किसान आंदोलन के समर्थन में उत्तराखंड में मज़दूरों ने निकाली बाइक रैली, राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन

कडाके की सर्दी से अब तक 100 से ज्यादा किसानों की शहादत इस आंदोलन में हो चुकी है, किसान इतनी कुर्बानियां देकर इन तीनों काले कानूनों को वापस लेने की माँग कर संघर्षरत हैं, ये तीनों कानून देशी-विदेशी कारपोरेट पूँजी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से लाये गये...

Update: 2021-01-23 12:10 GMT

रुद्रपुर। जनविरोधी कृषि कानूनों के विरोध और किसान आंदोलन के समर्थन में आज 23 जनवरी को श्रमिक संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में सिडकुल ब्रिटानिया चौक से मुख्य बाज़ार होते हुए गाँधी पार्क तक बाइक रैली निकली और किसान-मजदूर एकता का इज़हार किया गया। इसी के साथ देश के राष्ट्रपति के नाम जिलाधिकारी उधम सिंह नगर के प्रतिनिधि एसडीएम रुद्रपुर के माध्यम से ज्ञापन भेजा गया।

इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि मौजूदा कृषि कानून खेती को पूँजीपतियों और बहुराष्ट्रीय निगमों के हवाले करने के उद्देश्य से लाए गए हैं। जो पहले से तबाह छोटे-मझोले किसानों की तबाही की प्रक्रिया को तीव्र गति से बढ़ा देगा और भयंकर मानवीय त्रासदी को जन्म देगा।

श्रमिक संयुक्त मोर्चा और क्षेत्र के मज़दूर मोदी सरकार द्वारा लाये गये तीनों काले कृषि कानूनों का विरोध करता है और किसान आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता कायम करता है। जबरदस्त नारों के बीच इस दौरान किसान विरोधी तीनों काले कानूनों को रद्द करने की माँग बुलंद हुई।

भेजे गए 4 सूत्रीय ज्ञापन में माँग किया गया कि किसान विरोधी तीनों क़ानूनों को रद्द किया जाए, सभी कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सुनिश्चित हो, राशन की जन वितरण प्रणाली की सरकारी व्यवस्था को मजबूत किया जाए, उदारीकरण.निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां रदद् हों।

ज्ञापन में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने तथाकथित संसदीय परंपराओं को नजरअंदाज कर किसान विरोधी 3 कृषि बिलों को पारित कर दिया। नए कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवंबर से किसान तमाम पुलिसिया दमन व बाधाओं को पार कर इस कड़ाके की सर्दी में दिल्ली के बार्डरों पर खुले आसमान के नीचे बैठकर आन्दोलनरत हैं।

कडाके की सर्दी से अब तक 100 से ज्यादा किसानों की शहादत इस आंदोलन में हो चुकी है। किसान इतनी कुर्बानियां देकर इन तीनों काले कानूनों को वापस लेने की माँग कर संघर्षरत हैं। ये तीनों कानून देशी-विदेशी कारपोरेट पूँजी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से लाये गये हैं।

ज्ञापन में लिखा है कि केन्द्र की मोदी सरकार किसानों की जायज मांगों को मानने के स्थान पर वार्ताओं के जाल बुन रही है। आन्दोलन को तरह तरह से बदनाम करने का काम कर रही है। ये तीनों कृषि कानून कॉरपोरेट खेती को बढावा देने वाले कानून हैं।

छोटे-मझोले किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बन चुकी है। कर्ज जाल में फंसकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसानों की आत्महत्या देश में एक परिघटना बन गई है। ये नये कृषि कानून छोटे.मझोले किसानों की पहले से जारी तबाही बर्बादी की प्रक्रिया को और तेज कर उन्हें कॉरपोरेट पूँजीपतियों ;अम्बानी-अडानी आदिद्ध का गुलाम बना देगी।

वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार ने पूँजी की सेवा में मज़दूरों से सम्बंधित 44 केन्द्रीय श्रम कानूनों को समाप्त कर मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिता बना दी हैं। कॉरपोरेट-पूँजीपतियों की सेवा में लगी मोदी सरकार मज़दूरों को मालिकों को भी गुलाम बनाने का काम रही है।

इस रैली में श्रमिक संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष दिनेश तिवारी, महिपाल सिंह-बीसीएच मजदूर संघ, पूरन चंद पांडे-एलजीबी वर्कर्स यूनियन, राजू सिंह-एडविक कर्मचारी संगठन, हरेंद्र पांडे-थाई, सुमित-नील ऑटो कामगार संगठन, रोहतास-करोलिया लाइटिंग्स, राकेश कुमार-इंट्रार्क मजदूर संगठन किच्छा, दलजीत सिंह-इंट्रार्क मजदूर संगठन पंतनगर, ठाकुर सिंह-भगवती श्रमिक संगठन, रामदत्त-मेटलमैन माइक्रो टर्नल, मनोज कुमार-वोल्टास इम्पलाइज यूनियन, गोविंद सिंह-एलजीबी वर्कर्स यूनियन, सुनील कुमार-करोलिया लाइटिंग इम्पलाइज यूनियन, चंदन सिंह मेवाड़ी-बजाज मोटर्स कर्मकार यूनियन, महेंद्र राणा-नेस्ले कर्मचारी संगठन, जीवन लाल-ऑटो लाइन एंप्लाइज यूनियन, मन्नू कुमार-यज्जाकी वर्कर्स यूनियन, दिनेश चंद्र-इंकलाबी मजदूर केंद्र, मुकुल-मज़दूर सहयोग केंद्र, सुरेंद्र-मासा, सुभाष चंद्र जोशी-किसान संगठन पिथौरागढ़ समेत कई अन्य लोगों ने हिस्सेदारी की।

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