बेरोजगारी के भयावह हालातों के बावजूद मोदी सरकार करोड़ों युवाओं के भविष्य के प्रति नहीं गंभीर
रोजगार अधिकार को कानूनी दर्जा देने, रिक्त पड़े एक करोड़ पदों को समयबद्ध पारदर्शिता के साथ भरने, संविदा व्यवस्था खत्म करने और रेलवे, बैंकिंग, पोर्ट, शिक्षा-स्वास्थ्य, बिजली-कोयला जैसे महत्त्वपूर्ण सेक्टर में निजीकरण को निषिद्ध करने जैसे मुद्दे रोजगार आंदोलन में शामिल हैं...
लखनऊ । रोजगार के सवाल पर देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने के मकसद से 3 अप्रैल को दिल्ली में 113 युवा संगठनों द्वारा गठित संयुक्त युवा मोर्चा की वर्चुअल मीटिंग में 35 सदस्यीय कार्यकारिणी का गठन किया गया। इसमें प्रमुख रूप से युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम, युवा मंच के संयोजक राजेश सचान, गुजरात से अर्जुन मिश्रा, बिहार से डाॅ. रिषभ राज, तमिलनाडु से डाॅ पी ज्योति, दिल्ली से डाॅ. सिद्धार्थ, उत्तर प्रदेश से गौरव सिंह व गोविन्द मिश्रा, उत्तराखंड से सजेंद्र कठैत समेत विभिन्न राज्यों से युवा संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
वर्चुअल मीटिंग में देशव्यापी रोजगार अधिकार अभियान की रूपरेखा तैयार की गई और तय किया गया कि जल्द ही दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन की घोषणा की जाएगी।
संयुक्त युवा मोर्चा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि रोजगार अधिकार को कानूनी दर्जा देने, रिक्त पड़े एक करोड़ पदों को समयबद्ध पारदर्शिता के साथ भरने, संविदा व्यवस्था खत्म करने और रेलवे, बैंकिंग, पोर्ट, शिक्षा-स्वास्थ्य, बिजली-कोयला जैसे महत्त्वपूर्ण सेक्टर में निजीकरण को निषिद्ध करने जैसे मुद्दे रोजगार आंदोलन में शामिल हैं।
रोजगार सृजन और रिक्त पदों को भरने के लिए संसाधन जुटाने हेतु अमीरों पर संपत्ति आदि टैक्स लगाने की मांग की गई। दरअसल बेरोजगारी की भयावह स्थिति के बावजूद मोदी सरकार करोड़ों युवाओं के भविष्य से इस सवाल पर कतई गंभीर नहीं है। संयुक्त युवा मोर्चा ने विपक्षी दलों से भी कहा कि वह रोजगार के सवाल पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें और बताएं कि बेरोजगारी से निपटने के लिए उनके पास कार्यक्रम और नीति क्या है।