शिवराज सिंह भी कर चुके MP में PESA ACT लागू करने की घोषणा, अब तक किसी सरकार ने ईमानदारी से नहीं निभाया वादा

पंचायत व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए केन्द्रीय कानून पेसा के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार को इसका नियम बनाना था, जो पेसा कानून के लागू हुए 25 साल बाद भी नहीं बन पाया है....

Update: 2021-10-17 14:44 GMT

कोई भी सरकार पेसा कानून को लागू करने में ईमानदार नहीं

जनज्वार ब्यूरो। आज 17 अक्टूबर को जबलपुर में आयोजित पेसा कानून और पेसा नियम 2021 का आयोजन जल, जंगल, जमीन और संस्कृति, संविधान बचाओ साझा मंच के द्वारा किया गया।

सभा को संबोधित करते हुए विजय भाई भारत जन आंदोलन ने कहा, कोई भी सरकार पेसा कानून (PESA Act) को लागू करने में ईमानदार नहीं है। 24 दिसंबर, 1996 में आने के बाद सत्ता चार केन्द्र बने, वो थे संसद, विधानसभा, जिला स्वशासी परिषद और ग्रामसभा, परंतु अनुसूचित क्षेत्र के शहरी इलाके में जिला स्वशासी परिषद और ग्रामीण क्षेत्र में गांव सरकार को मजबूत करने के बजाय उसे कमजोर बनाया गया है।

उन्होने कहा कि मध्यप्रदेश के कुल भू -भाग का 22.07 प्रतिशत (68 हजार वर्ग किलोमीटर) अनुसूचित क्षेत्र है  जो संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत पांचवी अनुसूचि के अन्तर्गत वर्गीकृत है।इस क्षेत्र का विस्तार मध्यप्रदेश के 89 आदिवासी विकास खंडो में है। संविधान के भाग (10) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन स्थानीय आदिवासी समाज की सहमति से संचालित किया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद (40) में राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां तथा अधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हे स्वायत शासन की इकाईयों के रूप में कार्य करने योग्य आवश्यक हों।

पेसा कानून का असली मतलब

राज्य की बजाय ग्रामसभा के रूप में गांव समाज सर्वशक्ति संपन्न है। इस तरह गांव समाज और ग्रामसभा एक ही असलियत के दो नाम है। गांव समाज उसका परम्परागत रूप है और ग्रामसभा संविधान से मान्यताप्राप्त औपचारिक रूप है। यही हमारी परम्परा और आधुनिक व्यवस्था का मिलन बिंदु है। सामान्य इलाकों में ग्राम का मतलब राज्यपाल द्वारा लोक अधिसूचना से ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट ग्राम अभिप्रेरित है, जबकि अनुसूचित क्षेत्रों के लिए समाज केंद्रित परिभाषा की गई है।

पेसा कानून की धारा 4(ख) के तहत ग्राम अर्थात लोगों की समझ का अपना गांव, ऐसी बस्तियां व बस्तियों का समूह होगा, जिनके सभी निवासी सहज रूप से अपने को उस गांव समाज का हिस्सा मानते हैं और अपने सभी कामकाज गांव समाज की परम्परा के अनुसार चलाते हों। पेसा कानून की धारा 4 (घ) कहता है कि प्रत्येक ग्राम सभा आम लोगों की परम्परा और रूढ़ियों की सांस्कृतिक पहचान बनाये रखने, अपने गांव की सीमा में आने वाले सभी संसाधनों की व्यवस्था एवं प्रबंधन करने तथा गांव समाज में हर तरह के विवादों की अपनी परम्परा के अनुसार निपटाने के लिए सक्षम है।

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा ने कहा, क्योंकि पंचायत व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए केन्द्रीय कानून पेसा के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार को इसका नियम बनाना था, जो पेसा कानून के लागू हुए 25 साल बाद भी नहीं बन पाया है। मध्यप्रदेश शासन ने अपने कुछ कानूनों जैसे साहूकार अधिनियम, भू राजस्व संहिता,अबकारी अधिनियम आदि का पेसा के साथ अनुकूलन किया हुआ है, किन्तु वन, भूमि एवं न्याय सबंधि कानूनों का पेसा के साथ अनुकूलन नहीं हुआ है। इसलिए पिछले माह 18 सितंबर 2021 को राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस कार्यक्रम पर जबलपुर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि पेसा कानून को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा और वन प्रबंधन का अधिकार ग्राम सभा को दिया जाएगा।

परन्तु संविधान के भाग (10) के आलोक में मध्यप्रदेश राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में वन प्रबंधन में ग्रामसभा का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए भारतीय वन अधिनियम 1927 में बदलाव जरूरी है। वन विभाग द्वारा वन प्रबंधन भारतीय वन अधिनियम 1927 के अनुसार किया जाता है जो कि वन को राजस्व प्राप्ति का साधन मात्र है।

वनौषधि और आदिवासी समाज की आवश्यकताओं जैसे तत्वों का कोई स्थान नहीं है, इसलिए संविधान की मंशा अनुसार पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में वन प्रबंधन आदिवासी समाज केन्द्रित होना चाहिए। चूंकि वन संविधान की समवर्ती सूची में है, इसके लिए केंद्र का ध्यान आकृष्ट किया जाना आवश्यक है।

कार्यक्रम में पूर्व मंत्री ओंकार सिंह मरकाम, बिछिया विधायक नारायण सिंह, पट्टा, निवास विधायक डाक्टर अशोक मर्सकोले, गोंडवाना समग्र क्रान्ति के गुलजार सिंह मरकाम, आयोजक हरी सिंह मरावी, मनमोहन सिंह गोठरिया, श्याम कुमारी धुर्वे, पुनम सिंह भरवे, राहुल श्रीवास्तव, समाधान पाटील, इन्द्र पाल मरकाम आदि ने भी संबोधित किया।

कार्यक्रम में महाकौशल संभाग के जबलपुर, मंडला, बालाघाट, डिंडोरी, नरसिंहपुर, कटनी, छिंदवाड़ा, अनूपपुर आदि जगहों से सैकड़ों लोगों ने हिस्सेदारी की।

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