कृषि संकट और किसान आंदोलन के प्रति मोदी सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये की MKSS ने की कड़ी निंदा
किसान आंदोलन में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और हजारों किसान कृषि संकट के कारण आत्महत्या कर चुके हैं...
भीम, राजसमंद। कई दशकों से कृषि क्षेत्र संकट में है। इसका लक्षण यह है कि एक कृषि परिवार खेती से औसतन सिर्फ 4,500 रुपये प्रतिमाह कमा पाते हैं। इस संकट का समाधान निकालने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग (इसको आमतौर पर स्वामीनाथन समिति के नाम से जाना जाता है) का गठन 20 साल पहले किया गया था। उनके सुझावों को अभी तक पूरे तरीके से क्रियान्वित नहीं किया गया है और हाल ही में किए गए प्रयास, जैसे किसानों की आय दुगुना करना जिसका बहुत प्रचार किया गया, जुमला ही साबित हुए। MKSS का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में सरकार का रवैया कृषि संकट और किसान आंदोलन के प्रति निंदनीय है।
दिल्ली में विरोध करने या अपनी दुर्दशा पर सरकार के साथ बातचीत करने के लिए किसी भी मंच के बिना, किसान हताश करने वाले उपाय अपनाने पर मजबूर हो रहे हैं। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल, जिनका उम्र 70 वर्ष के ज़्यादा हैं, एक महीने से आमरण अनशन पर हैं। MKSS उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित है। किसान आंदोलन में सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और हजारों किसान कृषि संकट के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। MKSS चाहता है कि सरकार एक और किसान की मौत से पहले ही कार्रवाई करें।
विरोध का अधिकार
तीन कृषि कानून के लाने से पहले ही किसान, सरकार की कृषि नीति के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। पिछले दस साल से मौजूदा सरकार हमारे विरोध करने के मौलिक और संवैधानिक अधिकार को कमजोर करती आ रही है। तीन कृषि कानून का विरोध करते समय किसानों को दिल्ली के अंदर आने नहीं दिया गया। पिछले साल भर में आन्दोलन कर रहे किसान पैदल दिल्ली आना चाहते हैं, लेकिन किसानों को पंजाब से हरियाणा के अंदर तक आने नहीं दिया गया है। सरकार का यह ग़ैर-लोकतांत्रिक कार्य आपत्तिजनक है।
कृषि संकट के समाधान के लिए सहभागी प्रक्रिया
कृषि संकट से समाधान के लिए किसान लंबे समय से अपनी उपज के लिए लाभकारी मूल्य और ऋण मुक्ति की मांग कर रहे हैं। इसके लिए 2018 में बड़ी संख्या में दिल्ली आए थे। इन मांगों पर किसान संगठनों में आम सहमति होने के बावजूद सरकार के कदम तीन कृषि कानून सरकार के रुप में विपरीत दिशा में था। उन तीन कानूनों में किसानों को बाजार में सुरक्षा देने के बजाय बाजार पर नियंत्रण कम किया। यह तीन कानून कोविड की तालाबंदी के समय अध्यादेश के रूप में लाए गए।
तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी, सरकार ने किसानों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से कृषि संकट को हल करने का वादा पूरा नहीं किया, बल्कि बिना कोई किसान-प्रतिनिधि के समिति द्वारा, विपरीत दिशा में वापस तीन कृषि कानून कानून अनुसार एक ‘कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा’ के मसौदे के माध्यम से लाने का प्रयास कर रही है। MKSS सरकार से आग्रह करता है कि वह कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाते समय 2014 की पूर्व-विधायी परामर्श नीति की भावना अनुसार किसानों को विश्वास में लेकर एक सहभागी, परामर्श प्रक्रिया अपनाएं।
कृषि में सुधार की दिशा
MKSS का यह मानना है कि देशवासियों के खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कृषि उत्पाद खरीदना महत्वपूर्ण है। भारतीयों के सार्वभौमिक राशन और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए, किसान आंदोलन की मांग अनुसार, MKSS मानता है कि सरकार द्वारा विकेंद्रीकृत तरीके से और अधिक फसलों के लिए MSP पर खरीद किया जाना चाहिए। MKSS सरकार द्वारा ऐसे किसी भी उपाय का विरोध करता है, जो पूर्वकथित प्रावधानों को कमजोर करता है या उनके खिलाफ जाता है।
MKSS मांग करता है कि सरकार कृषि क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे संकट को हल करने के लिए किसानों के साथ और उनको विश्वास में लेते हुए तत्काल और सहभागितापूर्ण परामर्श प्रक्रिया अपनाकर एक लोक नीति निर्माण करें।