राजस्थान के 21 जिलों के मनरेगा मजदूरों की मांग, 200 दिन का काम और 600 रुपये रोजाना मिले काम का दाम

सरकार पता नहीं कितने भत्ते खुद लेती है, लेकिन हम मज़दूरों को औजार भी नहीं दिए जाते हैं और ना ही कोई भत्ता दिया जाता है, इसलिए हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि 20 रुपये रोज़ का औजार का खर्चा दिया जाए....

Update: 2020-06-29 16:21 GMT

जयपुर, जनज्वार। सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान, राजस्थान एवं राज्य भर तमाम सामाजिक, जन संगठन और संस्थाओं ने महात्मा गांधी नरेगा में 200 दिन का रोजगार, 600 रुपये दैनिक मज़दूरी किये जाने, 20 रुपये रोज़ औजार भत्ता दिए जाने, वार्ड/ग्रामसभा द्वारा चुने गए ही काम कराए जाने तथा देश में शहरी रोजगार गारंटी कानून बनाये जाने को लेकर राज्य के 21 जिलों, 53 ब्लॉक, 160 ग्राम पंचायतों में प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया। 200 से अधिक मनरेगा मज़दूरों ने मनरेगा कार्यस्थलों पर अपने हाथ में तख्ती, बैनर नारे आदि लगाकर अपनी मांगें रखी।

आज 29 जून को सभी कार्यस्थलों पर आयोजित प्रदर्शन के दौरान मज़दूरों ने अपनी यह मांग रखी। पाली जिले की रायपुर पंचायत समिति की कलालिया ग्राम पंचायत के गांव चौगट की कमलाबाई ने प्रदर्शन के दौरान कहा कि मेरे तो 100 दिन जल्दी ही पूरे होने वाले हैं, उसके बाद मैं क्या करूँगी, क्योंकि इस कोरोना महामारी की वजह से अब तो कहीं और काम मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आती है, इसलिए सरकार को कम से कम 200 दिन का काम तो देना ही चाहिए।

कमलाबाई ने कहा कि सरकार ये फैसला जल्दी ले, क्योंकि कई बार जब अकाल पड़ जाता है तब 50 दिन का अतिरिक्त रोजगार मिलता है, लेकिन उसकी घोषणा जनवरी या फरवरी में होती है इसलिए हम अपने दिन पूरे नहीं कर पाते हैं और हमारे दिन गल जाते हैं।

भीलवाड़ा जिले की मांडल पंचायत समिति की नारेली ग्राम पंचायत के गांव रामपुरिया की रहने वाली मंजू मेघवाल ने मांग की कि मंहगाई के इस दौर में नरेगा की मज़दूरी केवल 220 रुपये रोज़ है, इससे एक परिवार का पेट नहीं पाला जा सकता है। सरकार मज़दूरों के साथ सौतेला व्यवहार करती है। एक तरफ सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की इतनी ज्यादा तनख्वाह और मज़दूरों की इतनी कम। मज़दूरी बढ़ाकर कम से कम 600 रुपये प्रतिदिन की जाए और इसके लिए हम संघर्ष करेंगे।

अजमेर जिले की जवाजा पंचायत समिति की ग्राम पंचायत बरखान की देउदेवी ने आज कहा कि सरकार पता नहीं कितने भत्ते खुद लेती है, लेकिन हम मज़दूरों को औजार भी नहीं दिए जाते हैं और ना ही कोई भत्ता दिया जाता है, इसलिए हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि 20 रुपये रोज़ का औजार का खर्चा दिया जाए।

उदयपुर शहर के रहने वाले जावेद खान और मांगीलाल सालवी ने कहा कि शहर में पहले निर्माण या अन्य किसी भी प्रकार का काम मिल जाता था, लेकिन अभी सभी गतिविधियां ठप्प पड़ी हैं अब हमें रोजगार नहीं मिलेगा तो भूखे मरेंगे, सरकार को शहरी क्षेत्र के लिए शहरी रोजगार गारंटी कानून लाना चाहिए।

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