायी।

4 सितंबर 2020 को सुबह सैकड़ों लोगों ने भाकपा (माले) नेताओं की अगुवाई में मृतक के गांव से लालगंज तहसील मुख्यालय के लिए चिलचिलाती धूप में मार्च कर दिया। मृतक की लोकप्रियता के चलते मार्च में परिजन ही नहीं, बल्कि गांव के अधिकांश लोग शामिल थे। मार्च लालगंज उपजिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर प्रदर्शन में बदल गया। यहां प्रदर्शनकारियों की संख्या 600 से ऊपर हो गई।

उपजिलाधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में तहसीलदार व दरोगा वार्ता करने प्रदर्शन स्थल पर आए और वार्ता के बाद यह कहकर वापस हुए की एफआईआर की कॉपी लेकर आते हैं। देर तक दोनों नहीं लौटे, मगर जनता प्रदर्शन करते हुए डटी रही।


पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) से कामरेड जीरा भारती के नेतृत्व में माले टीम की वार्ता हुई। सीओ ने जीरा भारती को संबोधित करते हुए तंज किया कि दिल्ली में आपका नाम सुना था मैंने, फूलन देवी के बाद आप ही हैं यहां। बहरहाल, सीओ ने लालगंज थाने वालों को कहा कि इनकी रिपोर्ट दर्ज हो और दोबारा यह मामला हमारे सामने न आये। इस बीच थाने के दरोगा ने प्रदर्शन में शामिल मृतक के पिता से रिपोर्ट दर्ज करने के नाम पर तीसरी तहरीर ली।

4 सितंबर की दोपहर दो बजे से कामरेड जीरा भारती और जिला सचिव सुरेश कोल के साथ एक टीम थाने के भीतर डटी रही, बाकी साथी प्रदर्शनकारियों के साथ उपजिलाधिकारी कार्यालय पर रहे। इस बीच पुलिस की बहानेबाजी जारी रही कि नेटवर्क नहीं है, तो कम्प्यूटर में दिक्कत है, कैसे दर्ज हो एफआईआर! इस तरह शाम हो गई। रात करीब नौ बजे एएसपी और स्थानीय विधायक (जो भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल 'अपना दल' से हैं) थाने आये। फिर उन्होंने मृतक के पिता को सबसे अलग कर समझाने-मनाने के लिए बातचीत शुरू की। हालांकि पिता एफआईआर दर्ज कराने पर कायम रहे।

दरअसल इस हत्याकांड में मृतक के सजातीय लोग भी अभियुक्त हैं। क्षेत्रीय विधायक और सांसद दोनों ही 'अपना दल' से हैं, जिसका पटेल सामाजिक आधार है और ये शुरू से ही एफआईआर दर्ज न होने देने के लिए पुलिस-प्रशासन को अपने दबाव में लिये हुए थे। मृतक गरीब परिवार से है। विधायक के दबाव में पुलिस की कोशिश हत्या को आत्महत्या दिखाने की हो रही थी, लेकिन परिवार वालों के पास मृतक के शव की फोटो थी, जिस पर मारपीट व खून के स्पष्ट निशान थे। थाने में यह फोटो दिखा कर पुलिस से बहस होती रही।

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