केंद्र के गलत कृत्यों को सुप्रीम कोर्ट का समर्थन मोदी सरकार को देश में संघवाद को और नीचा दिखाने के लिए करेगा प्रोत्साहित : माले

माले नेता ने कहा जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपने राज्य का दर्जा और निर्वाचित विधानसभा के माध्यम से प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र का अधिकार खोए हुए चार साल से अधिक समय हो चुका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम के संवैधानिक औचित् के सवाल को, राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने के केंद्र सरकार के मौखिक आश्वासन को स्वीकार कर उसे बरी करते हुए टाल दिया....

Update: 2023-12-12 10:00 GMT

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Lucknow news : कल 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में गठित पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के मोदी सरकार के फैसले को वैध मानता है।

कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ भाकपा (माले) ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के प्रावधान को निरस्त करने के गंभीर संवैधानिक उल्लंघन के लिए कार्यपालिका को जिम्मेदार ठहराने में विफल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल जम्मू कश्मीर के लोगों को बल्कि संविधान और देशवासियों का उसमें जो विश्वास है, उसे निराश किया है।

पार्टी के राज्य सचिव व केंद्रीय समिति सदस्य सुधाकर यादव का कहना है कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को संप्रभु नहीं बनाया, बल्कि इसने जम्मू-कश्मीर के भारतीय संघ में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष संवैधानिक सुरक्षा उपाय केवल 'विषम संघवाद' का मामला नहीं था, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने दावा किया, बल्कि भारत के साथ राज्य के एकीकरण के विशिष्ट इतिहास में निहित था।

उन्होंने कहा कि भारतीय संघ में कई अन्य राज्य हैं, जो धारा 370 जैसे कुछ विशेष प्रावधानों का लाभ उठा रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय ने दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर को 'विषम संघवाद' के एकमात्र मामले के तौर पर अलग कर दिया। साथ ही, इस विषमता को ठीक करने के नाम पर आला अदालत ने जम्मू-कश्मीर से उसके राज्य का दर्जा छीनकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील करने की सरकार की कार्रवाई को नजरअंदाज कर दिया।

कॉमरेड सुधाकर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपने राज्य का दर्जा और निर्वाचित विधानसभा के माध्यम से प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र का अधिकार खोए हुए चार साल से अधिक समय हो चुका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम के संवैधानिक औचित्य (या अनौचित्य) के सवाल को, राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने के केंद्र सरकार के मौखिक आश्वासन को स्वीकार कर उसे बरी करते हुए, टाल दिया है ।

माले नेता ने कहा कि कश्मीर घाटी में राजनीतिक विरोध और मौलिक अधिकारों का दमन पहले से ही देशभर में लोकतंत्र को नकारने का एक नमूना बन गया है। जम्मू-कश्मीर के संबंध में केंद्र सरकार के गलत कृत्यों को सुप्रीम कोर्ट का समर्थन अब संभवतः मोदी सरकार को भारत में संघवाद को और नीचा दिखाने और नष्ट करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

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