सोशल एक्टिविस्ट और मानवाधिकार कार्यकर्ता चितरंजन सिंह का निधन, पिछले लंबे समय से थे बीमार

पिछले कुछ सालों से चितरंजन सिंह जमशेदपुर में अपने भाई के यहाँ रहकर इलाज करवा रहे थे और उन्हें हाल ही में बलिया स्थित उनके गांव लाया गया था. गांव लाने के बाद चितरंजन जी को बनारस में भर्ती कराया गया था...

Update: 2020-06-26 14:03 GMT
photo : facebook

जनज्वार। सोशल एक्टिविस्ट और वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता चितरंजन सिंह का आज 26 जून को निधन हो गया है। पिछले काफी दिनों से वे ​बीमार चल रहे थे।

चितरंजन सिंह के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए लेखक रामजी राय कहते हैं, 'खबर मिल रही है कि मित्र, साथी, कामरेड चितरंजन सिंह नहीं रहे। सन 72 से साथ रहा आया; पिछले कुछ समय से अस्वस्थ और पिछले कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार साथी आज बिछुड़ गया। फोन कर अब कौन पूछेगा- और कैसे हैं रामजी!'

चितरंजन सिंह देशभर में प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। 17 जून से वह अस्पताल में भर्ती थे। यह जानकारी बलवंत यादव ने साझा की थी। उनकी गंभीर हालत के बारे में कहा था, चितरंजन सिंह को गौरव हॉस्पिटल, तिखमपुर, बलिया, उत्तर प्रदेश डाक्टर डी राय की निगरानी में दवा दी जा रही है। पहले से काफी कुछ सुधार है। हालांकि वह बातचीत करने में असमर्थ हैं।

बलवंत यादव के मुताबिक, बलिया में जयप्रकाश नारायण के जयंती के पूर्व संध्या पर 10 अक्तूबर को हर साल एक समसामयिक विषयों पर गोष्ठी का आयोजन का सिलसिला चितरंजन सिंह ने ही शुरू किया था, जिसको बलिया के क्रान्ति मैदान टाऊन हॉल के बापू भवन में पीयूसीएल के बैनर तले हर साल आयोजित किया जाता है।

अंतिम समय में चितरंजन सिंह के शरीर के लगभग सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। पिछले कुछ सालों से वह जमशेदपुर में अपने भाई के यहाँ रहकर इलाज करवा रहे थे और उन्हें हाल ही में बलिया स्थित उनके गांव लाया गया था। गांव लाने के बाद चितरंजन जी को बनारस में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था।

उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश सिंह ​कहते हैं, चितरंजन भाई नहीं रहे, लंबी बीमारी के बाद पैतृक गांव सुल्तानपुर बलिया में 26 जून को शाम 5 बजे निधन हो गया। 27 जून को सुबह गांव के पास ही अंतिम संस्कार किया जायेगा।

चितरंजन सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव कहते हैं, कंधे पे गमछा रखे कभी रांची तो कभी दिल्ली पूरे देश में हक-हुक़ूक़ की आवाज हम सबके सरपरस्त वरिष्ठ मानवाधिकार नेता चितरंजन सिंह नहीं रहे। कल उनसे अंतिम मुलाकात हुई, नहीं मालूम था कि जिंदगी के इस सफर की ये अंतिम मुलाकात होगी।हम जैसे तमाम युवाओं को मानवाधिकार आंदोलन से जोड़ने वाले अभिवावक का जाना पूरे मानवाधिकार आंदोलन को अपूर्ण क्षति है।'

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